NDPS Act : चार्जशीट के साथ FSL रिपोर्ट न होने से जमानत का अधिकार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Amir Ahmad
3 Oct 2025 1:46 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण अवलोकन में कहा है कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस अधिनियम (NDPA Act) के तहत दर्ज मामलों में विशेष रूप से जब व्यावसायिक मात्रा में मादक पदार्थ बरामद हुआ हो और NDPA Act की धारा 37 के तहत जमानत पर रोक लागू होती हो तो केवल चार्जशीट के साथ फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (FSL) रिपोर्ट संलग्न न होने के कारण आरोपी को जमानत का अधिकार नहीं मिल जाता।
जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की एकल पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए आरोपी की दूसरी जमानत याचिका खारिज कर दी। यह आरोपी नवंबर 2024 में एक DCM ट्रक से 151.600 किलोग्राम गांजा के साथ पकड़ा गया, जो व्यावसायिक मात्रा की सीमा से काफी अधिक है।
मामले की पृष्ठभूमि और कोर्ट का फैसला
आरोपी के खिलाफ 31 दिसंबर, 2023 को चार्जशीट दाखिल की गई और 12 जनवरी, 2024 को आरोप तय किए गए। FSL रिपोर्ट जिसमें जब्त पदार्थ की गांजा होने की पुष्टि हुई। 2 दिसंबर, 2023 को प्राप्त हुई और 19 जून 2024 को केस डायरी का हिस्सा बनाई गई।
आरोपी ने अपनी दूसरी जमानत याचिका में यह तर्क दिया कि वह केवल 500 प्रतिदिन कमाने वाला एक क्लीनर था और उसका मादक पदार्थ से कोई लेना-देना नहीं था। उसने दावा किया कि NDPS Act की धारा 50 के अनिवार्य प्रावधानों का पालन नहीं किया गया और FSL रिपोर्ट के बिना दाखिल की गई चार्जशीट अधूरी थी, जिससे अभियोजन पक्ष कमज़ोर होता है।
राज्य के एडिशनल शासकीय वकील ने जमानत का विरोध करते हुए कहा कि आरोपी व्यावसायिक मात्रा से अधिक गांजा की सचेत कब्जेदारी में था। उन्होंने बताया कि सभी आठ बोरियों से 80-80 ग्राम नमूने लिए गए और FSL को भेजे गए थे जिसने गांजा होने की पुष्टि की।
हाईकोर्ट ने शुरू में ही कहा कि व्यावसायिक मात्रा वाले अपराधों में धारा 37 के तहत जमानत तब तक नहीं दी जा सकती, जब तक कि अदालत को यह विश्वास न हो जाए कि आरोपी दोषी नहीं है और जमानत पर रहते हुए कोई अपराध नहीं करेगा।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि FSL रिपोर्ट केवल पुष्टिकारक साक्ष्य होती है न कि अभियोजन का मूल आधार।
जस्टिस अग्रवाल ने कहा कि एक बार जब जांच अधिकारी को आरोपी पर मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत मिल जाते हैं तो FSL रिपोर्ट केवल एकत्रित सामग्री की पुष्टि करती है।
अदालत ने यह भी कहा कि FSL रिपोर्ट को दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 293 के तहत साक्ष्य के रूप में शामिल किया जा सकता है। भले ही वह चार्जशीट के साथ संलग्न न हो। साथ ही चूंकि वाहन मालिक के संबंध में जांच अभी भी जारी है, इसलिए CrPC की धारा 173(8) के तहत आगे की जांच भी हो सकती है।
इन तर्कों को खारिज करते हुए अदालत ने टिप्पणी की कि जब्त किया गया गांजा व्यावसायिक मात्रा से ऊपर है और आरोपी वाहन में मौजूद था। इसलिए अदालत ने जमानत याचिका खारिज कर दी।

