वैवाहिक स्थिति की घोषणा समाज के मूल को प्रभावित करती है, केवल सक्षम न्यायालय द्वारा ही हो सकती है: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Amir Ahmad
7 Oct 2025 11:59 AM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में यह टिप्पणी की कि वैवाहिक स्थिति की घोषणा समाज के मूल को प्रभावित करती है और यह केवल हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 11 के तहत सक्षम न्यायालय द्वारा ही की जा सकती है।
जस्टिस राजेश सिंह चौहान और जस्टिस सैयद क़मर हसन रिज़वी की खंडपीठ ने अवलोकन किया,
"यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि पक्षकारों की वैवाहिक स्थिति की घोषणा समाज के मूल को प्रभावित करती है। हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 11 के आलोक में घोषणा केवल पक्षों के बीच उपयुक्त कार्यवाही में और कानून की अन्य सभी आवश्यकताओं के अनुपालन में एक सक्षम न्यायालय द्वारा ही की जा सकती है। न्यायालय पक्षों की वैवाहिक स्थिति के संबंध में एक पूर्ण और प्रभावी निर्णय देने के लिए बाध्य हैं।"
मामले के तथ्यों के अनुसार पत्नी ने 2013 में निकाह के माध्यम से मुस्लिम व्यक्ति से विवाह किया। इसके बाद जून, 2020 में उसने याचिकाकर्ता (पति) के साथ हिन्दू रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह किया। उसका मुस्लिम व्यक्ति से तलाक 2021 में अंतिम रूप दिया गया।
कुछ समय बाद याचिकाकर्ता-पति ने अपने विवाह को शून्य घोषित कराने के लिए हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 11 के तहत आवेदन दायर किया। इस बीच हाईकोर्ट द्वारा आपराधिक कार्यवाही में भेजे गए मध्यस्थता में पति और पत्नी ने आपराधिक मामलों को वापस लेने और एक साथ न रहने पर सहमति व्यक्त की। समझौते में यह भी दर्ज किया गया कि पक्ष कानून के अनुसार धारा 11 के तहत कार्यवाही को समाप्त करने में सहयोग करेंगे।
इस समझौते के आधार पर आपराधिक रिट का निपटारा कर दिया गया। हालांकि, बाद में एक रिकॉल आवेदन इस आधार पर दायर किया गया कि फैमिली कोर्ट ने धारा 11 के तहत आवेदन खारिज कर दिया, जिससे पक्षों की वैवाहिक स्थिति अस्पष्ट रह गई।
कोर्ट ने हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 5(i) का उल्लेख किया जो यह प्रावधान करती है कि विवाह के समय किसी भी पक्ष का कोई जीवित जीवनसाथी नहीं होना चाहिए। कोर्ट ने अवलोकन किया कि इस शर्त का उल्लंघन करने वाला विवाह धारा 11 को धारा 5(i) के साथ पढ़ने पर शुरू से ही शून्य होता है और कानून की नज़र में अस्तित्वहीन होता है। कोर्ट ने कहा कि शून्य विवाह से पक्षों की स्थिति अधिकार और दायित्व नहीं बदलते हैं।
न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि जिस सक्षम न्यायालय के समक्ष धारा 11 का आवेदन दायर किया गया, उससे पक्षों के बीच पूर्ण न्याय सुनिश्चित करना चाहिए।
फैमिली कोर्ट के रिकॉर्ड कोर्ट के समक्ष नहीं है इसलिए हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश में हस्तक्षेप करने से परहेज किया और पक्षकारों को फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ उपयुक्त न्यायालय में जाने का निर्देश दिया।

