टेंडरों में तकनीकी आधार पर दखल से राज्य को भारी नुकसान: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Amir Ahmad
11 Nov 2025 12:32 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि बुनियादी ढांचा विकास से जुड़े टेंडरों में केवल तकनीकी आधारों पर दखल देने से राज्य को भारी आर्थिक नुकसान हो सकता है। ऐसे मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप केवल तभी किया जाना चाहिए जब मनमानी या गंभीर अनियमितताओं का स्पष्ट संकेत मिले।
जस्टिस शेखर बी. सराफ और जस्टिस प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता, जो सड़क निर्माण के व्यवसाय से जुड़ा है, टेंडर प्रक्रिया में अपनी असफलता को लेकर काल्पनिक शिकायतें और व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता के आधार पर मुद्दा खड़ा कर रहा है तथा तिल का ताड़ बनाने की कोशिश कर रहा है। अदालत ने कहा कि ऐसे तकनीकी या प्रक्रिया संबंधी आरोपों पर कोर्ट की दखलअंदाजी सरकारी कामों को रोक देगी और राज्य को बड़े पैमाने पर वित्तीय हानि पहुंचेगी।
मामले में याचिकाकर्ता ने लोक निर्माण विभाग, प्रतापगढ़ द्वारा जारी ई-टेंडर में भाग लिया था और अरुणिमा कंस्ट्रक्शंस के खिलाफ आपत्तियाँ दर्ज करने का दावा किया। याचिकाकर्ता का आरोप था कि आपत्तियों के बावजूद कंपनी को वित्तीय बोली में शामिल किया गया। अंततः सफल बोलीदाता घोषित किया गया। याचिकाकर्ता ने अपने निविदा पत्र की अस्वीकृति और सफल बोलीदाता बनाए जाने के फैसले को चुनौती दी थी।
अदालत ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों में यह स्थापित किया जा चुका है कि संविदात्मक मामलों में अदालतों को अत्यधिक हस्तक्षेप से बचना चाहिए। न्यायिक पुनर्विचार का उद्देश्य यह देखना है कि निर्णय कानूनी रूप से लिया गया है या नहीं, न कि यह कि निर्णय सही है या गलत। अदालत ने कहा कि यदि निर्णय प्रामाणिक और सार्वजनिक हित में है तो न्यायिक पुनर्विचार की शक्ति का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
अदालत ने यह भी पाया कि टेंडर पोर्टल पर आपत्तियां दर्ज कराने का अवसर होते हुए भी याचिकाकर्ता ने निर्धारित अवधि में कोई आपत्ति नहीं दर्ज कराई। अदालत ने कहा कि 72 घंटे का समय अत्यंत महत्वपूर्ण था। इस अवधि के बाद आपत्तियां नहीं उठाई जा सकतीं। याचिका में लगाए गए आरोपों को अस्पष्ट और बेबुनियाद बताते हुए अदालत ने कहा कि रिट अधिकार क्षेत्र निजी हितों या संविदात्मक विवादों की रक्षा के लिए नहीं है।
अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता ने तथ्यों को छिपाया और साफ हाथों के सिद्धांत का उल्लंघन किया। इस आधार पर याचिका को खारिज कर दिया गया।
अंततः कोर्ट ने कहा कि इस मामले में हस्तक्षेप करना न केवल अनुचित होता बल्कि इससे राज्य के खजाने को भारी नुकसान पहुंच सकता था, इसलिए याचिका को खारिज किया जाता है।

