इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नामित पुत्रों की तुलना में अलग रह रही पत्नी का फैमिली पेंशन पाने का अधिकार बरकरार रखा
Amir Ahmad
31 July 2025 3:19 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अलग रह रही पत्नी के जो अपने पति से भरण-पोषण प्राप्त कर रही थी, पति द्वारा नामित पुत्रों की तुलना में उसकी मृत्यु के बाद फैमिली पेंशन पाने का अधिकार बरकरार रखा है।
जस्टिस मंजू रानी चौहान ने कहा,
"फैमिली पेंशन वैधानिक है और कर्मचारी के एकतरफा नियंत्रण से परे है। फैमिली पेंशन को कानूनी अधिकार माना जाता है दान नहीं।"
याचिकाकर्ता के पति एक सहायक शिक्षक थे, जो 2016 में रिटायर हुए और 2019 में अपनी मृत्यु तक पेंशन प्राप्त कर रहे थे। उनकी मृत्यु के बाद याचिकाकर्ता ने फैमिली पेंशन प्राप्त करने के लिए एक आवेदन दायर किया, जिसे इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि पेंशन स्वीकृति के लिए उनके पति द्वारा प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों में परिवार के विवरण में उनका नाम नहीं था।
इस आदेश के विरुद्ध याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और दावा किया कि ग्राम प्रधान के प्रमाण पत्र उसके द्वारा शुरू की गई भरण-पोषण की कार्यवाही जिसमें उसे 8000 रुपये का भरण-पोषण मिल रहा था और उसकी पासबुक से यह तथ्य सिद्ध होता है कि वह उसकी पत्नी थी।
न्यायालय ने कहा कि उत्तर प्रदेश रिटायरमेंट लाभ नियमावली 1961 के नियम 3 के उपनियम (3) के अंतर्गत परिभाषित 'परिवार' में पत्नी, फिर पति, फिर पुत्र और उसके बाद पुत्रिया तथा अन्य उत्तराधिकारी शामिल हैं। नियम 6 में सरकारी कर्मचारी द्वारा नामांकन का प्रावधान है। यह प्रावधान केवल परिवार के सदस्य तक ही सीमित रखता है। नियम 7 के उपनियम (4) में प्रावधान है कि पेंशन मृतक की विधवा को देय होगी और विधवा न होने पर यह ज्येष्ठ पुत्र को प्रदान की जाएगी।
कोर्ट ने कहा,
“वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता मृतक सरकारी कर्मचारी की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है। नियम, 1961 के नियम-6 के उप-नियम (5) के अनुसार, सरकारी कर्मचारियों को नामांकन करना होगा, जिसमें यह दर्शाया जाएगा कि स्वीकृत पेंशन उनके परिवार के सदस्यों को किस क्रम में देय होगी। बशर्ते कि नामित व्यक्ति उस तिथि को पेंशन प्राप्त करने के लिए अपात्र न हो, जिस तिथि को उसे पेंशन देय हो, नियम, 1961 के नियम-7 के उप-नियम (3) के प्रावधानों के अंतर्गत पेंशन प्राप्त करने के लिए अपात्र न हो।”
न्यायालय ने माना कि पुत्रों की आयु और उनकी आय के कारण वे फैमिली पेंशन प्राप्त करने के लिए अपात्र हैं, जबकि 62 वर्ष की पत्नी, जो अपने पति से भरण-पोषण प्राप्त कर रही थी, फैमिली पेंशन पाने की हकदार थी।
भारत संघ बनाम सतीकुमारी अम्मा मामले में केरल हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए न्यायालय ने कहा कि "फैमिली पेंशन कानूनी रूप से विवाहित जीवनसाथी का वैधानिक अधिकार है और इसे मृतक कर्मचारी की किसी भी घोषणा, नामांकन या कार्रवाई द्वारा रद्द या बहिष्कृत नहीं किया जा सकता है।"
तदनुसार, रिट याचिका को अनुमति दी गई और प्रतिवादी को याचिकाकर्ता के पक्ष में फैमिली पेंशन जारी करने का निर्देश दिया गया।
केस टाइटल: उर्मिला सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 4 अन्य 2025 लाइवलॉ (एबी) 288 [रिट - ए संख्या - 5545/2021]

