SDO को प्रशासनिक स्तर पर भूमिधर अधिकार घोषित करने का अधिकार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Amir Ahmad

14 May 2025 3:30 PM IST

  • SDO को प्रशासनिक स्तर पर भूमिधर अधिकार घोषित करने का अधिकार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 के तहत उप-जिला अधिकारी (SDO) को प्रशासनिक स्तर पर किसी व्यक्ति को भूमिधर अधिकार देने की शक्ति प्राप्त नहीं है।

    जस्टिस क्षितिज शैलेन्द्र की एकल पीठ ने यह निर्णय उस याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया, जिसमें याचिकाकर्ता ने एसडीओ के समक्ष दायर प्रार्थना पत्र पर निर्णय लेने और पूर्ण भूमिधर अधिकार देने के लिए रिट ऑफ मैंडमस की मांग की थी।

    कोर्ट ने कहा,

    "ध्यान से पढ़ने पर साफ होता है कि धारा 131A, 131B (जमींदारी उन्मूलन अधिनियम, 1950) और धारा 76 (राजस्व संहिता, 2006) में केवल किसी व्यक्ति को भूमिधर के रूप में स्थानांतरित अधिकार देने की व्यवस्था की गई लेकिन इन धाराओं में यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा गया कि कौन-सा अधिकारी इस अधिकार को घोषित करेगा। निश्चित रूप से SDO को प्रशासनिक स्तर पर ऐसा अधिकार देने की बात नहीं कही गई।"

    याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता कई वर्षों से भूमिधर (गैर-हस्तांतरणीय अधिकारों के साथ) है, इसलिए उसे एसडीओ द्वारा हस्तांतरणीय अधिकारों के साथ भूमिधर घोषित किया जाना चाहिए।

    उन्होंने जमींदारी उन्मूलन अधिनियम की धाराओं 131A और 131B और राजस्व संहिता की धारा 76 का हवाला दिया।

    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 76(2) के अनुसार, जो व्यक्ति संहिता लागू होने से पहले 5 साल से भूमिधर (गैर-हस्तांतरणीय अधिकारों के साथ) था, वह स्वचालित रूप से भूमिधर (हस्तांतरणीय अधिकारों के साथ) बन जाएगा, लेकिन किसी अधिकारी को यह अधिकार नहीं है कि वह प्रशासनिक स्तर पर इसकी घोषणा करे।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि किसी को इस अधिकार को लेकर विवाद है तो वह धारा 144 के तहत विधिक प्रक्रिया के जरिए दावा कर सकता है।

    इस आधार पर कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि ऐसे अधिकारी को मैंडमस का आदेश नहीं दिया जा सकता, जिसे कानूनी रूप से निर्णय लेने का अधिकार ही नहीं है।

    केस टाइटल: जयराज सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य 3

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