वकीलों को अदालत की कार्यवाही में सहयोग करना चाहिए, व्यवधान नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुवक्किल की ज़मानत खारिज होने के बाद हंगामा करने वाले वकील को फटकार लगाई
Amir Ahmad
26 July 2025 4:02 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस सप्ताह की शुरुआत में एक वकील के आचरण की कड़ी निंदा की, जिसने अपने मुवक्किल की दूसरी ज़मानत याचिका खारिज होने के बाद अदालत कक्ष में हंगामा किया और कार्यवाही में बाधा डाली।
जस्टिस कृष्ण पहल की पीठ ने न्यायालय में वकीलों की दोहरी ज़िम्मेदारियों पर ज़ोर दिया
अदालत कक्ष में एक सम्मानजनक और अनुकूल माहौल बनाए रखना और साथ ही अपने मुवक्किलों के हितों का पूरी लगन से प्रतिनिधित्व करना।
न्यायालय ने आगे कहा कि वकीलों को अदालत की कार्यवाही में व्यवधान डालने के बजाय उसकी सहायता करनी चाहिए ताकि कार्यवाही व्यवस्थित और सम्मानजनक हो जिससे अंततः न्यायिक प्रक्रिया की गरिमा बनी रहे।
इस मामले में न्यायालय सचिन गुप्ता नामक व्यक्ति की दूसरी ज़मानत याचिका पर विचार कर रहा था, जिस पर भारतीय दंड संहिता की धारा 376, 506 और आईटी अधिनियम की धारा 66सी, 67ए के तहत मामला दर्ज किया गया।
उसके वकील ने तर्क दिया कि आवेदक दिसंबर, 2023 से जेल में बंद है और निकट भविष्य में मुकदमे के समाप्त होने की कोई संभावना नहीं है, क्योंकि अब तक केवल दो गवाहों से ही पूछताछ की गई है।
यह तर्क दिया गया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है और इसलिए उसे ज़मानत दी जानी चाहिए।
उन्होंने अदालत को यह भी आश्वासन दिया कि आवेदक मुकदमे में सहयोग करेगा और ज़मानत की स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं करेगा।
दूसरी ओर एडिशनल एडवोकेट जनरल (एजीए) ने ज़मानत याचिका का विरोध किया।
दोनों पक्षों के वकीलों की सुनवाई के बाद अदालत ने कहा कि कारावास की अवधि के अलावा तत्काल ज़मानत याचिका दायर करने का कोई नया आधार नहीं है, इसलिए उसने ज़मानत याचिका खारिज कर दी।
फिर भी अदालत ने निचली अदालत को कार्यवाही में तेजी लाने का निर्देश दिया।
इस समय अदालत ने पाया कि ज़मानत अस्वीकृति आदेश खुली अदालत में सुनाए जाने के बावजूद, आवेदक के वकील यह तर्क देते रहे कि आवेदक के पास ज़मानत का मामला है। इस प्रकार, उन्होंने अदालती कार्यवाही में बाधा डाली।
इस व्यवहार पर आपत्ति जताते हुए और एडवोकेट के व्यवहार को न्यायालय की आपराधिक अवमानना के बराबर का कृत्य बताते हुए, पीठ ने अवमानना कार्यवाही शुरू करने से परहेज किया।
एकल जज ने वकील के आचरण की स्पष्ट रूप से निंदा करते हुए कहा,
"आदेश पारित होने के बाद किसी भी वादी को न्यायालय की कार्यवाही में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं है।”
केस टाइटल - सचिन गुप्ता बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 2025 लाइवलॉ (एबी) 268

