दिल्ली भवन को लेकर किरायेदार नहीं कर सकते विरोध, जीवन की सुरक्षा किरायेदारी अधिकारों से अधिक महत्वपूर्ण: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Amir Ahmad
11 July 2025 12:16 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जर्जर भवन में रह रहे किरायेदारों के जीवन को खतरे से बचाना उत्तर प्रदेश नगरीय परिसरों का किरायेदारी विनियमन अधिनियम, 2021 के तहत उनके किरायेदारी अधिकारों की तुलना में अधिक प्राथमिकता रखता है।
जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस जयंत बनर्जी की खंडपीठ ने कहा,
“किरायेदार उस भवन के शीघ्र ध्वस्तीकरण (डिमोलिशन) का विरोध नहीं कर सकते, विशेष रूप से तब जब संबंधित प्राधिकरणों ने स्थल का निरीक्षण कर यह पाया हो कि भवन को गिराना अनिवार्य है। वर्ष 1959 के अधिनियम के तहत जो योजना जीवन रक्षा हेतु लागू है, वह किरायेदारी अधिकारों की तुलना में वरीयता प्राप्त करेगी।”
याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था ताकि उसे उस भवन को गिराने के लिए पुलिस सहायता मिल सके, जिसके वह स्वामी होने का दावा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भवन लगभग 100 वर्ष पुराना है और मरम्मत योग्य स्थिति में नहीं है।
याचिका में यह भी कहा गया कि नगर निगम, अलीगढ़ ने निरीक्षण के बाद भवन को गिराने की सिफारिश की थी। लेकिन किरायेदारों के विरोध के कारण अब तक ध्वस्तीकरण नहीं हो सका।
न्यायालय के समक्ष नगर निगम, अलीगढ़ के नगर आयुक्त ने शपथ पत्र के माध्यम से बताया कि आगामी मानसून के मौसम में भवन गिरने से जनहानि की आशंका है और निगम नागरिकों के जीवन की सुरक्षा हेतु सभी आवश्यक कदम उठा रहा है।
कोर्ट ने कहा कि किरायेदारी अधिनियम की धारा 21(2) के तहत मकान मालिक मरम्मत, पुनर्निर्माण या ध्वस्तीकरण हेतु किरायेदारों की बेदखली के लिए आवेदन कर सकता है। वहीं उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम, 1959 की धारा 331(1) यह अधिकार देती है कि अगर कोई संरचना किसी के लिए खतरा बन गई तो नगर आयुक्त उसे गिराने का आदेश दे सकते हैं।
कोर्ट ने पाया कि भवन जर्जर हालत में है। उसे गिराना आवश्यक है। साथ ही किरायेदारों की स्थिति विवादित है, जिसे रेंट अथॉरिटी देख सकती है। इस पर कोर्ट ने कोई टिप्पणी नहीं की।
अंततः कोर्ट ने यह कहा कि किरायेदारों के जीवन का खतरा उनके किरायेदारी अधिकारों से अधिक बड़ा मुद्दा है। नगर निगम, अलीगढ़ को विधिक प्रक्रिया अनुसार भवन गिराने का निर्देश दिया। साथ ही किरायेदारों को उनका सामान निकालने का उचित अवसर देने को भी कहा।
कोर्ट ने कहा,
"हमें आशा है कि किरायेदार इस बात को समझेंगे कि भवन कभी भी गिर सकता है और जीवन की रक्षा सर्वोपरि है, इसलिए वे भवन ध्वस्तीकरण में कोई विरोध नहीं करेंगे।"
केस टाइटल: अशोक कुमार गुप्ता बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य [रिट - सी संख्या - 6490 / 2025]

