Stamp Act के तहत रजिस्ट्रेशन फीस में कमी की वसूली के लिए कलेक्टर को सशक्त बनाने वाला कोई प्रावधान नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Amir Ahmad
21 Oct 2024 1:34 PM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899 (Stamp Act) में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो कलेक्टर या अन्य स्टाम्प अधिकारियों को रजिस्ट्रेशन फीस में कमी की वसूली करने का अधिकार देता हो।
स्टाम्प ड्यूटी में कमी की वसूली के अलावा, दस्तावेज़ संख्या 1549/2022 और 1548/2022 पर रजिस्ट्रेशन फीस में कमी के संबंध में याचिकाकर्ता के खिलाफ वसूली का आदेश दिया गया।
इसके अलावा रजिस्ट्रेशन फीस में कमी के संबंध में याचिकाकर्ता पर 10,000/- और 50,000/- रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। याचिकाकर्ता ने इस आदेश को अयोध्या मंडल के अपर आयुक्त (स्टांप) के समक्ष चुनौती दी, जिसे खारिज कर दिया गया।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने कुछ धोखेबाजों द्वारा निष्पादित सेल डीड के माध्यम से संपत्ति खरीदी थी। बाद में याचिकाकर्ता और भूमि के वास्तविक मालिक के बीच हुए समझौते के माध्यम से सेल डीड रद्द कर दिए गए।
जब याचिकाकर्ता ने सेल डीड पर भुगतान किए गए स्टांप फीस की वापसी के लिए आवेदन किया तो अधिकारियों ने स्टांप फीस में कमी की ओर इशारा किया। यह तर्क दिया गया कि नोटिस जारी करने से पहले उनमें कोई संतुष्टि दर्ज नहीं की गई।
इसके विपरीत राज्य के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने किसी भी स्तर पर नोटिस की वैधता को चुनौती नहीं दी थी। इसलिए उसे रिट कोर्ट के समक्ष पहली बार इसे उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। दीपक टंडन और अन्य बनाम राजेश कुमार गुप्ता में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया गया।
कोर्ट ने देखा कि दीपक टंडन और अन्य बनाम राजेश कुमार गुप्ता में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि तथ्यात्मक दलील जो निचली कार्यवाही में नहीं ली गई, उसे तीसरे न्यायालय, रिट संशोधन या अपील में नहीं लिया जा सकत।
जस्टिस विद्यार्थी ने माना कि नोटिस का अस्पष्ट होना तथ्य का सवाल नहीं है बल्कि रिकॉर्ड के सामने एक त्रुटि स्पष्ट है। इसे रिट क्षेत्राधिकार में पहली बार चुनौती दी जा सकती है। यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता को जारी किए गए नोटिस अस्पष्ट थे
न्यायालय ने यह भी माना कि रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं था, जो यह दर्शाता हो कि नोटिस में उल्लिखित निरीक्षण याचिकाकर्ता को उचित नोटिस देने के बाद किया गया।
Stamp Act, 1899 और उत्तर प्रदेश स्टाम्प (संपत्ति का मूल्यांकन) नियम, 1997 का हवाला देते हुए जस्टिस सुभाष विद्यार्थी ने कहा कि Stamp Act, 1899 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो अधिकारियों को पंजीकरण शुल्क के भुगतान में किसी कमी की वसूली का आदेश देने का अधिकार देता हो और किसी वैधानिक प्रावधान के अभाव में अधिकारी Stamp Act के तहत शुरू की गई कार्यवाही में रजिस्ट्रेशन फीस की कमी की वसूली के लिए कोई आदेश पारित नहीं कर सकते।
तदनुसार न्यायालय ने नोटिस और आदेशों को खारिज कर दिया और राज्य को नए नोटिस जारी करने की स्वतंत्रता दी।
केस टाइटल: बिंदु सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के माध्यम से प्रधान सचिव राजस्व विभाग लखनऊ और 2 अन्य