16 वर्ष से अधिक उम्र की पत्नी से 2017 से पहले यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2007 का दोषसिद्धि आदेश रद्द किया

Amir Ahmad

15 Oct 2025 3:48 PM IST

  • 16 वर्ष से अधिक उम्र की पत्नी से 2017 से पहले यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2007 का दोषसिद्धि आदेश रद्द किया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि 15 वर्ष से अधिक उम्र की नाबालिग पत्नी के साथ यौन संबंध बनाने के लिए किसी पुरुष को केवल सुप्रीम कोर्ट के इंडिपेंडेंट थॉट बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2017) फैसले के बाद ही दोषी ठहराया जा सकता है उससे पहले नहीं।

    इंडिपेंडेंट थॉट मामले में सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 375 (बलात्कार) के अपवाद 2 की व्याख्या करते हुए इसे बदल दिया था, जिसमें 15 वर्ष से अधिक उम्र की पत्नी के साथ यौन संबंध को बलात्कार नहीं माना जाता। सुप्रीम कोर्ट ने इसे बदलकर 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र की पत्नी से यौन संबंध के रूप में पढ़ा। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह संशोधन भविष्य लक्षी (Prospectively) लागू होगा न कि भूतलक्षी (Retrospectively) प्रभाव से।

    इस फैसले का पालन करते हुए जस्टिस अनिल कुमार-X की पीठ ने 16 वर्ष से अधिक उम्र की लड़की के कथित वैवाहिक बलात्कार के लिए व्यक्ति के खिलाफ दिए गए 2007 का दोषसिद्धि आदेश रद्द कर दिया।

    कोर्ट ने कहा,

    "माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा 'इंडिपेंडेंट थॉट' (मामले में) दिए गए उपरोक्त अवलोकनों से यह स्पष्ट है कि IPC की धारा 375 के अपवाद 2 को इस आधार पर खत्म कर दिया गया कि उक्त प्रावधान POCSO Act के प्रावधानों के साथ असंगत है और अनुच्छेद 14, 15 और 21 का भी उल्लंघन करता है। हालांकि, यह भी माना गया कि सुप्रीम कोर्ट के उक्त निर्णय का प्रभाव भविष्य लक्षी होगा। इस विशेष मामले में यह स्पष्ट है कि कथित घटना वर्ष 2005 में हुई। इसलिए अपीलकर्ता को बलात्कार के अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि घटना के समय पीड़िता 16 वर्ष से अधिक थी और दोनों के बीच शारीरिक संबंध उनके विवाह संपन्न होने के बाद बने थे।"

    अपीलकर्ता को IPC की धारा 363 (अपहरण), 366 (अपहरण या बलपूर्वक विवाह के लिए प्रेरित करना) और 376 (बलात्कार) के तहत दोषी ठहराया गया था। FIR में आरोप लगाया गया कि अपीलकर्ता ने शिकायतकर्ता की 16 वर्षीय बेटी को बहका कर भगा लिया था।

    अपीलकर्ता ने निकाहनामा पेश करते हुए दावा किया कि उसने और पीड़िता ने 29 अगस्त, 2005 को विवाह कर लिया था। ट्रायल कोर्ट ने पीड़िता के बयान के आधार पर यह माना कि उसे बहकाकर नहीं ले जाया गया और उन्होंने निकाह कियाऔर एक महीने तक खुशी-खुशी साथ रहे थे लेकिन पीड़िता के नाबालिग होने के कारण अपीलकर्ता को दोषी ठहराया।

    हाईकोर्ट ने अपील पर सुनवाई करते हुए पाया कि माता-पिता की गवाही से ऐसा कुछ भी सामने नहीं आया, जो यह दर्शाए कि अपीलकर्ता ने पीड़िता को भगाने के लिए 'बहकाया' था। कोर्ट ने नोट किया कि पीड़िता ने अपने बयान में खुलासा किया कि जब अपीलकर्ता ने उसे यात्रा पर चलने के लिए कहा तो वह स्वेच्छा से चली गई और उसके हिस्से में कोई हेरफेर नहीं है।

    कोर्ट ने कहा कि केवल यात्रा पर चलने के लिए कहने से ही धारा 363 के तहत बहकाना और ले जाना साबित नहीं होता है। चूंकि वह स्वेच्छा से भागी थी और शारीरिक संबंध उनके विवाह के बाद बने थे, इसलिए धारा 366 (अपहरण) का अपराध भी नहीं बनता है।

    नाबालिग लड़की के साथ यौन संबंध और बाल विवाह के मुद्दे पर कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम कानून के तहत विवाह की न्यूनतम आयु 15 वर्ष है, जबकि बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के तहत महिला के लिए न्यूनतम आयु 18 वर्ष है।

    कोर्ट ने इंडिपेंडेंट थॉट फैसले का हवाला देते हुए निष्कर्ष निकाला कि POCSO Act के प्रावधान किसी भी अन्य कानून (IPC सहित) के प्रावधानों पर असंगति की सीमा तक अध्यारोही (Override) होंगे।

    कोर्ट ने जोर दिया कि नाबालिग पत्नी के बलात्कार से संबंधित धारा 375 में संशोधन निर्णय की तारीख से भविष्य लक्षी प्रभाव के साथ किया गया। इसलिए कोर्ट ने माना कि अपीलकर्ता को 2005 में अपनी नाबालिग पत्नी के साथ विवाह के बाद यौन संबंध बनाने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

    तदनुसार, हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि आदेश रद्द कर दिया।

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