जेल में बंद रहने के कारण छूटे काम के बदले कर्मचारी को नहीं मिल सकता वेतन, काम नहीं तो वेतन नहीं लागू: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Amir Ahmad
11 March 2025 7:53 AM

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लगभग 3 वर्षों से जेल में बंद कर्मचारी को राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि जेल में बंद रहने के कारण छूटे काम के बदले कर्मचारी को उक्त अवधि का वेतन वापस पाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि 'काम नहीं तो वेतन नहीं' का सिद्धांत लागू होता है।
उपभोक्ताओं से बिजली कनेक्शन के लिए कथित तौर पर रिश्वत लेने के आरोप में याचिकाकर्ता के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(1)(बी) सहपठित धारा 13(1) के तहत FIR दर्ज की गई। इसके बाद याचिकाकर्ता 23.01.2015 से 18.12.2018 तक जेल में बंद रहा।
जब याचिकाकर्ता ने उक्त अवधि के वेतन के भुगतान के लिए प्राधिकरण से संपर्क किया तो 'काम नहीं तो वेतन नहीं' के सिद्धांत के आधार पर उसका अनुरोध खारिज कर दिया गया। तदनुसार, याचिकाकर्ता ने कारावास की अवधि के वेतन के भुगतान की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
न्यायालय ने माना कि केवल दुर्लभ मामलों में ही जैसे कि नियोक्ता द्वारा कर्मचारी के कर्तव्यों के निर्वहन में बाधा उत्पन्न करना काम नहीं तो वेतन नहीं सिद्धांत को छोड़ा जा सकता है।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया बनाम भोपाल सिंह पंचाल में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि कर्मचारी किसी कदाचार में संलिप्त होने के कारण काम से अनुपस्थित था। बैंक, जो कि उस मामले में नियोक्ता है, उसे काम से दूर रखने के लिए जिम्मेदार नहीं था। यह माना गया कि ऐसे अनुपस्थित कर्मचारी के वेतन का भुगतान करने का भार बैंक पर नहीं डाला जा सकता जब उसने कोई काम नहीं किया।
रणछोड़जी चतुरजी ठाकोर बनाम अधीक्षक अभियंता, गुजरात विद्युत बोर्ड, हिम्मतनगर (गुजरात) और अन्य में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जब कोई कर्मचारी किसी कथित अपराध के लिए जेल में बंद होता है और बाद में बरी हो जाता है तो नियोक्ता पर कारावास की अवधि के लिए वेतन वापस देने का भार नहीं डाला जा सकता। खासकर तब जब काम से ऐसी अनुपस्थिति किसी अनुशासनात्मक जांच के कारण न हो जिसे बाद में अमान्य पाया जाता है।
जस्टिस अजय भनोट ने कहा,
"निर्णय के पिछले भाग में पाए गए तथ्यों और ऊपर चर्चित कानून की स्थिति के मद्देनजर इस मामले में काम नहीं तो वेतन नहीं के सिद्धांत में ढील नहीं दी जा सकती। वास्तव में काम नहीं तो वेतन नहीं के सिद्धांत के विपरीत पिछला वेतन देने से याचिकाकर्ता को अनुचित लाभ होगा और राज्य के खजाने को अनुचित नुकसान होगा। याचिकाकर्ता को अपने कारावास की अवधि के दौरान किसी भी पिछले वेतन की अवधि के लिए कोई वैध अधिकार नहीं है।"
तदनुसार कारावास की अवधि के लिए पिछले वेतन की मांग करने वाली रिट याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: शिवाकर सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 5 अन्य [रिट - ए संख्या - 10045/2020]