सार्वजनिक शांति, सुरक्षा के लिए हानिकारक आचरण पर आपराधिक मामला लंबित होने के दौरान शस्त्र लाइसेंस रद्द किया जा सकता है: इलाहाबाद हाइकोर्ट

Amir Ahmad

5 Feb 2024 7:50 AM GMT

  • सार्वजनिक शांति, सुरक्षा के लिए हानिकारक आचरण पर आपराधिक मामला लंबित होने के दौरान शस्त्र लाइसेंस रद्द किया जा सकता है: इलाहाबाद हाइकोर्ट

    इलाहाबाद हाइकोर्ट की लखनऊ पीठ ने इस आधार पर फायरआर्म्स लाइसेंस रद्द करने को बरकरार रखा कि याचिकाकर्ता के आचरण के सार्वजनिक शांति और सुरक्षा के लिए हानिकारक होने के संबंध में प्राधिकरण द्वारा स्पष्ट रूप से तथ्यात्मक निष्कर्ष दर्ज किए गए।

    कोर्ट ने कहा कि शस्त्र अधिनियम, 1959 (Arms Act, 1959) की धारा 17 लाइसेंसिंग प्राधिकारी को दिए गए फायरआर्म्स लाइसेंस की शर्तों को बदलने का अधिकार देती है। लाइसेंसिंग प्राधिकारी के पास फायरआर्म्स लाइसेंस निलंबित या रद्द करने की भी शक्ति है, यदि अन्य बातों के साथ लाइसेंसिंग प्राधिकारी संतुष्ट है कि निलंबन या कैंसिलेशन सार्वजनिक शांति की सुरक्षा के लिए या सार्वजनिक सुरक्षा के लिए आवश्यक है।

    न्यायालय ने माना कि राम प्रताप सिंह बनाम यूपी राज्य और अन्य में इलाहाबाद हाइकोर्ट का निर्णय, जहां यह माना गया कि केवल आपराधिक कार्यवाही का लंबित होना फायरआर्म्स लाइसेंस रद्द करने का आधार नहीं है वहां लागू नहीं होगा, जहां लाइसेंसिंग प्राधिकारी ने मामले के तथ्यों पर निष्पक्ष रूप से विचार किया और रद्द करने का आदेश पारित किया।

    जस्टिस अब्दुल मोइन ने कहा,

    "ये सभी तथ्यों के निष्कर्ष हैं और यह दिखाने के लिए किसी भी चीज़ के अभाव में कि सक्षम प्राधिकारी द्वारा निकाला गया उपरोक्त निष्कर्ष अवैध है। न्यायालय को इसमें हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता है, जैसे कि अपील में बैठा हो, क्योंकि भारत के संविधान के अनुच्छेद 226/227 के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए ऐसे मामलों में न्यायिक पुनर्विचार का दायरा बहुत सीमित और संकीर्ण है।”

    पूरा मामला

    याचिकाकर्ता का Arms Act 2025 तक रिन्यू किया गया। इसे 2021 में थाना कटरा बाजार पुलिस की सिफारिश पर सक्षम प्राधिकारी द्वारा रद्द कर दिया गया। आईपीसी, आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 1972 (Criminal Law Amendment Act 1972) और सार्वजनिक संपत्ति अधिनियम 1984 (public property Act 1984) के तहत कुछ एफआईआर दर्ज की गईं जहां याचिकाकर्ता ने अपना नाम न बताने का दावा किया जिसके कारण लाइसेंस रद्द कर दिया गया। अपीलीय प्राधिकार ने शस्त्र लाइसेंस रद्द करने के आदेश को बरकरार रखा।

    राम प्रताप सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य मामले में इलाहाबाद हाइकोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि आपराधिक कार्यवाही का लंबित होना हथियार लाइसेंस रद्द करने का कोई आधार नहीं है।

    इसके विपरीत सरकारी वकील ने तर्क दिया कि सक्षम प्राधिकारी की विशिष्ट खोज है कि याचिकाकर्ता के पास हथियार लाइसेंस जारी रखना सार्वजनिक शांति और सार्वजनिक सुरक्षा के लिए हानिकारक होगा।

    हाईकोर्ट का फैसला

    कोर्ट ने कहा कि यह स्थापित कानून है कि आपराधिक मामला लंबित होने के आधार पर हथियार का लाइसेंस रद्द नहीं किया जा सकता है। हालांकि, जहां सक्षम प्राधिकारी द्वारा इस तथ्य की विशिष्ट खोज की जाती है कि व्यक्ति के पास फायरआर्म्स लाइसेंस सार्वजनिक शांति और सुरक्षा के लिए हानिकारक होगा, रद्दीकरण वैध है।

    कोर्ट ने कहा कि जिस क्षेत्र में सीआरपीसी की धारा 144 के तहत आदेश जारी किया गया, वहां याचिकाकर्ता पर अफवाह फैलाने, अपने हथियार के साथ खड़े होने और आधी रात में यातायात में बाधा डालने का आरोप लगाया गया। तदनुसार, याचिकाकर्ता का आचरण सार्वजनिक शांति और सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा पाया गया, जिसके कारण सक्षम प्राधिकारी को हथियार लाइसेंस रद्द करना पड़ा।

    अदालत ने आगे कहा कि हालांकि व्यक्ति ने दलील दी थी कि वह मौके पर मौजूद नहीं था, लेकिन वह यह दलील देने और उन अधिकारियों की ओर से किसी भी गलत इरादे को साबित करने में विफल रहा, जिन्होंने उस पर ऐसे आरोप लगाए।

    न्यायालय ने माना कि रद्दीकरण आदेश में लाइसेंसिंग प्राधिकारी की वस्तुनिष्ठ संतुष्टि दर्ज की गई, इसलिए वही वैध है।

    तदनुसार, रिट याचिका खारिज कर दी गई।

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