इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग रेप पीड़िता के दूसरे बयान पर राज्य की आपत्ति और पॉलीग्राफ टेस्ट पर जोर देने पर उठाए सवाल
Amir Ahmad
4 Dec 2025 12:59 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक नाबालिग रेप पीड़िता से जुड़े मामले में बलरामपुर के पुलिस अधीक्षक (SP) के व्यक्तिगत हलफनामे में चौंकाने वाली और महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाने पर कड़ी आपत्ति जताई।
हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख सचिव (गृह) से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा और राज्य के इस फैसले पर भी हैरानी जताई है कि वह पीड़िता के बयान को दोबारा दर्ज करने की अनुमति देने वाले कोर्ट के आदेश को चुनौती दे रहा है।
जस्टिस अब्दुल मोइन और जस्टिस बबीता रानी की खंडपीठ ने एसपी द्वारा इस तरह का हलफनामा कैसे दाखिल किया गया और पीड़िता के बयान को दोबारा दर्ज करने का निर्देश देते समय सक्षम अदालत द्वारा पहले ही दर्ज की गई परिस्थितियों के बावजूद, राज्य पीड़िता और उसके पिता के पॉलीग्राफ टेस्ट पर क्यों जोर दे रहा है, इन मुद्दों पर स्पष्टीकरण मांगा।
खंडपीठ एक शिकायतकर्ता-याचिकाकर्ता द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें नामित आरोपी के खिलाफ अपहरण के मामले की जांच को स्थानांतरित करने की मांग की गई। याचिका में दावा किया गया कि संबंधित अधिकारी निष्पक्ष तरीके से कार्रवाई नहीं कर रहे थे।
झूठा हलफनामा और तथ्य छिपाना
17 नवंबर, 2025 को हाईकोर्ट ने एसपी बलरामपुर को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया, जिसमें 22 अक्टूबर 2024 को प्राथमिकी दर्ज होने के बाद की गई जांच का विवरण दिया जाए।
एसपी ने अपने हलफनामे में कहा कि पीड़िता और उसके पिता के पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए एक आवेदन न्यायिक मजिस्ट्रेट-I बलरामपुर के समक्ष विचाराधीन है। पुलिस ने पीड़िता द्वारा दिए गए दो विपरीत बयानों का हवाला देते हुए इस कदम को उचित ठहराया।
हालांकि, सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने एसपी के हलफनामे में एक गंभीर विसंगति का खुलासा किया। यह बताया गया कि पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए आवेदन (पीड़िता और उसके पिता का) वास्तव में एसपी द्वारा शपथ और सत्यापन करने से एक दिन पहले 1 दिसंबर को ही अदालत द्वारा खारिज कर दिया गया था।
इस दलील को रिकॉर्ड पर लेते हुए हाईकोर्ट ने टिप्पणी की पहली नजर में ही यह स्पष्ट हो जाता है कि पुलिस अधीक्षक, बलरामपुर द्वारा दायर किया गया हलफनामा एक झूठा हलफनामा है, जो पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए आवेदन के विचाराधीन होने का संकेत देता है बिना मामले के पूरे तथ्यों पर ध्यान दिए।"
कोर्ट ने इसे हलफनामे की चौंकाने वाली प्रकृति का पहला संकेत बताया। इसके अलावा, खंडपीठ ने पीड़िता के प्रति राज्य के विरोधी रवैये पर भी गहरी चिंता व्यक्त की।
पीड़िता के बयान को दोबारा दर्ज करने के आदेश पर राज्य की आपत्ति
इसके बाद खंडपीठ ने मामले के "दूसरे चौंकाने वाले पहलू" की ओर ध्यान दिया।
पीड़िता का पहला बयान पिछले साल 28 अक्टूबर को भारतीय न्याय संहिता (BNSS) की धारा 183 के तहत दर्ज किया गया। बाद में उसने विशेष न्यायाधीश, POCSO Act बलरामपुर के समक्ष अपना बयान दोबारा दर्ज करने के लिए एक आवेदन दायर किया।
पीड़िता ने बताया कि आरोपी और पुलिस द्वारा डाले गए दबाव के कारण वह पहले उसके साथ किए गए रेप के अपराध के संबंध में सही बयान नहीं दे सकी थी।
POCSO जज ने 8 जनवरी को इस याचिका को स्वीकार कर लिया और पीड़िता के बयान को दोबारा दर्ज करने का निर्देश दिया। इसके बाद 19 मार्च को उसका नया बयान दर्ज किया गया, जिसमें उसने स्पष्ट रूप से कहा कि आरोपी ने उसका यौन उत्पीड़न किया था।
इसके बावजूद, अदालत ने इसे अजीब पाया कि राज्य ने स्पेशल जज के उस आदेश को चुनौती देने का फैसला किया, जिसने उसके बयान को दोबारा दर्ज करने का निर्देश दिया था। यह चुनौती वर्तमान में हाईकोर्ट में लंबित है।
खंडपीठ ने कहा कि वह यह नहीं समझ पा रही है कि राज्य एक ऐसे आदेश से कैसे व्यथित हो सकता है, जिसने चल रही जांच के बीच केवल पीड़िता के बयान को दोबारा दर्ज करने का निर्देश दिया हो।
बेंच ने टिप्पणी की,
"यह दूसरी बात हो सकती थी कि आरोपी ने उक्त आदेश को चुनौती दी हो, लेकिन हम यह समझने में विफल हैं कि राज्य ने किस तरह की कल्पना के तहत उक्त आदेश को चुनौती देने का फैसला किया।"
पॉलीग्राफ टेस्ट पर जोर क्यों?
कोर्ट ने पुलिस अधिकारियों के इस तर्क पर भी सवाल उठाया कि जब पीड़िता पहले ही अपना रुख स्पष्ट कर चुकी है तो पीड़िता और उसके पिता के पॉलीग्राफ टेस्ट पर जोर देने का क्या औचित्य है।
खंडपीठ ने टिप्पणी की कि एक बार जब सक्षम अदालत ने यह स्वीकार कर लिया कि पहले का बयान दबाव में दर्ज किया गया और एक नए बयान की अनुमति दी गई, जिसमें रेप का अपराध बनता है तो पॉलीग्राफ टेस्ट कराने का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता है।
इस प्रकार, मामले के उपरोक्त चौंकाने वाले पहलुओं को देखते हुए कोर्ट ने एक सप्ताह के भीतर यूपी के प्रमुख सचिव (गृह) से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है। मामले की अगली सुनवाई अब 15 दिसंबर को सूचीबद्ध है।

