पितृत्व विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का सख़्त रुख: DNA Test सामान्य प्रक्रिया नहीं, पति की याचिका खारिज

Amir Ahmad

26 Nov 2025 12:17 PM IST

  • पितृत्व विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का सख़्त रुख: DNA Test सामान्य प्रक्रिया नहीं, पति की याचिका खारिज

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा कि पितृत्व निर्धारण के लिए DNA Test का आदेश केवल इसलिए नहीं दिया जा सकता कि किसी पक्ष ने बच्चे के जन्म को लेकर संदेह जताया। अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसा आदेश तभी दिया जा सकता है जब यह साबित हो जाए कि संबंधित अवधि में पति–पत्नी के बीच सहवास का कोई अवसर ही नहीं था।

    जस्टिस चवन प्रकाश की सिंगल बेंच ने यह अवलोकन घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत दर्ज मामले में पति द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका पर किया, जिसमें उसने अपनी पत्नी से जन्मे बच्चे को अवैध बताते हुए DNA Test की मांग की थी। अदालत ने यह याचिका खारिज कर दी।

    मामला वर्ष 2008 में विवाह के बाद उत्पन्न विवाद से जुड़ा था। पति का दावा था कि उसकी पत्नी मात्र एक सप्ताह ही वैवाहिक घर में रही और वह एक शिक्षित महिला होने के कारण अनपढ़ ग्रामीण पति के साथ रहना नहीं चाहती थी। उसने यह आरोप लगाया कि दिसंबर, 2012 में जन्मी बच्ची उसकी जैविक संतान नहीं है, क्योंकि पत्नी मई 2011 से मायके में रह रही थी।

    ट्रायल कोर्ट ने DNA Test का आवेदन खारिज कर दिया था जिसे अपीलीय अदालत ने बरकरार रखा थता। पति ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में पुनर्विचार दायर किया।

    हाईकोर्ट ने साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 का हवाला देते हुए कहा कि वैवाहिक संबंध के दौरान पैदा हुआ बच्चा वैध माना जाता है और यह वैधता एक निष्कर्षात्मक साक्ष्य है। अदालत ने कहा कि यह विधिक अनुमान बच्चे की पारिवारिक पहचान और संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए है और इस अनुमान को केवल तभी तोड़ा जा सकता है, जब पति–पत्नी के बीच पूर्ण रूप से मिलन का अवसर न होना सिद्ध हो जाए।

    अदालत ने कहा कि नॉन-एक्सेस का अर्थ केवल साथ न रहना नहीं है बल्कि ऐसा कोई अवसर ही न होना चाहिए जहां संतान उत्पन्न हो सके। वर्तमान मामले में पति केवल यह कहता रहा कि पत्नी कुछ दिन ही साथ रही लेकिन उसने ऐसा कोई ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया, जिससे यह सिद्ध होता कि दोनों के बीच संतानोत्पत्ति अवधि में बिल्कुल भी संपर्क या अवसर नहीं था।

    न्यायालय ने पाया कि ट्रायल कोर्ट द्वारा दिए गए आदेशों में कोई त्रुटि नहीं है और पति की याचिका तथ्यों तथा कानून दोनों के स्तर पर कमजोर थी। इस आधार पर पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी गई।

    इस निर्णय के साथ हाईकोर्ट ने स्पष्ट संदेश दिया कि पितृत्व विवाद के नाम पर DNA Test को सामान्य या नियमित प्रक्रिया नहीं बनाया जा सकता, विशेषकर तब जब कानून पहले से ही वैध विवाह में जन्मे बच्चे की पितृत्व को संरक्षित करता है।

    Next Story