FSS Act| अपराध की तिथि खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट प्राप्त होने पर होगी, न कि सैंपल एकत्र किए जाने पर: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Amir Ahmad
27 Nov 2024 3:04 PM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 के तहत अपराध की तिथि खाद्य विश्लेषक की अनुपयुक्त/असुरक्षित खाद्य पदार्थ के बारे में रिपोर्ट प्राप्त होने पर निर्धारित होती है न कि खाद्य पदार्थ का सैंपल एकत्र किए जाने की तिथि पर।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि असुरक्षित या घटिया दूध की बिक्री के मामले में अपराध की तिथि खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट प्राप्त होने पर निर्धारित होगी न कि सैंपल एकत्र किए जाने की तिथि पर।
जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने राजस्थान राज्य बनाम संजय कुमार एवं अन्य 1998 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें यह माना गया कि औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 के प्रयोजनों के लिए सीआरपीसी की धारा 469 पर विचार करते हुए अपराध की तिथि वह तिथि होगी, जिस दिन सरकारी विश्लेषक की रिपोर्ट प्राप्त हुई हो।
इसके साथ ही न्यायालय ने केवल डेयरी द्वारा दायर CrPC की धारा 482 के तहत दायर याचिका को खारिज कर दिया मामले में मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट-प्रथम कानपुर नगर द्वारा पारित आदेश को रद्द करने की मांग की गई। साथ ही अधिनियम 2006 की धारा 51 और 59(i) के तहत शिकायत मामले की पूरी कार्यवाही को भी रद्द करने की मांग की गई थी।
मामला संक्षेप में
खाद्य सुरक्षा अधिकारी ने 24 नवंबर, 2017 को आवेदक के परिसर से दूध का सैंपल एकत्र किया। उसके बाद सैंपल को विश्लेषण के लिए क्षेत्रीय खाद्य लैब मेडिकल कॉलेज परिसर मेरठ में खाद्य विश्लेषक के पास भेजा गया।
10 दिसंबर, 2017 को प्राप्त पहली रिपोर्ट ने पुष्टि की कि दूध घटिया था। इसके बाद आवेदक को एक नोटिस जारी किया गया, जिसने खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट के खिलाफ नामित अधिकारी के समक्ष अपील दायर की जिसे अनुमति दी गई। सैंपल को फिर से नए सिरे से विश्लेषण के लिए भेजा गया।
25 अप्रैल 2018 को प्राप्त दूसरी रिपोर्ट में दूध का सैंपल फिर से घटिया और असुरक्षित पाया गया।
14 मई, 2018 को खाद्य सुरक्षा अधिकारी ने अभियोजन स्वीकृति के लिए आवेदन किया जो 20 जून, 2019 को प्रदान की गई। उसके बाद 4 जुलाई, 2019 को आपत्तिजनक शिकायत दर्ज की गई।
आवेदक ने तर्क दिया कि आपत्तिजनक कार्यवाही सीमा द्वारा वर्जित है, क्योंकि वर्तमान मामले में सैंपल 24 नवंबर 2017 को एकत्र किया गया लेकिन शिकायत एक वर्ष से अधिक समय के बाद 04 जुलाई 2019 को दर्ज की गई। धारा 468 CrPC को देखते हुए अदालत को संज्ञान लेने से रोक दिया गया।
दूसरी ओर एजीए ने प्रस्तुत किया कि 2006 अधिनियम के लागू होने के बाद अधिनियम 2006 की धारा 77 के तहत अधिनियम 2006 के तहत संज्ञान लेने के संबंध में विशेष प्रावधान प्रदान किया गया, जो यह प्रावधान करता है कि न्यायालय अपराध के होने की तिथि से एक वर्ष की समाप्ति के बाद अधिनियम के तहत अपराध का संज्ञान नहीं लेगा।
यह भी प्रस्तुत किया गया कि खाद्य सुरक्षा आयुक्त द्वारा दर्ज किए जाने वाले कारणों से उक्त एक वर्ष की अवधि को तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
यह तर्क दिया गया कि ऐसे मामलों में धारा 468 CrPC लागू नहीं होगी जब विशिष्ट प्रावधान मौजूद हो, क्योंकि अधिनियम 2006 की धारा 89 में विशेष रूप से प्रावधान है कि यह अधिनियम अन्य सभी अधिनियमों को अधिरोहित करेगा।
हाईकोर्ट की टिप्पणियां
इन प्रस्तुतियों की पृष्ठभूमि में संजय कुमार (सुप्रा) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के 1998 के फैसले का हवाला देते हुए न्यायालय ने टिप्पणी की कि अपराध की तिथि 10 दिसंबर, 2017 होगी जब सैंपल रिपोर्ट प्राप्त हुई।
इसके अलाव न्यायालय ने टिप्पणी की कि इस मामले में अभियोजन स्वीकृति के लिए आवेदन 14 मई, 2018 को प्रस्तुत किया गया। स्वीकृति 20 जून, 2019 को दी गई इसलिए, 14 मई, 2018 और 20 जून, 2019 के बीच की अवधि को धारा 470 (3) CrPC के कारण बाहर रखा जाएगा, जो यह प्रावधान करता है कि सीमा अवधि की गणना करते समय स्वीकृति देने के लिए मंजूरी देने वाले प्राधिकारी द्वारा लिया गया समय बाहर रखा जाना चाहिए।
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि 4 जुलाई 2019 को दायर की गई शिकायत अपराध की तारीख (10 दिसंबर, 2017) से एक वर्ष के भीतर दायर की गई, क्योंकि 14 मई, 2018 और 20 जून, 2019 के बीच की अवधि को बाहर रखा जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि यदि यह माना जाता है कि शिकायत अपराध की तारीख से एक वर्ष के बाद दायर की गई तब भी इसे सीमा द्वारा वर्जित नहीं किया जाएगा, क्योंकि 2006 अधिनियम की धारा 77 तीन साल तक के विस्तार की अनुमति देती है यदि खाद्य सुरक्षा आयुक्त अभियोजन में देरी के लिए विशिष्ट कारणों को दर्ज करता है।
न्यायालय ने जोर देकर कहा कि इस मामले में आयुक्त ने अपराध की तारीख से तीन साल के भीतर अभियोजन के लिए अनुमोदन दिया, जिसमें दस्तावेजी कारण भी थे। आवेदक का तर्क कि एक वर्ष के बाद अभियोजन की समय-सीमा समाप्त हो गई यह खारिज किए जाने योग्य था।
न्यायालय ने कहा कि जहां तक आवेदक के वकील का यह तर्क है कि अपराध एक वर्ष के लिए दंडनीय है।
धारा 468 CrPC के कारण एक वर्ष के बाद संज्ञान नहीं लिया जा सकता है। यह गलत है, क्योंकि अधिनियम, 2006 की धारा 77 के अनुसार एक वर्ष के बाद भी अभियोजन को आयुक्त, खाद्य सुरक्षा द्वारा अनुमोदित किया जा सकता है। आयुक्त द्वारा 20.06.2019 के आदेश द्वारा इसे पहले ही अनुमोदित किया जा चुका है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि अधिनियम, 2006 की धारा 77 के तहत प्रदान की गई सीमा के विस्तार का विशिष्ट प्रावधान धारा 468 CrPC पर प्रबल होगा, क्योंकि अधिनियम, 2006 की धारा 89 के अनुसार FSS Act न केवल खाद्य-संबंधी कानूनों बल्कि सीआरपीसी सहित अन्य कानूनों को भी अधिरोहित करता है। इसके साथ ही आवेदन खारिज कर दिया गया।
केस टाइटल - केवल डेयरी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य