लड़कियों के माता-पिता उनके प्रेम विवाह को अस्वीकार करते हुए पतियों के खिलाफ FIR दर्ज कराते हैं, यह समाज का काला चेहरा दिखाता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Shahadat

8 Feb 2024 6:25 AM GMT

  • लड़कियों के माता-पिता उनके प्रेम विवाह को अस्वीकार करते हुए पतियों के खिलाफ FIR दर्ज कराते हैं, यह समाज का काला चेहरा दिखाता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि यह समाज का 'काला चेहरा' दिखाता है, जहां माता-पिता अपने बच्चों के प्रेम विवाह को अस्वीकार करते हुए पारिवारिक और सामाजिक दबाव में लड़के के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का सहारा लेते हैं, जो परेशान करने वाली प्रवृत्ति को दर्शाता है।

    जस्टिस प्रशांत कुमार की पीठ ने टिप्पणी की,

    “पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने अपनी गहरी पीड़ा दर्ज की, जिससे यह सामाजिक खतरा गहरा हो गया कि आजादी के 75 साल बाद भी हम उनके विरोधियों के साथ केवल इसी मुद्दे पर मामले लड़ रहे हैं।”

    यह टिप्पणी लड़के द्वारा उसकी पत्नी के पिता के कहने पर आईपीसी की धारा 363, 366 और POCSO Act की धारा 7/8 के तहत दर्ज मामले की पूरी कार्यवाही रद्द करने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की गई।

    उनके वकील ने एकल न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया कि आवेदक-लड़के ने विपरीत पक्ष नंबर 3 (लड़की) से शादी की और पति-पत्नी के रूप में एक साथ रह रहे थे। चूंकि, उसके पिता उनकी शादी से खुश नहीं थे, इसलिए उन्होंने आवेदक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की। जांच के बाद उनके खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया था और समन जारी किया गया।

    राज्य के वकील ने उपरोक्त तथ्यों पर कोई विवाद नहीं किया, जबकि लड़की के वकील ने कहा कि वे शादीशुदा हैं और खुशी से रह रहे हैं।

    ऐसे मामलों में सामाजिक प्रतिरोध को 'सबसे बड़ी बाधा' बताते हुए न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि जब दोनों पक्ष सहमति देते हैं और एक बच्चे के साथ पति-पत्नी के रूप में खुशी से रहते हैं तो उनकी शादी को शीर्ष रूप में स्वीकार करने में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए (सुप्रीम कोर्ट के संदर्भ में) मफत लाल और अन्य बनाम राजस्थान राज्य 2022 लाइव लॉ (एससी) 362) के मामले में फैसला।

    उपरोक्त तथ्यों को देखते हुए देखा गया कि आवेदक और विपरीत पक्ष संख्या 3/लड़की पति और पत्नी के रूप में खुशी से एक साथ रह रहे हैं, न्यायालय ने कहा कि आवेदक पर मुकदमा चलाने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा। इसलिए याचिका स्वीकार करते हुए कोर्ट ने मामले की पूरी कार्यवाही रद्द कर दी।

    केस टाइटल- सागर सविता बनाम स्टेट ऑफ यूपी और 2 अन्य 2024 लाइव लॉ (एबी) 76 [आवेदन धारा 482 नंबर - 17109 ऑफ 2023 के तहत]

    Next Story