आगरा में 17वीं सदी के हम्माम की सुरक्षा के लिए याचिका, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की साख पर उठाए सवाल
Amir Ahmad
27 Jan 2025 2:57 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को उस याचिकाकर्ता की साख पर सवाल उठाए, जिसने विरासत भवन [आगरा में 17वीं सदी का हम्माम (सार्वजनिक स्नानघर)] की सुरक्षा के लिए जनहित याचिका (जनहित याचिका) दायर की थी, जिसमें दावा किया गया कि इसे अवैध और अनधिकृत व्यक्तियों द्वारा ध्वस्त किए जाने का खतरा है।
चीफ जस्टिस अरुण भंसाली और जस्टिस विकास बुधवार की खंडपीठ ने सवाल किया कि क्या जनहित याचिका याचिकाकर्ता चंद्रपाल सिंह राणा का इस मामले में कोई व्यक्तिगत हित है और साथ ही उनसे उनके पेशे के बारे में भी पूछा।
यह सवाल इसलिए उठाया गया, क्योंकि खंडपीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता ने अपने हलफनामे में एक जगह खुद को फल विक्रेता बताया था, जबकि दूसरी जगह उसने जनहित याचिका में केवल इतना उल्लेख किया कि वह 'सम्मानित नागरिक' है। उन्हें अपने प्रमाण-पत्र रिकॉर्ड पर लाने के लिए समय देते हुए न्यायालय ने मामले पर सुनवाई स्थगित कर दी।
बता दें कि राणा द्वारा दायर जनहित याचिका में आरोप लगाया गया कि तुर्की शैली में निर्मित हम्माम का निर्माण 1620 में जहांगीर के शासनकाल के दौरान अली वर्दी खान द्वारा किया गया था; हालांकि, हाल ही में इस स्थल को निजी संपत्ति होने का दावा किया गया और कुछ लोगों ने संरचना को ध्वस्त करना शुरू कर दिया।
पिछली सुनवाई में याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम1958 के तहत किसी भी अनधिकृत क्षति से ऐतिहासिक इमारतों की रक्षा करना एएसआई का कर्तव्य है।
तत्कालीन पीठ (जिसमें जस्टिस सलिल कुमार राय और जस्टिस समित गोपाल शामिल थे) को यह भी बताया गया कि आधिकारिक अधिकारियों और स्थानीय पुलिस के समक्ष कई अभ्यावेदन दायर किए गए। हालांकि, इमारत की सुरक्षा के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई। यह भी आग्रह किया गया कि यदि तत्काल आदेश पारित नहीं किए गए तो इमारत को बुलडोजर और मशीनों की सहायता से पूरी तरह से ध्वस्त किया जा सकता है।
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और आगरा के पुलिस आयुक्त को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि आगरा में 17वीं शताब्दी के हम्माम (सार्वजनिक स्नानघर) को कोई नुकसान न पहुंचे।

