नजूल भूमि नीति पर यूपी सरकार के हालिया अध्यादेश को लेकर इलाहाबाद हाइकोर्ट में चुनौती दायर

Amir Ahmad

20 March 2024 9:29 AM GMT

  • नजूल भूमि नीति पर यूपी सरकार के हालिया अध्यादेश को लेकर इलाहाबाद हाइकोर्ट में चुनौती दायर

    नजूल भूमि नीति के संबंध में उत्तर प्रदेश सरकार के हालिया अध्यादेश को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाइकोर्ट में याचिका दायर की गई। पिछले सप्ताह मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने राज्य के वकीलों को मामले में निर्देश प्राप्त करने के लिए समय दिया।

    उल्लेखनीय है कि 7 मार्च 2024 को उत्तर प्रदेश राज्य सरकार ने उत्तर प्रदेश नजूल संपत्ति (सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए प्रबंधन और उपयोग) अध्यादेश 2024 को अधिसूचित किया, जिसके अनुसार अध्यादेश के लागू होने के बाद किसी भी नजूल भूमि को किसी भी निजी व्यक्ति या निजी संस्था के पक्ष में फ्रीहोल्ड में परिवर्तित नहीं किया जाएगा।

    नजूल का अर्थ है- “कोई भी भूमि या भवन, जो सरकार द्वारा बनाए गए सार्वजनिक अभिलेखों के आधार पर सरकार की संपत्ति है”। इसमें वे सभी संपत्तियां भी शामिल हैं, जिनके संबंध में सरकार द्वारा अधिसूचना द्वारा घोषित किसी कानून के तहत पट्टा, लाइसेंस या अधिभोग प्रदान किया गया।

    अध्यादेश की धारा 3 के खंड (3) के अनुसार, नजूल भूमि को फ्रीहोल्ड में परिवर्तित करने के लिए किसी भी न्यायालय या किसी प्राधिकरण के समक्ष लंबित सभी कार्यवाही या आवेदन समाप्त/अस्वीकृत माने जाएंगे। यह भी प्रावधान किया गया कि ऐसे आवेदनों के साथ जमा की गई कोई भी धनराशि जमा करने की तिथि से भारतीय स्टेट बैंक की सीमांत निधि आधारित उधार दर (MCLR) के बराबर ब्याज दर के साथ वापस की जाएगी।

    दूसरे शब्दों में अध्यादेश में यह निर्धारित किया गया कि ऐसी भूमि पर कोई फ्रीहोल्ड नहीं होगा और पट्टे की अवधि समाप्त होने के बाद पट्टे का विस्तार नहीं किया जाएगा।

    इस कार्रवाई का उद्देश्य यह निर्धारित करना है कि पट्टे की अवधि समाप्त होने पर नजूल भूमि का स्वामित्व राज्य को ट्रांसफर हो जाता है। डॉ. अशोक तहिलियानी द्वारा दायर याचिका पर 15 मार्च को सुनवाई करते हुए जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस सुरेन्द्र सिंह-1 की खंडपीठ ने स्थायी अधिवक्ताओं को मामले में निर्देश मांगने की स्वतंत्रता दी और मामले को अगली सुनवाई के लिए 5 अप्रैल को रखने का निर्देश दिया।

    सुनवाई के दौरान तहिलियानी के वकील ने कहा कि मामला अत्यावश्यक है, क्योंकि संरचनाओं के ध्वस्त होने का खतरा है। हालांकि सरकारी वकीलों ने कहा कि आज तक याचिकाकर्ता को बेदखल करने या किसी भी निर्माण को ध्वस्त करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया।

    Next Story