चयन प्रक्रिया शुरू होने के बाद पात्रता नियम बदल गए: हाइकोर्ट ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के अपात्र घोषित उम्मीदवार को मुआवजा देने का निर्देश दिया

Amir Ahmad

24 Jan 2024 8:17 AM GMT

  • चयन प्रक्रिया शुरू होने के बाद पात्रता नियम बदल गए: हाइकोर्ट ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के अपात्र घोषित उम्मीदवार को मुआवजा देने का निर्देश दिया

    इलाहाबाद हाइकोर्ट ने महीने की इलाहाबाद यूनिवर्सिटी को 50,000 रुपये का जुर्माने का भुगतान यदि पंजीकरण फॉर्म बंद होने के बाद मानदंड नहीं बदले गए होते तो उम्मीदवार को 50,000 रुपये दिए जाते, जो पात्र है।

    इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में दूसरे पोस्ट-ग्रेजुएट कोर्स में एडमिश चाहने वाले उम्मीदवार द्वारा दायर याचिका में जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा पहले ही आवेदन करने के बाद पात्रता मानदंड बदल दिया गया, इसलिए बदले हुए नियमों को पूरा करने में विफल रहने पर उसे अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता।

    न्यायालय ने कहा कि शैक्षणिक सत्र समाप्ति के कगार पर है, इसलिए इसलिए यूनिवर्सिटी को याचिकाकर्ता को पाठ्यक्रम में प्रवेश देने का निर्देश नहीं दिया जा सकता।

    न्यायालय ने कहा,

    "याचिकाकर्ता को अत्यधिक पीड़ा हुई और उसे अनावश्यक मुकदमेबाजी में घसीटा गया। तीन मौकों पर इस न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर किया गया।"

    तदनुसार, न्यायालय ने यूनिवर्सिटी को याचिकाकर्ता को 50, 000 रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया।

    मामले की पृष्ठभूमि

    याचिकाकर्ता ने शैक्षणिक वर्ष 2022-23 के लिए इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में एम.ए महिला अध्ययन कोर्स में एडमिशन के लिए आवेदन किया। उक्त कोर्स में एडमिशन के लिए एक अतिरिक्त शर्त प्रदान की गई कि जहां संभावित उम्मीदवार नए पोस्ट-ग्रेजुएट प्रोग्राम में अध्ययन करने में वास्तविक रुचि का दावा करता है और ऐसी वास्तविक रुचि की पुष्टि में विश्वसनीय साक्ष्य प्रस्तुत करता है, वह इस शर्त के अधीन दूसरी पोस्ट-ग्रेजुएट परीक्षा के लिए आवेदन कर सकता है कि उसने प्रथम पीजी परीक्षा 60% से अधिक अंकों से उत्तीर्ण की हो और उसे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के कुलपति द्वारा अनुमति दी गई हो

    याचिकाकर्ता ने 141.1 अंकों के साथ ओबीसी वर्ग में टॉप किया। शॉर्टलिस्टिंग के संबंध में उन्हें कोई सूचना नहीं भेजी गई। याचिकाकर्ता को पता चला कि उससे कम अंक वाले उम्मीदवारों का चयन किया जा रहा है तो उसने यूनिवर्सिटी के समक्ष अभ्यावेदन दायर किया। यूनिवर्सिटी ने याचिकाकर्ता को सूचित किया कि उनकी उम्मीदवारी एडमिशन कमेटी द्वारा अयोग्य पाई गई। इसलिए यह निर्णय लिया गया कि जो उम्मीदवार पहले से ही किसी भी विषय में पोस्ट-ग्रेजुएट उत्तीर्ण कर चुके हैं, वे पोस्ट-ग्रेजुएट के किसी अन्य विषय में एडमिशन के लिए आवेदन कर सकते हैं। उम्मीदवार ने पिछले पीजी कोर्स में 10 में से 9 ग्रेड हासिल की।

    अवमानना ​​अदालत के समक्ष यूनिवर्सिटी ने प्रस्तुत किया कि दूसरे पीजी कोर्स में एडमिशन के लिए इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के कुलपति की मंजूरी आवश्यक है। दूसरे पीजी कोर्स में एडमिशन के मानदंड बदल दिए गए हैं, इसलिए याचिकाकर्ता को द्वितीय पीजी एडमिशन के मानदंडों के अनुसार पात्र नहीं पाया गया।

    याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि खेल शुरू होने के बाद खेल के नियमों को नहीं बदला जा सकता और नए नियमों के आधार पर याचिकाकर्ता को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता। यह प्रस्तुत किया गया कि नए पात्रता मानदंड को ऑनलाइन आवेदन शुरू होने के काफी बाद मंजूरी दी गई। इसलिए इसे याचिकाकर्ता के खिलाफ लागू नहीं किया जा सकता। याचिकाकर्ता अपने आवेदन की तिथि पर उपलब्ध ब्रोशर में निर्दिष्ट नियमों और शर्तों के अनुसार पात्र था।

    इसके विपरीत, प्रतिवादी-यूनिवर्सिटी ने प्रस्तुत किया कि पात्रता मानदंड को ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन खोलने से पहले अकादमिक परिषद की बैठक में पारित प्रस्ताव में शामिल किया गया। उस अकादमिक परिषद की बैठक के कार्यवृत्त को बाद में अनुमोदित किया गया। यह तर्क दिया गया कि रजिस्ट्रेशन बंद करने से पहले मानदंड बदल दिए गए, इसलिए यूनिवर्सिटी को अपने कार्यों के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

    हाईकोर्ट का फैसला

    कोर्ट ने पाया कि पात्रता में बदलाव को रजिस्ट्रेशन फॉर्म और भुगतान बंद होने से पहले मंजूरी दे दी गई। हालांकि, इसे रजिस्ट्रेशन फॉर्म स्वीकार करने की अंतिम तिथि के बाद अधिसूचित किया गया और अंतिम दिन कभी नहीं बढ़ाया गया।

    कहा गया,

    “मामले को ध्यान में रखते हुए यूनिवर्सिटी ने चयन प्रक्रिया शुरू होने के बाद पात्रता के नियमों में बदलाव किया। संशोधित मानदंड याचिकाकर्ता के मामले में लागू नहीं किए जा सकते, क्योंकि वह उसके अनुकूल नहीं है। यूनिवर्सिटी की विवादित कार्रवाई कानून के विपरीत होने के कारण खारिज की जा सकती है। तदनुसार, याचिका खारिज की जाती है।''

    शैक्षणिक सत्र समाप्त हो रहा है, इसलिए अदालत ने कहा कि अब याचिकाकर्ता की उम्मीदवारी पर विचार करने के लिए यूनिवर्सिटी को निर्देश देने का कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा।

    यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता को अत्यधिक पीड़ा हुई और उसे अनावश्यक मुकदमे में घसीटा गया, न्यायालय ने यूनिवर्सिटी को 50, 000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल- अजय सिंह बनाम इलाहाबाद यूनिवर्सिटी और अन्य ।

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