इलाहाबाद हाइकोर्ट ने ट्रांस महिला के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले व्यक्ति को पुलिस सुरक्षा देने का आदेश दिया

Amir Ahmad

22 May 2024 7:10 AM GMT

  • इलाहाबाद हाइकोर्ट ने ट्रांस महिला के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले व्यक्ति को पुलिस सुरक्षा देने का आदेश दिया

    व्यक्तियों के अपने जीवन को स्वतंत्र रूप से जीने के अधिकार की पुष्टि करते हुए, जिसमें अपने साथी को चुनना भी शामिल है, इलाहाबाद हाइकोर्ट ने हाल ही में ट्रांस महिला के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले व्यक्ति को पुलिस सुरक्षा देने का आदेश दिया।

    अपने आदेश में जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनाडी रमेश की पीठ ने जोर देकर कहा कि अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहना जीवन का ऐसा क्षेत्र है, जहां संवैधानिक न्यायालय किसी भी सामाजिक पूर्वाग्रह को नकारने और नियंत्रित करने के लिए संवैधानिक कानून के निर्देशों को सकारात्मक रूप से लागू करते हैं, जो नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकते हैं।

    खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं ['जे' (ट्रांसवुमन) और 'एम' (पुरुष)] द्वारा दायर सुरक्षा याचिका का निपटारा करते हुए टिप्पणी की जो वर्तमान में लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं।

    "मानव की मूल संरचना से उत्पन्न होने वाली धारणा और व्यक्तित्व की विविधता अलग-अलग मनुष्यों को अलग-अलग विकल्प चुनने के लिए प्रेरित करती है। भले ही वे समान परिस्थितियों में हों। इसलिए स्वतंत्र चुनाव का अधिकार स्वतंत्रता की आत्मा है और किसी भी स्वतंत्र समाज की सबसे प्रिय और प्रमुख विशेषता है।”

    मूलतः याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय में यह कहते हुए याचिका दायर की कि 'जे' की जेंडर पहचान के कारण याचिकाकर्ताओं और अन्य लोगों के करीबी रिश्तेदारों के कहने पर उनका जीवन, स्वतंत्रता, सम्मान और सुरक्षा खतरे में है।

    अपनी याचिका में याचिकाकर्ताओं ने विशेष रूप से 'एम' के पिता 'आर' पर 'जे' के खिलाफ मौखिक और शारीरिक हमला करने का आरोप लगाया। साथ ही इसके परिणामस्वरूप याचिकाकर्ताओं द्वारा अपमान सहने का भी आरोप लगाया।

    इसे देखते हुए याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय से पुलिस सुरक्षा की मांग की।

    शुरू में न्यायालय ने कहा कि हमारा संविधान उस स्वतंत्रता को संरक्षित करने का प्रयास करता है, अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ स्वतंत्र रूप से रहने की -और यह कि इस मौलिक अधिकार पर समाज अपने मौजूदा पूर्वाग्रहों के बल पर कभी भी समझौता नहीं कर सकता।

    इसके अलावा न्यायालय ने यह भी कहा कि मनुष्य होने में स्वाभाविक रूप से व्यक्तित्व शामिल होता है और उसे बढ़ावा मिलता है, चाहे वह शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक या अन्यथा हो और यह कि संवैधानिक लोकतंत्र किसी भी मानव समाज में उत्पन्न होने वाली विविध व्यक्तित्व को संरक्षित और सक्रिय रूप से बढ़ावा देने का वादा करता है।

    न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि जब कोई समाज अपने सदस्यों को मौजूदा कानूनों की सीमाओं के भीतर अपने व्यक्तित्व का दावा करने से रोकता है तो यह अपने स्वयं के विकास की प्रक्रिया को बाधित करता है।

    इस पृष्ठभूमि में मामले के तथ्यों और याचिकाकर्ताओं की शिकायतों पर ध्यान देते हुए न्यायालय ने कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ताओं के जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार स्वतंत्र विकल्प और उनकी गरिमा के संरक्षण को संवैधानिक न्यायालय के आश्वस्त सुरक्षात्मक आलिंगन की तत्काल आवश्यकता है।

    तदनुसार, न्यायालय ने सुरक्षात्मक परमादेश जारी किया, जिसमें यह घोषित किया गया कि कोई भी याचिकाकर्ताओं या उनकी संपत्तियों को शारीरिक या अन्यथा नुकसान नहीं पहुंचा सकता है, क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने एक साथ रहने का फैसला किया है। न्यायालय ने कहा कि न्यायालय द्वारा खींची गई यह सुरक्षात्मक रेखा राज्य प्रतिवादियों द्वारा लागू की जाएगी।

    न्यायालय ने आगे आदेश दिया,

    "यदि कोई व्यक्तिनिकाय या संस्था उस सुरक्षा रेखा का उल्लंघन करती है तो उन्हें इस आदेश का सामना करना पड़ सकता है। इसके बाद ऐसे व्यक्ति निकाय या संस्था द्वारा कोई भी निरंतर उल्लंघन स्थापित कानून के अनुसार अवमानना ​​सहित उचित उपाय/कार्यवाही के अधीन हो सकता है।"

    उपरोक्त के मद्देनजर न्यायालय ने प्रतिवादी नंबर 2 को याचिकाकर्ताओं के जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति को सम्मान के साथ संरक्षित करने के लिए पर्याप्त व्यवस्था करके न्यायालय के आदेश का उचित कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के निर्देश के साथ याचिका का निपटारा किया।

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