सोशल मीडिया पोस्ट को लाइक करना उसे पोस्ट करने या शेयर करने के बराबर नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Amir Ahmad
21 April 2025 7:54 AM

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि किसी पोस्ट को लाइक करना उसे पोस्ट या शेयर करने के बराबर नहीं है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि यह सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 [इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील सामग्री प्रकाशित या प्रसारित करने के लिए दंड] के तहत अपराध नहीं होगा।
जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव की पीठ ने कहा कि किसी पोस्ट या संदेश को तब प्रकाशित कहा जा सकता है, जब उसे पोस्ट किया जाता है। किसी पोस्ट या मैसेज को तब प्रसारित कहा जा सकता है जब उसे शेयर या रीट्वीट किया जाता है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि IT Act धारा 67 अश्लील सामग्री साझा करने से संबंधित है न कि अन्य उत्तेजक सामग्री शेयर करने से।
पीठ ने अपने आदेश में स्पष्ट किया,
"कामुक या कामुक रुचि को आकर्षित करने वाले शब्दों का अर्थ यौन रुचि और इच्छा से संबंधित है। इसलिए IT Act की धारा 67 अन्य उत्तेजक सामग्री के लिए कोई दंड निर्धारित नहीं करता है।"
इसके साथ ही एकल जज ने सोशल मीडिया पर कथित भड़काऊ मैसेज को लाइक करने के आरोपी इमरान खान के खिलाफ मामला खारिज कर दिया। इस मैसेज के परिणामस्वरूप कथित तौर पर मुस्लिम समुदाय के लगभग 600-700 लोग एकत्र हो गए थे।
न्यायालय ने कहा,
"वर्तमान मामले में यह आरोप लगाया गया कि केस डायरी में ऐसी सामग्री है, जो दर्शाती है कि आवेदक ने गैरकानूनी रूप से एकत्र होने के लिए फरहान उस्मान नामक व्यक्ति की पोस्ट को लाइक किया लेकिन किसी पोस्ट को लाइक करना पोस्ट को पब्लिश या सेयर करने के बराबर नहीं होगा। इसलिए केवल पोस्ट लाइक करना IT Act की धारा 67 को आकर्षित नहीं करेगा। रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री से ऐसा प्रतीत होता है कि कोई भी मैसेज जो प्रकृति में भड़काऊ हो सकता है, रिकॉर्ड पर उपलब्ध नहीं है। चौधरी फरहान उस्मान द्वारा पब्लिश मैसेज को लाइक करने मात्र से IT Act की धारा 67 या किसी अन्य आपराधिक अपराध के तहत आरोप नहीं लगेगा।"
याचिकाकर्ता पर चौधरी फरहान उस्मान नामक व्यक्ति की पोस्ट को लाइक करने का आरोप था। इस मैसेज में कहा गया था कि वे माननीय राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपने के लिए कलेक्ट्रेट के समक्ष एकत्रित होंगे।
कथित तौर पर उक्त संदेश के कारण मुस्लिम समुदाय के लगभग 600-700 लोग एकत्रित हुए और उन्होंने बिना अनुमति के जुलूस निकाला, जिससे सार्वजनिक व्यवस्था और शांति को गंभीर खतरा पैदा हो गया।
अदालत के समक्ष आवेदक के वकील ने दलील दी कि आवेदक के खिलाफ कोई सामग्री नहीं थी और आवेदक के फेसबुक अकाउंट पर कोई सामग्री नहीं मिली।
दूसरी ओर, एजीए ने केस डायरी के अंश पर भरोसा करते हुए कहा कि आवेदक द्वारा सामग्री हटा दी गई लेकिन यह व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध थी।
यह देखते हुए कि ऐसी कोई सामग्री नहीं थी, जो आवेदक को किसी आपत्तिजनक पोस्ट से जोड़ सके, अदालत ने उसके खिलाफ मामला रद्द कर दिया।
केस टाइटल - इमरान खान बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य 2025 लाइव लॉ (एबी)