इलाहाबाद हाइकोर्ट जज ने SHUATS निदेशक की जमानत याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग किया

Amir Ahmad

4 March 2024 11:43 AM GMT

  • इलाहाबाद हाइकोर्ट जज ने SHUATS निदेशक की जमानत याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग किया

    जस्टिस मंजू रानी चौहान ने पिछले हफ्ते सैम हिगिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज (SHUATS) के निदेशक विनोद बिहारी लाल द्वारा व्यक्ति को गंभीर चोट पहुंचाने के आरोप में उनके खिलाफ दर्ज मामले में दायर जमानत याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग किया।

    यह घटनाक्रम एकल जज द्वारा विभिन्न लंबित मामलों में राज्य सरकार के वकीलों द्वारा दायर जवाबी हलफनामों की गुणवत्ता/पर्याप्तता पर असंतोष व्यक्त करने के कुछ दिनों बाद आया।

    गौरतलब है कि कोर्ट ने 19 फरवरी को 'अप टू द मार्क' जवाबी हलफनामा दायर करने में असमर्थता के लिए राज्य के वकीलों की खिंचाई की थी। न्यायालय ने राज्य के संबंधित आधिकारिक अधिकारियों को प्रभावी, सुसंगत और व्यापक जवाबी हलफनामे का मसौदा तैयार करने को सुनिश्चित करने के लिए एक तंत्र विकसित करने का भी निर्देश दिया था।

    इलाहाबाद हाइकोर्ट ने घटिया जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए राज्य के वकीलों की खिंचाई करते हुए जवाब तैयार करने के लिए प्रभावी अभ्यास तैयार करने का निर्देश दिया।

    एडिशनल एडवोकेट जनरल पी.के. के समक्ष शुआट्स निदेशक लाल की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान एकल न्यायाधीश ने ये कड़ी टिप्पणियां कीं।

    गिरि ने लाल की जमानत याचिका का विरोध किया। कोर्ट ने कहा कि हालांकि एजीए ने सरकारी अस्पताल के डॉक्टर के बयान पर भरोसा किया, लेकिन वह किसी भी सामग्री के आधार पर इसे मजबूत नहीं कर सका, क्योंकि एजीए सुनील कुमार द्वारा तैयार किए गए मामले में जवाबी हलफनामे के साथ ऐसा कोई दस्तावेज संलग्न नहीं किया गया।

    रिकॉर्ड का अवलोकन करते हुए इस न्यायालय ने यह भी नोट किया कि राज्य द्वारा दायर जवाबी हलफनामे में जमानत आवेदन में दिए गए दावों का कोई तर्कसंगत जवाब नहीं था। यह प्रासंगिक दस्तावेजों से रहित था।

    यह देखते हुए कि जवाबी हलफनामा लापरवाही से और बहुत ही आकस्मिक तरीके से तैयार किया गया लगता है, न्यायालय ने राज्य के वकीलों की जवाबी हलफनामे का मसौदा तैयार करने की उनकी क्षमता को उन मानकों तक बढ़ाने में असमर्थता पर आपत्ति जताई जिनकी उनसे अपेक्षा की जाती है।

    नतीजतन अदालत ने एडिशनल एडवोकेट जनरल को डॉक्टर के बयान सहित सभी आवश्यक दस्तावेजों को संलग्न करते हुए बेहतर जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया।

    हालांकि, जब मामला शुक्रवार 1 मार्च को सुनवाई के लिए आया तो अदालत ने राज्य के जवाब को रिकॉर्ड पर ले लिया। मगर एकल न्यायाधीश ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग करने का फैसला किया और निर्देश दिया कि 11 मार्च को नए नामांकन के रूप में प्राप्त करने के बाद मामले को दूसरी पीठ के समक्ष रखा जाए।

    केस टाइटल - विनोद बिहारी लाल बनाम, उत्तर प्रदेश राज्य।

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