जेल में रहते हुए हिंदू देवी-देवताओं को कथित तौर पर निशाना बनाने वाली किताबें कैसे लिख और बाँट रहे हैं रामपाल: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जेलर से मांगा जवाब
Amir Ahmad
17 Oct 2025 3:29 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ पीठ) ने मंगलवार को हिसार सेंट्रल जेल (हरियाणा) के जेलर को यह समझाने का निर्देश दिया कि स्वयंभू संत रामपाल, जो वर्तमान में जेल में बंद हैं, वह कथित तौर पर हिंदू देवी-देवताओं को निशाना बनाने वाली किताबें कैसे लिख और वितरित कर रहे हैं।
जस्टिस शेखर बी. सराफ और जस्टिस प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने यह आदेश हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस और अन्य द्वारा दायर एक याचिका पर पारित किया।
इस याचिका में हिंदू देवी-देवताओं के कथित रूप से अशोभनीय चित्रण वाली पुस्तकों और अन्य साहित्य पर पूर्ण प्रतिबंध, जब्ती और ज़ब्ती की मांग की गई। साथ ही रामपाल के खिलाफ BNS के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत कार्रवाई की मांग भी की गई।
खंडपीठ ने सहायक पुलिस आयुक्त (ACP) के पद से नीचे के न होने वाले एक अधिकारी द्वारा एक पूरक हलफनामा भी मांगा। इस हलफनामे में जुलाई में हाई कोर्ट द्वारा पारित आदेश के अनुसार, विभिन्न पुस्तकों के ठिकाने की तलाश और इंटरनेट साइटों, जिसमें X कॉर्प और गूगल एलएलसी की साइटें भी शामिल हैं, से आपत्तिजनक सामग्री को हटाने के लिए उठाए गए कदमों का विवरण देना होगा।
याचिका में लगाए गए मुख्य आरोप
एडवोकेट रंजना अग्निहोत्री के माध्यम से दायर रिट याचिका में आरोप लगाया गया कि सनातन हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण इरादे से आहत करने के लिए प्रतिवादी (जिनमें रामपाल और उनके प्रकाशन निकाय शामिल हैं) अत्यधिक आपत्तिजनक और भड़काऊ भाषा वाले साहित्य, पोस्टर और पैम्फलेट मुफ्त में वितरित कर रहे हैं। इसमें हिंदू देवी-देवताओं को 'बहुत भद्दा' और 'शर्मनाक' तरीके से चित्रित किया गया।
याचिका में जिन पुस्तकों का नाम लिया गया, उनमें 'जीने की राह', 'ज्ञान गंगा', 'गरिमा गीता की', और 'अंध श्रद्ध भक्ति - खतरा-ए-जान' शामिल हैं, जिनके कथित आपत्तिजनक अंशों के उदाहरण दिए गए।
याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि आरोपी इलेक्ट्रॉनिक संचार मंचों का उपयोग कर रहे हैं ताकि विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच अनेकता और शत्रुता, घृणा तथा दुर्भावना की भावना को बढ़ावा दिया जा सके, जो सार्वजनिक शांति और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए हानिकारक है।
याचिका में कहा गया कि बार-बार अनुरोध करने के बावजूद, राज्य प्राधिकरणों ने उन विपक्षियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की, जो सनातन धर्म और हिंदू देवी-देवताओं को अत्यंत अश्लील, भद्दे और असभ्य तरीके से चित्रित कर रहे हैं।
याचिका में आगे कहा गया कि साहित्य की सामग्री और उनके वितरण से BNS की धारा 196, 197, 294, 295, 299 और 302, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67ए, 67बी, साथ ही अशोभनीय प्रतिनिधित्व (निषेध) अधिनियम, 1986 की धारा 3 और 4 आकर्षित होती हैं।
कोर्ट का असंतोष और नया निर्देश
गौरतलब है कि रामपाल अपनी गिरफ्तारी के बाद से 8 साल, 8 महीने और 25 दिन से अधिक समय जेल में बिता चुके हैं। वह हत्या के मामले के साथ-साथ 2014 में सरकार के खिलाफ कथित तौर पर युद्ध छेड़ने के प्रयास के मामले का सामना कर रहे हैं।
10 जुलाई को मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने राज्य को जवाब देने का निर्देश दिया कि क्या भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 98 के तहत प्रकाशनों की जब्ती से संबंधित अभ्यावेदनों पर कोई कार्रवाई शुरू की गई।
राज्य द्वारा दायर किए गए बाद के जवाब से असंतुष्टि व्यक्त करते हुए नवगठित पीठ ने नोट किया कि राज्य का हलफनामा सभी तरह से अधूरा था और इसमें और जानकारी की आवश्यकता थी।
इसलिए कोर्ट ने निर्देश दिया कि सहायक पुलिस आयुक्त (ACP) के पद से नीचे के न होने वाले व्यक्ति द्वारा 28 अक्टूबर, 2025 तक एक पूरक हलफनामा दायर किया जाना चाहिए। कोर्ट ने जेलर, हिसार सेंट्रल जेल-2 को प्रतिवादी संख्या 13 के रूप में पक्षकार बनाने की अनुमति दी।
मामले की अगली सुनवाई 4 नवंबर 2025 को होगी। याचिका में कोर्ट से ऐसी सामग्री के तत्काल सेंसरशिप और प्रसार पर रोक लगाने और यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश देने की मांग की गई है कि आगे कोई प्रकाशन या वितरण न हो। इसके अतिरिक्त, याचिका में कोर्ट से हिसार सेंट्रल जेल से संत रामपाल के कथित अवैध संचालन और कामकाज की स्वतंत्र, विश्वसनीय और निष्पक्ष जाँच के लिए एक विशेष जाँच दल (SIT) के गठन का निर्देश देने का भी आग्रह किया गया।

