इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 'बदला लेने' के लिए बड़े भाई के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने वाले व्यक्ति को फटकार लगाई, 'कलयुगी भरत' कहा
Shahadat
9 Oct 2024 6:36 PM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में उस व्यक्ति की आलोचना की, जिसने अपने बड़े भाई के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया (एक विवाद, जो दीवानी प्रकृति का था)। उसने यह मामला केवल अपने बड़े भाई को परेशान करने और उससे बदला लेने के लिए दर्ज कराया था।
छोटे भाई/शिकायतकर्ता को 'कलयुगी भरत' कहते हुए जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ ने पूरे मामले की कार्यवाही रद्द की। साथ ही बड़े भाई/आवेदक के खिलाफ धारा 406 आईपीसी के तहत दर्ज एफआईआर के संबंध में समन आदेश भी रद्द कर दिया।
न्यायालय ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ सामग्री के आधार पर आपराधिक विश्वासघात के अपराध की कोई भी सामग्री नहीं बनती।
संक्षेप में मामला
शिकायतकर्ता (छोटा भाई), जो पेशे से वकील है। उसने आरोप लगाया कि उसके बड़े भाई (आवेदक) ने व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए दिए गए ₹2.20 लाख वापस न करके आपराधिक विश्वासघात किया। बार-बार आश्वासन देने के बावजूद भी पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया।
इसके अलावा, शिकायतकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि आवेदक ने कथित वसीयत के आधार पर न केवल अपने पिता के साथ जॉइंट अकाउंट खोला, बल्कि उनकी मृत्यु के बाद उनकी सहमति के बिना पैसे निकाल लिए।
इस संबंध में नवंबर 2017 में एफआईआर दर्ज की गई। जांच के बाद जनवरी 2019 में धारा 406 आईपीसी के तहत अपराध के लिए आरोप पत्र दायर किया गया, जिसमें केवल इस आरोप का उल्लेख था कि आवेदक ने 2.20 लाख रुपये वापस नहीं किए।
आवेदक ने आरोप पत्र, संज्ञान और समन आदेश को चुनौती देते हुए 2020 में हाईकोर्ट का रुख किया। वर्तमान मामले की कार्यवाही के बाद के चरण में दोनों पक्ष, सगे भाई होने के कारण बातचीत करने के लिए अपनी तत्परता दिखाई।
हालांकि, पक्षकारों विशेष रूप से शिकायतकर्ता के अड़ियल रवैये के कारण अदालत के हस्तक्षेप के बावजूद मामले का सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटारा नहीं हो सका। इसलिए मामले की आखिरकार सुनवाई हुई।
अपने आदेश में न्यायालय ने कहा कि आपराधिक विश्वासघात के अपराध के लिए यह आवश्यक है कि संपत्ति का हस्तांतरण बेईमानी से किया गया हो या उसे अपने उपयोग में लाया गया हो तथा यह कानून के किसी निर्देश या किसी कानूनी अनुबंध का उल्लंघन हो।
हालांकि, वर्तमान मामले में न तो इस तरह का 'सौदा' था, न ही इस बात का कोई सबूत था कि यह 'बेईमानी से दुरुपयोग' था। न ही इस बात का कोई सबूत था कि ऐसा कृत्य किसी कानूनी अनुबंध का उल्लंघन था।
इसलिए न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि सामग्री के आधार पर आपराधिक विश्वासघात के अपराध के कोई भी तत्व नहीं बनते।
न्यायालय ने आगे कहा कि कथित राशि इस आवेदन के लंबित रहने के दौरान पहले ही वापस कर दी गई, जब पक्ष बातचीत करने की कोशिश कर रहे थे।
न्यायालय ने कहा,
"ऐसा प्रतीत होता है कि शिकायतकर्ता ने अपने बड़े भाई पर बातचीत करने के लिए दबाव डालने के लिए ही कार्यवाही शुरू की, क्योंकि एक वसीयत है, जिसमें शिकायतकर्ता लाभार्थी नहीं है।"
इस पृष्ठभूमि में यह देखते हुए कि कार्यवाही केवल विवाद को आपराधिक मामले का जामा पहनाकर आवेदक को परेशान करने के लिए शुरू की गई, जो अनिवार्य रूप से सिविल प्रकृति का था, न्यायालय ने पूरी आपराधिक कार्यवाही रद्द की और शिकायतकर्ता को चार सप्ताह के भीतर आवेदक को मुकदमे की लागत के रूप में 25,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।
न्यायालय ने आदेश देते हुए कहा,
“न्यायालय इस निर्णय को इस अंतिम टिप्पणी के साथ समाप्त करना उचित समझता है कि हम हमेशा भगवान श्री राम के छोटे भाई भरत के बलिदान को संजोते हैं लेकिन अपने बड़े भाई के प्रति शिकायतकर्ता के आचरण को 'कलयुगी भरत' कहा जा सकता है।”
केस टाइटल- संजीव चड्ढा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य