इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द की 'भूत' की एफआईआर, जांच करने और आरोपपत्र दाखिल करने के लिए जांच अधिकारी को फटकार भी लगाई

LiveLaw News Network

9 Aug 2024 9:28 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द की भूत की एफआईआर, जांच करने और आरोपपत्र दाखिल करने के लिए जांच अधिकारी को फटकार भी लगाई

    इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष हाल ही में धोखाधड़ी और जालसाजी से जुड़ा एक असामान्य मामला पेश किया गया, जिसमें एक मृत व्यक्ति ने क‌थ‌ित रूप से 2014 में, अपनी मृत्यु के लगभग तीन साल बाद, एक एफआईआर दर्ज कराई थी।

    मामले ने जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ को हैरान कर दिया। उन्होंने पाया कि पुलिस ने मृत व्यक्ति के बयान के आधार पर मामले की जांच भी की थी। इस पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए न्यायालय ने कहा, "यह बहुत ही अजीब है कि एक मृत व्यक्ति ने न केवल एफआईआर दर्ज कराई है, बल्कि जांच अधिकारी के समक्ष अपना बयान भी दर्ज कराया है और उसके बाद वर्तमान मामले में उसकी ओर से वकालतनामा भी दाखिल किया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि सारी कार्यवाही एक भूत द्वारा की जा रही है।"

    न्यायालय ने मृत व्यक्ति का बयान दर्ज करने के लिए जांच अधिकारी की भी आलोचना की और मामले में आरोप पत्र भी दाखिल किया। न्यायालय ने आपराधिक मामले की कार्यवाही को रद्द करते हुए टिप्पणी की, "अदालत इस बात से अवाक है कि जांच अधिकारी ने मृत व्यक्ति का बयान दर्ज करके कैसे जांच की..."।

    न्यायालय ने कुशीनगर के पुलिस अधीक्षक को मामले के तथ्यों पर गौर करने तथा संबंधित जांच अधिकारी के खिलाफ जांच करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा, “…यह निर्देश दिया जाता है कि कुशीनगर के पुलिस अधीक्षक वर्तमान मामले के तथ्यों पर गौर करेंगे कि एक भूत एफआईआर दर्ज करके, अपना बयान देकर निर्दोष व्यक्ति को परेशान कर रहा है तथा संबंधित जांच अधिकारी के खिलाफ जांच करेंगे तथा इस मामले को रिकॉर्ड में दर्ज करेंगे।”

    न्यायालय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष से मृतक व्यक्ति की ओर से वकालतनामा दाखिल करने वाले वकील को सतर्क रहने की सलाह देने को भी कहा।

    कोर्ट ने कहा, “विद्वान अधिवक्ता श्री विमल कुमार पांडेय ने 19.12.2023 को ममता देवी के हस्ताक्षर से शब्द प्रकाश की ओर से वकालतनामा दाखिल किया है, जिसमें यह नहीं बताया गया है कि उक्त शब्द प्रकाश की मृत्यु एफआईआर दर्ज होने से पहले ही हो चुकी है। आदेश की एक प्रति इलाहाबाद बार एसोसिएशन के अध्यक्ष को भेजी जाती है ताकि वे इस पर गौर करें तथा संबंधित अधिवक्ता को भविष्य में सतर्क रहने की सलाह दें।”

    न्यायालय मुख्यतः पुरुषोत्तम सिंह और 4 अन्य द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें भूमि विवाद के संबंध में शब्द प्रकाश नामक व्यक्ति द्वारा दायर आपराधिक मामले को रद्द करने की मांग की गई थी।

    मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय को अवगत कराया गया कि शब्द प्रकाश की मृत्यु (19 दिसंबर, 2011 को) हो चुकी थी, यानि मामले में एफआईआर दर्ज होने से तीन वर्ष पहले। उनकी मृत्यु के तथ्य की पुष्टि कुशीनगर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट से हुई, जो उनकी पत्नी की एक प्रति और उनके मृत्यु प्रमाण पत्र की एक प्रति पर आधारित थी।

    इन तथ्यों और परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में न्यायालय इस तथ्य से आश्चर्यचकित था कि एक "मृत व्यक्ति (भूत)" ने अपनी मृत्यु के तीन वर्ष बाद एफआईआर दर्ज कराई थी और उसके बाद, न केवल उसने अपना बयान दर्ज कराया, बल्कि पुलिस द्वारा एक आरोप पत्र भी दायर किया गया, जिसमें उक्त मृत व्यक्ति को अभियोजन पक्ष के गवाहों में से एक के रूप में प्रस्तावित किया गया था।

    केस टाइटलः पुरुषोत्तम सिंह और 4 अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य 2024 लाइवलॉ (एबी) 493

    केस साइटेशन : 2024 लाइवलॉ (एबी) 493

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