दिव्यांग व्यक्ति को कोर्ट पहुंचने में हुई भारी परेशानी के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मांगी सुविधाओं की पूरी जानकारी
Amir Ahmad
5 Dec 2025 12:35 PM IST

एक दिव्यांग व्यक्ति के कोर्ट परिसर में प्रवेश के दौरान हुई कठिनाइयों को गंभीरता से लेते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपनी रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह परिसर में दिव्यांगजन (PwDs) के लिए उपलब्ध सुविधाओं और सहायता प्रणालियों का पूरा विवरण रिकॉर्ड पर पेश करे।
यह आदेश जस्टिस अजय भनोट और जस्टिस गरिमा प्रसाद की खंडपीठ ने उस समय पारित किया जब पत्नी के माता-पिता से जान का खतरा बताए जाने वाले मामले की सुनवाई के लिए अदालत आए पति को जो शारीरिक रूप से दिव्यांग हैं, कोर्ट तक पहुंचने में भारी संघर्ष करना पड़ा। अदालत ने इस घटना को व्यक्ति की गरिमा के प्रतिकूल करार दिया। हालांकि, खंडपीठ की नजर जैसे ही उनकी स्थिति पर पड़ी रजिस्ट्री की ओर से तुरंत व्हीलचेयर और सहायक उपलब्ध कराए गए।
मूल मामले में अदालत ने युवक और उसकी पत्नी को पुलिस सुरक्षा देने का निर्देश दिया। दोनों बालिग हैं और पारिवारिक विरोध के बावजूद विवाह कर साथ रह रहे हैं। खंडपीठ ने उनके संबंध को प्रेम की वह सच्ची मिसाल बताया जो सभी बाधाओं से ऊपर उठकर कायम हुई।
याचिकाकर्ता पत्नी और उनके पति ने हाईकोर्ट का रुख उस FIR को चुनौती देते हुए किया, जो पत्नी के परिजनों द्वारा दर्ज कराई गई। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने यह पाया कि पति को चलने-फिरने संबंधी गंभीर दिव्यांगता है, जिसके कारण उनके अंगों की गति काफी सीमित है।
अदालत ने रिकॉर्ड में यह भी दर्ज किया कि कोर्ट परिसर में प्रवेश के दौरान उन्हें किसी तरह की त्वरित सहायता उपलब्ध नहीं कराई, गई जिसके कारण वह काफी कठिनाई झेलते हुए कोर्ट रूम तक पहुंचे।
खंडपीठ ने कहा,
“कोर्ट रूम तक पहुंचने की पूरी प्रक्रिया याचिकाकर्ता नंबर-2 की व्यक्तिगत गरिमा के लिए प्रतिकूल है।”
खंडपीठ ने यह भी माना कि भले ही हाईकोर्ट के पास दिव्यांगजनों के लिए आवश्यक सुविधाएं सैद्धांतिक रूप से मौजूद हैं लेकिन संबंधित प्राधिकरण से सही समय पर समन्वय न होने के कारण मदद देर से पहुंची। बाद में रजिस्ट्री द्वारा उन्हें व्हीलचेयर उपलब्ध कराई गई।
भविष्य में ऐसी स्थिति दोबारा न उत्पन्न हो इसके लिए कोर्ट ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह वर्तमान में हाईकोर्ट परिसर में दिव्यांगजनों के लिए उपलब्ध समस्त सुविधाओं, व्यवस्थाओं और सहायता तंत्र का विवरण प्रस्तुत करे।
अपने चार पन्नों के आदेश में अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता पति कबाड़ सामग्री की खरीद-बिक्री का व्यवसाय करते हैं और निर्वाचित सभासद (नगर पार्षद) भी हैं।
खंडपीठ ने टिप्पणी की,
“याचिकाकर्ता नंबर-2 ने अपनी दिव्यांगता से जूझते हुए सार्वजनिक सेवा के क्षेत्र में कदम रखा, जो न केवल मानव संकल्प की शारीरिक असमर्थता पर विजय का प्रमाण है बल्कि भारतीय लोकतंत्र की भी सशक्त मिसाल है।”
मामले के गुण-दोष पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने दंपति को अंतरिम सुरक्षा देने का आदेश दिया। अदालत ने पत्नी के बयान पर भरोसा जताया, जिसमें उसने कहा कि उसने अपनी मर्जी से विवाह किया है और पारिवारिक संबंध तोड़ना चाहती है। खंडपीठ ने यह भी माना कि उन पर दर्ज FIR पारिवारिक विरोध का परिणाम है।
पति की विशेष संवेदनशील स्थिति को ध्यान में रखते हुए अदालत ने आगरा के पुलिस उपायुक्त को निर्देश दिया कि स्थानीय पुलिस के माध्यम से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। साथ ही राज्य सरकार को अगली तारीख तक प्रत्युत्तर हलफनामा दाखिल करने को कहा गया। यदि अगली सुनवाई तक यह हलफनामा दाखिल नहीं किया जाता है तो न्यायालय ने आगरा के पुलिस उपायुक्त को व्यक्तिगत रूप से तलब करने की चेतावनी दी।
इस मामले की अगली सुनवाई 10 दिसंबर को निर्धारित की गई।

