हाईकोर्ट अपने इतिहास के सबसे गंभीर संकट का सामना कर रहा है: इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका में 50% से अधिक न्यायिक रिक्तियों को शीघ्रता से भरने की मांग की गई

Amir Ahmad

5 March 2025 11:55 AM IST

  • हाईकोर्ट अपने इतिहास के सबसे गंभीर संकट का सामना कर रहा है: इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका में 50% से अधिक न्यायिक रिक्तियों को शीघ्रता से भरने की मांग की गई

    इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष जनहित याचिका (PIL) दायर की गई, जिसमें हाईकोर्ट में सभी मौजूदा 81 न्यायिक रिक्तियों (स्वीकृत 160 जजों की संख्या का 50% से अधिक) को समयबद्ध तरीके से समय पर और शीघ्रता से भरने के लिए निर्देश देने की मांग की गई।

    यह कहते हुए कि हाईकोर्ट अपने इतिहास के सबसे गंभीर संकट का सामना कर रहा है, जनहित याचिका में इस न्यायालय में न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए अनिवार्य और सख्ती से पालन किए जाने वाले बाध्यकारी दिशा-निर्देशों को निर्धारित करने की भी मांग की गई, जिसमें MOP के तहत निर्धारित समयसीमा का सख्ती से पालन करना भी शामिल है।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट में जजों की भारी कमी को उजागर करते हुए एडवोकेट शाश्वत आनंद, सैयद अहमद फैजान और सौमित्र आनंद के माध्यम से दायर और सीनियर एडवोकेट एसएफए नकवी द्वारा निपटाई गई। याचिका में कहा गया कि राज्य की 24 करोड़ की आबादी और 1,155,225 लंबित मामलों के साथ वर्तमान में हर 30 लाख लोगों के लिए केवल एक जज है। प्रत्येक न्यायाधीश औसतन 14,623 लंबित मामलों को संभाल रहा है।

    सीनियर एडवोकेट सतीश त्रिवेदी द्वारा जनहित याचिका दायर की गई, जिसमें कहा गया कि हाईकोर्ट कार्यात्मक पक्षाघात की स्थिति में है, क्योंकि यह अपनी स्वीकृत न्यायिक शक्ति के 50% से भी कम पर काम कर रहा है। इसके कारण 11 लाख से अधिक मामलों का भारी बैकलॉग हो गया।

    जनहित याचिका में कहा गया,

    "जजों की कमी ने न्यायपालिका को प्रभावी रूप से अक्षम कर दिया, जिससे न्याय देने की इसकी क्षमता महज भ्रम बनकर रह गई। इसके गलियारे, जो कभी न्याय की लय से भरे रहते थे, अब अनसुनी याचिकाओं की खामोशी से गूंजते हैं।"

    याचिका का उद्देश्य दोष मढ़ना नहीं बल्कि हाईकोर्ट की कार्यप्रणाली को मजबूत करना है।

    याचिका में आगे तर्क दिया गया कि भले ही न्यायालय की क्षमता स्वीकृत 160 जजों तक पहुंच जाए फिर भी हर 15 लाख लोगों पर केवल एक जज होगा और प्रत्येक जज के पास लगभग 7,220 लंबित मामले होंगे।

    जनहित याचिका में आगे कहा गया,

    "ये महज आँकड़े नहीं हैं। प्रत्येक रिक्ति एक न्यायालय कक्ष का प्रतिनिधित्व करती है जिसे पूरी तरह कार्यात्मक होना चाहिए, प्रत्येक खाली सीट एक न्यायाधीश का प्रतिनिधित्व करती है, जिसे न्याय देना चाहिए था। सबसे महत्वपूर्ण बात कई वादी जिन्हें न्याय मिलना चाहिए और अनिश्चित काल तक प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए थी।"

    जनहित याचिका में आगे कहा गया कि रिक्तियों के कारण लंबित मामलों की संख्या में भारी वृद्धि हुई, जिससे न केवल वादियों पर, जिन्हें अपने मामलों की सुनवाई के लिए अंतहीन प्रतीक्षा करनी पड़ती है, बल्कि न्यायाधीशों पर भी असहनीय बोझ और कठिनाई आ गई।

    जनहित याचिका में कहा गया,

    "यदि न्यायपालिका, जो संविधान की अंतिम संरक्षक है, जनशक्ति की कमी के कारण निष्क्रिय हो जाती है तो कानून के शासन, शक्तियों का पृथक्करण, न्यायिक स्वतंत्रता और न्यायिक पुनर्विचार के मूल सिद्धांत - जो सभी मूल संरचना सिद्धांत का हिस्सा हैं - प्रभावी रूप से नष्ट हो जाते हैं; संविधान को ही निष्प्रभावी और निरर्थक बना देते हैं। अपनी स्वीकृत क्षमता के आधे से काम करने वाला हाईकोर्ट स्वतंत्र नहीं है। यह एक कमजोर और अक्षम संस्था है, जो संवैधानिकता के संरक्षक के रूप में अपनी भूमिका का निर्वहन करने में असमर्थ है।"

    इसमें आगे तर्क दिया गया कि यदि रिक्तियों को अनदेखा कर दिया जाता है तो न्याय प्रशासन को पंगु बनाने और न्यायपालिका में जनता के विश्वास को खत्म करने का जोखिम है। इसलिए जनहित याचिका में इस प्रतिष्ठित संवैधानिक न्यायालय की ताकत और कद को बहाल करने के लिए एक त्वरित, पारदर्शी और सहयोगात्मक दृष्टिकोण की मांग की गई।

    जनहित याचिका में सुझाव दिया गया कि हाईकोर्ट को न्यायिक दिशानिर्देशों के माध्यम से अनिवार्य जवाबदेही तंत्र स्थापित करना चाहिए। इसके लिए किसी भी रिक्ति के आने से छह महीने पहले न्यायिक पदोन्नति के लिए कम से कम 20 संभावित उम्मीदवारों के नामों की सिफारिश करनी होगी।

    याचिका में सुझाव दिया गया कि इस प्रक्रिया को तेज किया जाना चाहिए, जिससे जब कोई रिक्ति आए या कोई जज रिटायर हो तो उत्तराधिकारी तुरंत तैयार हो जाए, जिससे न्यायालय बिना किसी अंतराल के 160 जजों की अपनी पूरी ताकत से काम कर सके।

    जनहित याचिका में यह भी सुझाव दिया गया कि एक बार 160 जजों की स्वीकृत रिक्तियों को भर दिए जाने के बाद अनुच्छेद 224ए (हाईकोर्ट की बैठकों में रिटायर जजों की नियुक्ति) के प्रावधानों का उपयोग माननीय हाईकोर्ट में भारी लंबित मामलों से निपटने के लिए किया जा सकता है।

    इसमें यह भी प्रस्ताव किया गया कि वर्तमान स्वीकृत 160 जजों की संख्या की पर्याप्तता/अपर्याप्तता की समय-समय पर समीक्षा की जाए तथा इसे बढ़ाने की दिशा में उचित और निर्णायक कदम उठाए जाएं, जिससे इसे जनसंख्या के अनुरूप उचित और न्यायसंगत अनुपात में लाया जा सके।

    याचिकाकर्ता (सीनियर एडवोकेट त्रिवेदी) का वकील के रूप में पचास वर्षों से अधिक तथा हाईकोर्ट के नामित सीनियर एडवोकेट के रूप में लगभग पच्चीस वर्षों का विशिष्ट करियर रहा है।

    यह जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाईकोर्ट में न्यायिक रिक्तियों पर चिंता जताए जाने के कुछ ही दिनों बाद दायर की गई, जहां वर्तमान में स्वीकृत 160 जजों की संख्या होने के बावजूद केवल 79 जजों (चीफ जस्टिस सहित) कार्यरत हैं।

    जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने निर्देश दिया कि वर्तमान रिट याचिका में पारित आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य जस्टिस को संबोधित प्रतिनिधित्व के रूप में माना जाएगा, जो हाईकोर्ट में कई दशकों से लंबित मामलों के संबंध में है। इस संबंध में अपने प्रशासनिक पक्ष पर एक उचित आदेश पारित करेगा।

    सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हाईकोर्ट लंबित मामलों से निपटने के लिए संघर्ष कर रहा है। इसका एकमात्र उपाय शुद्ध योग्यता और क्षमता के आधार पर उपयुक्त व्यक्तियों की सिफारिश करके रिक्तियों को भरने के लिए जल्द से जल्द आवश्यक कदम उठाना है।

    हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने लंबित मामलों के मुद्दे से निपटने के लिए रिटायर हाईकोर्ट के जजों को एडहॉक जजों के रूप में नियुक्त करने के निर्देश पारित किए।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन (HCBA) ने भी जजों की घटती संख्या और अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक 2025 के मसौदे के विरोध में न्यायिक कार्य से दूर रहने का प्रस्ताव पारित किया।

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