Barred By Limitation: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुल्तानपुर सांसद के चुनाव के खिलाफ BJP नेता मेनका गांधी की याचिका खारिज की
Amir Ahmad
14 Aug 2024 5:35 PM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ पीठ) ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सीनियर नेता, पूर्व सांसद और कैबिनेट मंत्री मेनका गांधी द्वारा सुल्तानपुर लोकसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी (SP) के सांसद राम भुवाल निषाद के चुनाव को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की।
जस्टिस राजन रॉय की पीठ ने चुनाव याचिका को सीमा से वर्जित पाया, जिसमें कहा गया कि गांधी की चुनाव याचिका जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 81 के साथ धारा 86 के उल्लंघन में दायर की गई। यह ध्यान देने योग्य है कि गांधी ने सात दिन की देरी से चुनाव याचिका दायर की थी।
एकल न्यायाधीश ने सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा (मेनका गांधी की ओर से पेश) और एडवोकेट प्रशांत सिंह अटल की सहायता से जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 81 में निर्धारित सीमा के बिंदु पर सुनवाई के बाद (5 अगस्त को) याचिका की स्वीकार्यता पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था।
यहां यह ध्यान देने योग्य है कि 1951 अधिनियम की धारा 81 में निर्वाचित उम्मीदवार के चुनाव की तारीख से 45 दिन की अवधि प्रदान की गई। यदि चुनाव की तारीखें अलग-अलग हैं तो चुनाव याचिका दायर करने की बाद की तारीख।
इसके अलावा 1951 के अधिनियम की धारा 86 के अनुसार हाईकोर्ट को उन चुनाव याचिकाओं को खारिज करना होगा, जो धारा 81, 82 और 117 का अनुपालन नहीं करती हैं।
एकल न्यायाधीश के समक्ष याचिका पर समय-सीमा के कारण रोक लगने के संबंध में न्यायालय के प्रश्न का उत्तर देते हुए सीनियर एडवोकेट लूथरा ने एन. बालकृष्णन बनाम एम. कृष्णमूर्ति 1998 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के पैराग्राफ 10 और 11 का उल्लेख किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समय-सीमा के नियम का उद्देश्य पक्षों के अधिकारों को नष्ट करना नहीं है। उनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पक्ष विलंबकारी रणनीति का सहारा न लें बल्कि तुरंत अपना उपाय तलाशें। कानूनी उपाय प्रदान करने का उद्देश्य कानूनी क्षति के कारण हुई क्षति की भरपाई करना है।
सीनियर एडवोकेट लूथरा ने यह भी प्रस्तुत किया कि गांधी की चुनाव याचिका केवल एक सप्ताह की देरी से दायर की गई, क्योंकि गांधी अस्पताल में भर्ती थे। उन्होंने तर्क दिया कि न्यायालय का दरवाजा खटखटाने में हुई देरी को माफ किया जाना चाहिए।
चुनाव याचिका के बारे में
हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव 2024 में निषाद ने गांधी (तत्कालीन सांसद, सुल्तानपुर) को 43 हजार से अधिक मतों से हराया। निषाद को 4,44,330 मत मिले, जबकि गांधी को 4,01,156 मत मिले, जिससे उनकी हार हुई।
अपनी याचिका में गांधी ने निषाद पर अपने खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों (अपने नामांकन पत्र में) का खुलासा नहीं करने का आरोप लगाया। गांधी का दावा है कि निषाद ने 2024 के चुनाव में सुल्तानपुर-38 लोकसभा सीट के लिए चुनाव प्रक्रिया के दौरान फॉर्म-26 दाखिल करते समय केवल 8 आपराधिक मामलों का खुलासा किया, जबकि वास्तव में उनके खिलाफ 12 मामले लंबित हैं।
याचिका में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि आपराधिक मामलों का खुलासा न करना या जानबूझकर न करना जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951 की धारा 100 के तहत भ्रष्ट आचरण माना जाता है। गांधी ने तर्क दिया है कि निषाद के चुनाव को केवल इस आरोप के आधार पर शून्य घोषित किया जाना चाहिए।
याचिका में कहा गया,
"निर्वाचित उम्मीदवार (निषाद) ने जानबूझकर अपना पूरा विस्तृत आपराधिक इतिहास प्रस्तुत नहीं किया। निर्वाचित उम्मीदवार के पास 12 मामलों का ज्ञात आपराधिक इतिहास है, जबकि दायर हलफनामे में उन्होंने केवल 8 (आठ) आपराधिक मामलों का उल्लेख किया और जानबूझकर 4 (चार) आपराधिक मामलों को छोड़ दिया। निर्वाचित उम्मीदवार ने जनता के साथ धोखाधड़ी की है और भ्रष्ट आचरण में लिप्त है। इस प्रकार उसका निर्वाचन जनप्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 की धारा 100 के तहत अयोग्य घोषित किया जा सकता है।”
इस पृष्ठभूमि के खिलाफ गांधी ने तर्क दिया कि चुनाव का परिणाम, जहां तक निषाद से संबंधित है, भारत के संविधान, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 और चुनाव नियम-1961 के प्रावधानों के गैर-अनुपालन के साथ-साथ आर.पी. अधिनियम 1951 और समय-समय पर भारत के चुनाव आयोग द्वारा जारी आदेशों के कारण भौतिक रूप से प्रभावित हुआ है।
केस टाइटल - मेनका संजय गांधी बनाम रामभुआल निषाद और अन्य