22 साल बाद दूसरी FIR दर्ज करना उचित नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुख्तार अंसारी के सहयोगी को उसरी छट्टी हत्याकांड में दी ज़मानत
Amir Ahmad
9 Sept 2025 3:25 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह 2001 के चर्चित उसरी छट्टी हत्याकांड मामले में मुख्तार अंसारी के कथित सहयोगी सरफ़राज़ अंसारी उर्फ मुन्नी को ज़मानत दी। जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने कहा कि एक ही घटना को लेकर 22 साल बाद दूसरी FIR दर्ज किया जाना उचित प्रतीत नहीं होता।
अदालत ने कहा कि वर्ष 2001 में ही घटना की FIR दर्ज की जा चुकी थी, जिसकी जांच पूरी हो चुकी है, चार्जशीट दाखिल कर दी गई> उस पर मुकदमा लंबित है। ऐसे में 22 साल बाद उसी घटना को लेकर दूसरी FIR दर्ज करना विधिसम्मत नहीं कहा जा सकता।
मामला क्या है
जनवरी, 2023 में FIR दर्ज की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि मुख्तार अंसारी और उसके सहयोगियों ने 14 जुलाई 2001 को मनोज कुमार राय की हत्या की थी। सूचना देने वाले ने कहा कि अंसारी के ख़ौफ़ के चलते वह वर्षों चुप रहा। 2022 में मुख्तार अंसारी का विधायक पद ख़त्म होने और उसके बेटे के भगोड़ा घोषित होने के बाद उसने पुलिस को घटना की सच्चाई बताई।
इस नई FIR में सरफ़राज़ अंसारी का नाम दर्ज नहीं था। हालांकि, जांच के दौरान गवाहों के बयान में उसकी भूमिका सामने आई। एक प्रत्यक्षदर्शी ने आरोप लगाया कि मृतक को पकड़ने में सरफ़राज़ शामिल था, जबकि गोली चलाने का काम किसी अन्य आरोपी ने किया।
बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि सरफ़राज़ 2001 की घटना में खुद घायल हुआ था। गोली लगने के बाद वह उसी मुकदमे में अभियोजन गवाह के रूप में दर्ज है। ऐसे में उसी घटना को लेकर उसके ख़िलाफ़ दूसरी FIR दर्ज करना पूरी तरह अनुचित है।
उन्होंने यह भी कहा कि राज्य दो अलग-अलग मुकदमों में एक ही घटना की अलग-अलग FIR पर मुकदमा चला रहा है। इसके अलावा आरोपी का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और वह 15 जुलाई 2023 से जेल में बंद है।
बचाव पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले सुमदेह सिंह सैनी बनाम पंजाब राज्य (2021) का हवाला दिया, जिसमें 29 साल बाद दर्ज FIR में आरोपी को ज़मानत दी गई।
हाईकोर्ट ने कहा,
" घटना की FIR वर्ष 2001 में ही दर्ज हो चुकी थी। उस पर चार्जशीट दाखिल कर ट्रायल लंबित है। ऐसे में 22 साल बाद उसी घटना की दूसरी FIR दर्ज करना उचित नहीं। आवेदक पहली FIR में अभियोजन गवाह है। कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और 15.07.2023 से जेल में है। इन परिस्थितियों को देखते हुए ज़मानत का मामला बनता है।”
कोर्ट ने आवेदक को व्यक्तिगत मुचलके और दो जमानतदारों पर रिहा करने का आदेश दिया। साथ ही यह निर्देश दिया गया कि वह गवाहों को प्रभावित नहीं करेगा, सबूतों से छेड़छाड़ नहीं करेगा और नियमित रूप से ट्रायल कोर्ट में पेश होगा।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आदेश में की गई टिप्पणियां मुकदमे की मेरिट को प्रभावित नहीं करेंगी।
केस टाइटल: Sarfaraz Ansari @ Munni बनाम State Of U.P. Thru. Prin. Secy. Home Lko.

