ख़राब वकालत से न्याय में बाधा: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वकीलों के उदासीन आचरण पर नाराज़गी जताई

Amir Ahmad

8 Oct 2025 11:42 AM IST

  • ख़राब वकालत से न्याय में बाधा: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वकीलों के उदासीन आचरण पर नाराज़गी जताई

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अदालतों में वकीलों द्वारा दी जा रही खराब गुणवत्ता वाली सहायता पर कड़ी आपत्ति व्यक्त की। कोर्ट ने इसे बहुत दुखद स्थिति बताया जो पहले से ही अत्यधिक काम के बोझ से दबी अदालतों के लिए न्याय के शीघ्र वितरण में बाधा डालता है।

    जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की सिंगल बेंच ने टिप्पणी की कि वकीलों का ऐसा आचरण न्याय के त्वरित वितरण में बाधा" बनता है। सुप्रीम कोर्ट के उस हालिया निर्देश को विफल कर देता है, जिसमें ज़मानत याचिकाओं को दाखिल होने के दो महीने के भीतर निपटाने का निर्देश दिया गया।

    कोर्ट ने यह टिप्पणी संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें फैमिली कोर्ट को 2023 से लंबित CrPC की धारा 125 (भरण-पोषण) मामले का शीघ्र निपटारा करने का निर्देश देने की मांग की गई।

    हाईकोर्ट ने पाया कि याचिका में संलग्न दस्तावेज़ इतने अव्यवस्थित ढंग से लगाए गए कि कोर्ट को रिकॉर्ड पढ़ने में अनावश्यक रूप से लंबा समय देना पड़ा। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि पिछली सुनवाई (16 सितंबर, 2025) पर याचिकाकर्ता के वकील को रिकॉर्ड को ठीक से व्यवस्थित करने के लिए मामला स्थगित किया गया। हालांकि, अगली तारीख पर वकील ने त्रुटि को ठीक किए बिना ही दोबारा दलीलें शुरू कीं।

    जस्टिस विद्यार्थी ने इस आचरण पर अपवाद लेते हुए कहा,

    यह वास्तव में बहुत दुखद स्थिति है, जहां अदालतों पर काम का अत्यधिक बोझ है। कई वकील अपनी सर्वोत्तम क्षमता से कोर्ट की सहायता नहीं करते हैं।

    कोर्ट ने अपने कार्यभार का पैमाना बताते हुए जोर दिया कि उस विशेष दिन कोर्ट के सामने 91 नए मामले 182 अन्य मामले, और 6 विविध आवेदन सूचीबद्ध थे। कोर्ट ने कहा कि इन सभी याचिकाओं पर कोर्ट के निर्धारित 300 मिनट के बैठक समय के भीतर कार्रवाई की जानी थी।

    जज ने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने सभी अदालतों को ज़मानत मामलों को दो महीने के भीतर निपटाने का निर्देश दिया तब वकीलों द्वारा ऐसी खराब सहायता मुकदमेबाजों को त्वरित न्याय दिलाने में बाधा पैदा करती है।

    कोर्ट ने अपनी एक हालिया टिप्पणी (विपिन तिवारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में) का भी उल्लेख किया, जहां हाईकोर्ट ने बार सदस्यों से अनुरोध किया कि वह अदालतों के समक्ष दलीलें पेश करते समय सटीक और संक्षिप्त रहें ताकि न्याय के शीघ्र वितरण में सहयोग हो सके।

    जस्टिस विद्यार्थी ने अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि जब कोर्ट अपनी ड्यूटी का निर्वहन करने के लिए शपथबद्ध है, तो एडवोकेट द्वारा प्रदान की गई खराब सहायता के बावजूद याचिकाकर्ता को न्याय सुनिश्चित करने के लिए रिकॉर्ड को देखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

    अंततः हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट बहराइच के प्रिंसिपल जज को निर्देश दिया कि वे किसी भी पक्ष को अनावश्यक स्थगन न दें और छोटी समय-सीमा पर तारीखें तय करते हुए धारा 125 CrPC के मामले को शीघ्रता से निपटाएं।

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