पढ़ाई पर ध्यान दो: LLB में 499/500 अंकों की मांग करने वाली याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लॉ स्टूडेंट पर लगाया 20 हजार का जुर्माना
Amir Ahmad
7 Nov 2025 3:27 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में लॉ स्टूडेंट द्वारा दायर याचिका को 20,000 के जुर्माने के साथ खारिज कर दिया। छात्रा ने छत्रपति साहूजी महाराज यूनिवर्सिटी कानपुर पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए अपनी पहले सेमेस्टर की LLB परीक्षा में 500 में से 499 अंक देने की मांग की थी।
जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ ने याचिकाकर्ता को पुरानी मुकदमेबाज बताया यह देखते हुए कि उसने 2021 और 2022 के बीच कम से कम दस याचिकाएँ जिनमें रिट, समीक्षा और विशेष अपीलें शामिल हैं, दायर की थीं।
पांच वर्षीय LLB पाठ्यक्रम की स्टूडेंट ने हाईकोर्ट का रुख करते हुए विश्वविद्यालय को प्रत्येक विषय में 100 अंक देने का निर्देश देने की मांग की थी यह दावा करते हुए कि वह 500 में से 499 अंकों की हकदार है। हालांकि विश्वविद्यालय ने पुनर्मूल्यांकन के बाद सत्यापित किया कि उसने केवल 181 अंक प्राप्त किए थे न कि 499।
कोर्ट ने इस पर संज्ञान लेते हुए टिप्पणी की,
"याचिकाकर्ता का 500 में से 499 अंक प्राप्त करने का दावा पूरी तरह से निराधार धारणा पर आधारित था।"
न्यायालय ने कहा कि स्टूडेंट ने भले ही अपने हलफनामे में प्रश्नों के उत्तर उद्धृत किए हों लेकिन उनके स्रोत का कोई रिकॉर्ड नहीं है। साथ ही, हलफनामे में यह भी नहीं बताया गया कि ओएमआर शीट में कौन से प्रश्न सही चिह्नित किए गए थे, लेकिन यूनिवर्सिटी ने उनके लिए अंक नहीं दिए।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बिना स्रोत सत्यापित किए केवल दस्तावेज दाखिल करने से याचिकाकर्ता का मामला बेहतर नहीं होगा, बल्कि यह और बिगड़ जाएगा। कोर्ट ने आगे कहा कि रिट क्षेत्राधिकार के तहत हर प्रश्न और याचिकाकर्ता द्वारा चिह्नित उत्तर की जांच करने के लिए न्यायालय विशेषज्ञ के रूप में कार्य नहीं कर सकता।
एकल न्यायाधीश ने पुन: जाँच प्रक्रिया में कोई अनियमितता या अवैधता नहीं पाई और सुप्रीम कोर्ट के 'विकेश कुमार गुप्ता बनाम राजस्थान राज्य' के फैसले पर भरोसा करते हुए कहा कि शैक्षिक मामलों में, जहाँ विशेषज्ञ समितियों द्वारा रिपोर्ट या उत्तर कुंजियों की जाँच की जाती है, वहाँ कोर्ट को हस्तक्षेप करने में संकोच करना चाहिए।
आदेश में यह भी दर्ज किया गया कि जब पीठ सुनवाई समाप्त कर रही थी, तब याचिकाकर्ता चेतावनी के बावजूद बार-बार कोर्ट को बाधित करती रही और यहाँ तक कि कोर्ट से मामले की सुनवाई से खुद को अलग करने की भी मांग की।
जस्टिस शमशेरी ने इस मांग को सख्त मौखिक टिप्पणियों के साथ खारिज कर दिया और ऐसी मुकदमेबाजी को हतोत्साहित करने के लिए याचिका को 20,000 के जुर्माने के साथ खारिज कर दिया। यह राशि हाईकोर्ट लीगल सर्विसेज कमेटी के बैंक खाते में 15 दिनों के भीतर जमा करने का निर्देश दिया गया है।
अपने आदेश को समाप्त करते हुए पीठ ने याचिकाकर्ता को यह सलाह दी कि वह "अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करे ताकि वह अपनी ईमानदार तैयारी से अधिक अंक प्राप्त कर सके और वह दोबारा इस न्यायालय का दरवाजा न खटखटाए।"

