लोकतांत्रिक राष्ट्र के नागरिकों के भविष्य को आकार देने में शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण, उनका प्रभाव कक्षा से परे तक फैला हुआ है: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Amir Ahmad
13 Jan 2025 2:49 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि शिक्षक लोकतांत्रिक राष्ट्र के भावी नागरिकों को आकार देने, उनके शैक्षणिक विकास को प्रभावित करने और उनकी नागरिक चेतना और नैतिक मूल्यों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
जस्टिस संजय कुमार सिंह की पीठ ने कहा कि शिक्षक की भूमिका बहुआयामी होती है। वह महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाता है, जो केवल ज्ञान प्रदान करने से कहीं आगे तक फैली हुई हैं और जिम्मेदारियों का प्रभाव कक्षा से परे तक फैला हुआ है।
एकल जज ने टिप्पणी की,
"एक लोकतांत्रिक समाज में शिक्षक की भूमिका बहुआयामी होती है और वह महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ निभाता है, जो केवल ज्ञान प्रदान करने से कहीं आगे तक फैली हुई हैं। शिक्षक की जिम्मेदारियों का प्रभाव कक्षा से परे तक फैला हुआ है, जो समाज के व्यापक ताने-बाने को प्रभावित करता है और लोकतंत्र की स्थिरता और जीवंतता में योगदान देता है।"
अदालत ने अपनी स्टूडेंट के साथ बलात्कार करने के आरोपी शिक्षक को जमानत देने से इनकार करते हुए ये टिप्पणियां कीं।
वहीं आरोपी आवेदक ने तर्क दिया कि उसे मामले में झूठा फंसाया गया लेकिन अदालत ने कहा कि धारा 161 और 164 CrPC के तहत पीड़िता के बयान विरोधाभासी नहीं हैं। इसलिए आवेदक को गलत तरीके से फंसाने का कोई आधार नहीं बनता।
अदालत ने आगे रेखांकित किया कि यौन हिंसा एक महिला की निजता और पवित्रता में अमानवीय और गैरकानूनी घुसपैठ है और यह उसके सर्वोच्च सम्मान के लिए एक गंभीर आघात है और उसके आत्मसम्मान और गरिमा को ठेस पहुँचाता है।
पीठ ने कहा,
"यह पीड़िता को अपमानित करता है और जहां पीड़िता असहाय मासूम बच्ची है, यह एक दर्दनाक अनुभव छोड़ जाती है। बलात्कार का अपराध पीड़िता पर नकारात्मक प्रभाव डालता है, क्योंकि यह उसकी मानसिक स्थिति को बिगाड़ देता है।"
अदालत ने आगे जोर दिया कि बलात्कार की शिकार महिला दो संकटों से गुजरती है- बलात्कार और उसके बाद का मुकदमा।
उन्होंने टिप्पणी की,
“जबकि पहला मामला उसकी गरिमा को गंभीर रूप से चोट पहुंचाता है, उसके व्यक्तित्व पर अंकुश लगाता है। उसकी सुरक्षा की भावना को नष्ट करता है। अक्सर उसे शारीरिक रूप से बर्बाद कर सकता है। दूसरा मामला भी उतना ही खतरनाक है, क्योंकि यह न केवल उसे दर्दनाक अनुभव से गुजरने के लिए मजबूर करता है बल्कि यह पूरी तरह से अजनबी माहौल में प्रचार की चकाचौंध में होता है, जहां आपराधिक न्याय प्रणाली का पूरा तंत्र और साजो-सामान उस पर केंद्रित होता है।”
इस पृष्ठभूमि में और मामले के समग्र तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के साथ-साथ पक्षों की ओर से प्रस्तुत किए गए तर्कों, अपराध की गंभीरता, आवेदक को सौंपी गई भूमिका, पीड़िता के बयान और सजा की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने आरोपी-आवेदक को जमानत देने से इनकार कर दिया।
केस टाइटल- गंधर्व कुमार @ गौरव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 2025 लाइव लॉ (एबी) 10

