इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कुरान की आयतों वाला तिरंगा लेकर चलने के आरोपी 6 मुस्लिम पुरुषों को राहत देने से किया इनकार

Amir Ahmad

16 Aug 2024 12:09 PM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कुरान की आयतों वाला तिरंगा लेकर चलने के आरोपी 6 मुस्लिम पुरुषों को राहत देने से किया इनकार

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में 6 मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार किया। उन पर कथित तौर पर धार्मिक जुलूस में अपने हाथों में तिरंगा लेकर चलने का आरोप लगाया था, जिस पर कुरान की आयतें (आयत और कलमा) लिखी थीं।

    जस्टिस विनोद दिवाकर की पीठ ने प्रथम दृष्टया टिप्पणी करते हुए कहा कि आवेदकों का कृत्य भारतीय ध्वज संहिता, 2002 के तहत दंडनीय है। आवेदकों द्वारा राष्ट्रीय सम्मान के अपमान की रोकथाम अधिनियम 1971 की धारा 2 का उल्लंघन किया गया।

    इस बात पर जोर देते हुए कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा, धार्मिक नैतिकता और सांस्कृतिक मतभेदों से परे राष्ट्र की एकता और विविधता का प्रतीक है,

    न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणी की,

    “यह भारत की सामूहिक पहचान और संप्रभुता का प्रतिनिधित्व करने वाला एकीकृत प्रतीक है। तिरंगे के प्रति अनादर का कृत्य दूरगामी सामाजिक सांस्कृतिक निहितार्थ हो सकता है। खासकर भारत जैसे विविधतापूर्ण समाज में।”

    महत्वपूर्ण बात यह है कि न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसी घटनाओं का फायदा वे लोग उठा सकते हैं, जो सांप्रदायिक कलह पैदा करना चाहते हैं या विभिन्न समुदायों के बीच गलतफहमियों को बढ़ावा देना चाहते हैं।

    इसलिए न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि कुछ व्यक्तियों के कार्यों का उपयोग पूरे समुदाय को कलंकित करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।

    यूपी पुलिस ने पिछले साल 1971 अधिनियम की धारा 2 के तहत आरोपी (गुलामुद्दीन और 5 अन्य) के खिलाफ मामला दर्ज किया था।

    मामले में जमानत की मांग करते हुए उन्होंने अदालत का रुख किया, जिसमें उनके वकील ने तर्क दिया कि जांच से यह पता नहीं चलता कि एफआईआर में उल्लिखित झंडा तिरंगा है या तीन रंगों वाला कोई अन्य झंडा है।

    पुलिस रिकॉर्ड पर ऐसा कोई सबूत नहीं ला सकी, जिससे यह पता चले कि 1971 अधिनियम की धारा 2 और 3 में निर्दिष्ट राष्ट्रीय ध्वज के साथ कोई शरारत की गई।

    यह भी तर्क दिया गया कि पुलिस ने एफआईआर दर्ज होने के बाद राष्ट्रीय ध्वज लगाया और आवेदकों को इस मामले में झूठा फंसाया गया।

    दूसरी ओर, राज्य की ओर से पेश एजीए ने तर्क दिया कि आवेदकों के नाम कांस्टेबल खुर्शीद आलम, एशानुल्लाह और रामदास - पुलिस गवाहों के बयानों में उल्लेखित है।

    एजीए ने आगे कहा कि तिरंगा को कब्जे में लेने के बाद यह पता चला कि उस पर कुछ अरबी पाठ लिखा हुआ था, जिसे जब लिपिबद्ध किया गया तो उसमें आयत और कलमा होने की पहचान हुई।

    इन दलीलों की पृष्ठभूमि में न्यायालय ने पाया कि आवेदकों के वकील द्वारा उठाए गए तर्कों में तथ्यों के ऐसे प्रश्नों पर निर्णय की आवश्यकता है, जिन पर केवल ट्रायल कोर्ट द्वारा ही पर्याप्त रूप से निर्णय लिया जा सकता है।

    न्यायालय ने पाया कि समन आदेश में ऐसी कोई अवैधता, विकृति या कोई अन्य महत्वपूर्ण त्रुटि नहीं बताई जा सकती है, जिसके कारण न्यायालय द्वारा धारा 482 सीआरपीसी के तहत शक्तियों के प्रयोग में किसी भी तरह का हस्तक्षेप किया जा सके।

    परिणामस्वरूप उनकी याचिका खारिज कर दी गई।

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