भ्रष्टाचार के कारण शासन आज एक मजाक बनकर रह गया है : गुजरात हाईकोर्ट [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
27 Dec 2018 8:54 PM IST
गुजरात उच्च न्यायालय ने हमारे समाज और जीवन पर भ्रष्टाचार के प्रभाव पर प्रहार करते हुए कहा है कि इसके चलते शासन एक ' मजाक' बनकर रह गया है। न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने कहा, "यदि शासन आज मजाक का विषय बन गया है और इसे हंसी का पात्र बनाकर दयनीय स्थिति में छोड़ दिया गया है तो इसका पूरा दोष शायद भ्रष्टाचार पर जाना चाहिए । विकास शायद भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा शिकार है और इसके दुष्प्रभाव के कारण प्रतिकूल रूप से विकास पर बुरा असर पड़ा है... "
"... भारत जैसे विकासशील देश में भ्रष्टाचार की समस्या अधिक विकट है जहाँ इस खलनायक ने लोगों के जीवन से विकास का पूरी तरह से अपहरण कर लिया है।"
समाज पर भ्रष्टाचार के प्रभावों के बारे में टिप्पणी करते हुए न्यायमूर्ति पारदीवाला ने आगे कहा, "यदि किसी से एकमात्र कारक का नाम पूछा जाए जो हमारे समाज की प्रगति को प्रभावी रूप से जकड़े हुए है तो यह भ्रष्टाचार है। यदि विकासशील देश में समाज कानून और व्यवस्था के लिए किराए के हत्यारों से भी ज्यादा खतरे का सामना करता है तो वो सरकार और राजनीतिक दलों के उच्च पद पर बैठे भ्रष्ट तत्वों से होता है। यह मानवता के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। यह मानवता के सामने कई अन्य समस्याओं की जड़ में समाया है।
"भ्रष्टाचार को शायद दुनिया भर के देशों और समाजों के कानूनी और नैतिक ताने-बाने के पतन और विफलता के लिए जिम्मेदार सबसे बड़े कारक के रूप में वर्णित किया जा सकता है।
यह एक व्यक्ति की स्वतंत्रता को कमजोर करता है, लोगों के अधिकारों को कमजोर करता है, लोकतांत्रिक संस्थानों के अस्तित्व को खतरे में डालता है और राज्य की सुरक्षा को खतरे में डालता है। "
दरअसल हाईकोर्ट तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के दो पूर्व मंत्रियों पुरषोत्तम सोलंकी और दिलीप संघानी द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था जिसमें 400 करोड़ रुपये के मत्स्य घोटाले में उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा रद्द करने की मांग की गई थी।
अदालत ने पुलिस अधिकारी द्वारा प्रस्तुत 200 पेज की जांच रिपोर्ट को देखने के बाद कहा कि इसमें प्रथम दृष्टया मामले से अधिक खुलासा किया गया है जिसमें न केवल राज्य के मत्स्य राज्य मंत्री बल्कि पूर्व कृषि मंत्री दिलीप संघानी के खिलाफ भी मामला बनता है। इसके बाद यह कहा गया कि अभियुक्तों के खिलाफ प्रक्रिया जारी करने और उनके खिलाफ ट्रायल शुरू करने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं।
सिर्फ दुर्भावनापूर्ण के कारण शिकायत रद्द करना पर्याप्त नहीं
अदालत ने इस दलील को खारिज कर दिया कि किसी राज्य के वर्तमान मंत्री के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी तो जनहित को नुकसान होगा। कोर्ट ने यह स्वीकार करने से भी इंकार कर दिया कि शिकायत को दुर्भावनापूर्ण इरादों के साथ दायर किया गया।
"यह मानते हुए भी कि शिकायतकर्ता ने केवल अपनी व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण शिकायत की है, जो कि, स्वयं, गंभीर आरोपों वाली शिकायत को खारिज का आधार नहीं होगा और सबूत एकत्र किए जाने के बाद इसका परीक्षण होगा।"
स्पीडी ट्रायल की आवश्यकता
अदालत ने पाया कि आपराधिक न्याय के प्रशासन के लिए "लिंच-पिन" आपराधिक ट्रायल का तुरंत निष्कर्ष है। अधिनियम की धारा 19 (3) में कहा गया है कि अधिनियम के तहत मुकदमे के त्वरित निस्तारण के साथ-साथ उच्च न्यायालयों द्वारा कम से कम हस्तक्षेप की आवश्यकता होनी चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि अधिनियम की धारा 4 (4) में विशेष रूप से कहा गया है कि एक विशेष न्यायाधीश, जहां तक व्यवहारिक हो, रोजाना सुनवाई के आधार पर अपराध का ट्रायल कर सकता है।
"इस विधायी मंशा पर विभिन्न न्यायिक फैसलों में न्यायालयों द्वारा स्पष्ट रूप से शीघ्र निस्तारण की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। ये प्रावधान पर्याप्त रूप से विधानमंडल की मंशा और अधिनियम के उद्देश्य को भी इंगित करते हैं कि भ्रष्टाचार के मामलों को तेजी से और जल्द से जल्द पूरा करने की कोशिश की जाएगी। "
निष्कर्ष
इसके बाद अॉयन रैंड की रचना एटलस शुरुग्ड का हवाला देकर कोर्ट ने ये याचिकाएं खारिज कर दीं:
"जब आप देखते हैं कि व्यापार किया जाता है, सहमति से नहीं, बल्कि मजबूरी से - जब आप देखते हैं कि उत्पादन करने के लिए आपको उन पुरुषों से अनुमति लेनी होती है जो कुछ भी पैदा नहीं करते - जब आप देखते हैं कि पैसा उन लोगों के लिए बह रहा है जो सौदा करते हैं, सामान में नहीं बल्कि किसी के पक्ष में - जब आप देखते हैं कि लोगों को भ्रष्टाचार से और अपने कानूनों से अधिक धन मिलता है और आपके कानून उनके
खिलाफ आपकी रक्षा नहीं करते बल्कि उनकी आपके खिलाफ रक्षा करते हैं - जब आप देखते हैं कि भ्रष्टाचार पुरस्कृत हो रहा है और ईमानदारी आत्म-बलिदान बन रही है - आप जान सकते हैं कि आपका समाज बर्बाद है। "