Begin typing your search above and press return to search.
ताजा खबरें

आधार पर संविधान पीठ के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल [याचिका पढ़े]

LiveLaw News Network
25 Dec 2018 11:24 AM GMT
आधार पर संविधान पीठ के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल [याचिका पढ़े]
x

जस्टिस केएस पुट्टुस्वामी ( सेवानिवृत) बनाम भारत संघ व अन्य मामले में आधार की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखने के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई है।

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की सहमति से न्यायमूर्ति एके सीकरी ने आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवा के लक्षित वितरण) अधिनियम 2016 के कुछ प्रावधानों को पढ़ते हुए कुछ महत्वपूर्ण प्रावधानों (मुख्य रूप से धारा 33 (2), 47 और 57) को रद्द किया था जबकि बाकी को बरकरार रखा था।

एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड पल्लवी प्रताप के कार्यालय के माध्यम से अब इम्तियाज अली पलसानिया द्वारा पुनर्विचार याचिका दायर की गई है और इसका मसौदा सुप्रीम कोर्ट के वकील निपुण सक्सेना ने तैयार किया है। यह याचिका आधार कार्यक्रम के साथ-साथ आधार अधिनियम, 2016 के उन पहलुओं को चुनौती देती है जिन्हें संवैधानिक रूप से मान्य माना गया है।

विशेष रूप से पलसानिया का दावा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को पारित करने से पहले अंतरिम आवेदनों में उनके द्वारा दिए गए आधारों पर विचार नहीं किया गया।

उन्होंने निम्नलिखित आधारों पर अन्य बातों को दोहराया है:

( A) इसमें 2016 के अधिनियम की धारा 2 (के) पर अदालत का ध्यान आकर्षित किया गया है, जो किसी भी व्यक्ति को किसी की "आय" से संबंधित किसी भी जानकारी साझा करने से रोकती है। इसमें बताया गया है कि कोर्ट आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 139AA को बरकरार रखते हुए इस प्रावधान के दायरे का विश्लेषण करने में विफल रहा, जो पैन कार्ड को आधार से जोड़ना अनिवार्य बनाता है।

( B) यह दावा किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने बिनॉय विस्वाम बनाम भारत संघ (2017) 7 SCC 59 में भी इस प्रावधान के प्रभाव पर विचार नहीं किया। यह कहा गया है, "ये दोनों निर्णय इस बात पर बल देने में विफल रहे हैं कि जब क़ानून की स्पष्ट भाषा में ही कुछ निषेध है, तो उसे इसका प्रभाव दिया जाना चाहिए और इसी आधार पर ही आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 139 एए को रद्द किया जाना चाहिए था। "

(C) यह निर्णय एक ही फैसले में इसके द्वारा निर्धारित परीक्षण को ठीक से लागू नहीं करता कि आधार सिर्फ लाभ, सब्सिडी या सेवा के लिए मांगा जाना चाहिए। आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 139AA के तहत आयकर रिटर्न दाखिल करना न तो कोई लाभ है, न ही सब्सिडी या सेवा।

( D) याचिका में दावा किया गया है कि आधार कार्यक्रम, जो आधार अधिनियम, 2016 को लागू करने से पहले अस्तित्व में था, "खुद इस देश के नागरिकों से संबंधित संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा को विदेशी संस्थाओं में ट्रांसफर करने का एक साधन बन गया था, जोकि बॉयोमीट्रिक के रूप में कार्य करता है। ऐसे समय में जब 2010 में यूआईडीएआई के पास संवेदनशील व्यक्तिगत जानकारी संग्रहीत करने के लिए कोई साइबर या तकनीकी बुनियादी ढांचा नहीं था। "

(E) याचिका में कहा गया है कि 4 अप्रैल, 2016 से पहले जिसके सात दिन बाद आधार अधिनियम, 2016 लागू हुआ, 100 करोड़ लोगों ने पहले ही आधार कार्यक्रम में नामांकन कर लिया था। इसमें दावा किया गया है कि आधार अधिनियम, 2016 की धारा 57 की गलत व्याख्या के चलते निजी संस्थाओं या कॉरपोरेट के पास पहले से ही संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा इकट्ठा हो गया।

( F) यूआईडीएआई ने धारा 23 (3) का सहारा लेते हुए अनुबंधों को पूर्वव्यापी वैधता प्रदान की थी, जो आधार अधिनियम, 2016 को ही लागू होने से पहले हुआ, यह दावा किया गया है, "ये एमओयू निजता के अधिकार के सरासर हनन में हैं। तब आधार अधिनियम, 2016 के तहत परिकल्पित सुरक्षा के कोई भी नियम यूआईडीएआई के बचाव में नहीं आ सकते क्योंकि कोई भी वैधानिक प्रावधान संवैधानिक अधिकार के पूर्वव्यापी उल्लंघन का उपचार नहीं कर सकता। "

(G) याचिका कहती है कि यह फैसला निजी खिलाड़ियों और कॉर्पोरेट निकायों से संवेदनशील निजी डेटा को वापस अपने अधिकार में लेने के लिए निर्देशित करने में विफल रहा है।

(H) आरोप लगाया गया है कि ये फैसला एक नागरिक और एक निवासी के बीच अंतर पर विचार नहीं करता। सभी लाभ, सब्सिडी या सेवाएं जो केवल नागरिकों के अधिकार हैं, उन नागरिकों से दूर कर उन्हें दिए जा रहे हैं जो नागरिक नहीं हैं।


Next Story