नीति आयोग की न्यायिक और विधिक सुधार की प्रस्तावित रणनीति: अखिल भारतीय न्यायिक सेवा परीक्षा, मध्यस्थता और सुलह के सुझाव [रिपोर्ट पढ़ें]

LiveLaw News Network

21 Dec 2018 2:51 PM GMT

  • नीति आयोग की न्यायिक और विधिक सुधार की प्रस्तावित रणनीति: अखिल भारतीय न्यायिक सेवा परीक्षा, मध्यस्थता और सुलह के सुझाव [रिपोर्ट पढ़ें]

    नीति आयोग ने "Strategy For New India @ 75" के तहत कुछ महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए हैं जिनका उद्देश्य देश में न्यायिक और विधिक सुधार लाना है। अपनी इस रिपोर्ट में उसने देश में अखिल भारतीय न्यायिक सेवा परीक्षा आयोजित करने का भी सुझाव दिया है।

    रिपोर्ट कहता है कि न्यायिक सेवा के निचले क्रम के जजों (प्रथम भर्ती स्तर), भारतीय विधिक सेवा (केंद्र और राज्यों दोनों ही), अभियोजकों, विधिक सलाहकारों और विधिक प्रारूप तैयार करने वालों की चयन की प्रक्रिया के संचालन का ज़िम्मा संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को सौंपा जा सकता है। इससे युवा और प्रतिभाव स्नातक इस सेवा की ओर आकर्षित होंगे जो इस व्यवस्था को मज़बूत बनाएँगे।

    दूसरा महत्त्वपूर्ण सुझाव यह दिया गया है कि वाणिज्यिक विवाद में सबसे पहले उन्हें मध्यस्थता की प्रक्रिया की ओर ले जाया जाए और वहाँ विवाद को सुलझाने की हर चंद कोशिश की जाए।

    रिपोर्ट में वित्त मंत्रालय के एक अध्ययन की ओर ध्यान खींचा गया है जिसमें कहा गया है कि सम्पत्ति से संबंधित विवाद को सुलझाने में औसतन 20 साल की देरी होती है और इस समय अदालतों में जितने मामले लंबित हैं उनको इस हिसाब से सुलझाने में 324 साल लग जाएँगे।

    नीति आयोग के कुछ प्रमुख सुझाव इस तरह से हैं :-




    • कुछ मामलों को नियमित अदालती व्यवस्था से हटा लिया जाए और इन्हें वाणिज्यिक अदालत हाईकोर्ट के वाणिज्यिक अपीली प्रभाग को सौंप दिया जाए।इसी तरह आपराधिक मामलों को आपराधिक न्यायिक मजिस्ट्रेट को सौंप दिया जाए। ऐसा कमसे काम मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र में किया जाए ताकि अदालतों में मुक़दमों की भीड़ को कम किया जा सके।

    • ऐसी व्यवस्था की जाए कि वाणिज्यिक विवाद में पक्षकार पहले इसे मध्यस्था के माध्यम से सुलझाने की पूरी कोशिश करें। हालाँकि इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि यह व्यवस्था एक और न्यायिक व्यवस्था का स्तर ना बन जाए।

    • मध्यस्था और सुलह अधिनियम, 1996 को इस तरह से संशोधित किया जाए कि यह देशी और विदेशी दोनों ही संस्थागत मध्यस्थता का एक मज़बूत स्वायत्तशासी एकक बन जाए। भारतीय मध्यस्थता परिषद जैसी संस्था की स्थापना की जाए जो कि मध्यस्थता करने वाले संस्थानों की ग्रेडिंग करे और उन्हें मान्यता प्रदान करे।

    • सक्षमता बढ़ाने के लिए न्यायाधिकरणों का विलय किया जाए, इनमें होने वाली नियुक्तियों को एक विशेष एजेंसी या कार्मिक या प्रशिक्षण विभाग द्वारा सुनियोजित किया जाए।


    आयोग के न्यायिक सुधार के बारे में सुझाव :-




    • ठेका, श्रम, कर, कार्पोरेट या संवैधानिक मुद्दे में आर्थिक, सामाजिक प्रभावों का ध्यान रखा जाना चाहिए।

    • प्रशिक्षण के सतत प्रयास की व्यवस्था हो ताकि और कौशल विकास, ज्ञान और नवीनतम अन्तर्राष्ट्रीय चलन की जानकारी अद्यतन हो सके।

    • न्यायिक अकादमियों के लिए के लिए प्रशिक्षण विविधतापूर्ण हो और इसमें प्रतिष्ठित वकीलों, सफल एनजीओ और अन्य को शामिल किया जाए।

    • प्रशिक्षण के मोडयूल को ई-प्लेटफ़ार्म पर लाइव प्रसारित किया जाए ताकि इससे जुड़ी जानकारियों को सबके लिए सुलभ किया जा सके।

    • जजों के प्रदर्शक का सूचकांक बनाया जाए राज्यों के लिए न्याय सुलभता सूचकांक अलग से बनाया जाए।

    • न्यायिक व्यवस्था में एक प्रशासनिक कैडर शुरू की जाए ताकि व्यवस्था को सव्यवस्थित किया जा सके। न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए इस कैडर के सभी हाईकोर्ट के कर्मचारी सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के प्रति जवाबदेह हो।

    • कोर्ट की प्रक्रिया के तकनीकी आधुनिकीकरण को प्राथमिकता दिया जाए, इलेक्ट्रोनिक कोर्ट को सफल बनाया आजाए और मामलों का प्रबंधन - कोर्ट के कार्यक्रमों का इलेक्ट्रोनिक प्रबंधन सहित, सभी कोर्ट को इस एकीकृत राष्ट्रीय कोर्ट एप्लिकेशन सॉफ़्टवेयर से जोड़ा जाए।

    • आने-जाने की मुश्किलों को आसान करने के लिए विडीओ कॉन्फ़्रेन्स की सुविधा का प्रयोग किया जाए ताकि शीघ्र न्याय दिलाया जा सके।


    विधिक सुधार के सुझाव :-




    • सभी केंद्रीय और राज्यों के क़ानूनों और नियमों का एक कोष (Repository) बनाया जाए।

    • अप्रासंगिक हो चुके क़ानूनों को समाप्त किया जाए और वर्तमान क़ानूनों के प्रतिबंधात्मक प्रावधानों को हटाया जाए।

    • आपराधिक न्याय प्रक्रिया में सुधार किया जाए।

    • ज़रूरी संशोधनों को लागू करने के लिए समय सीमा तय की जाए।

    • सरकारी मुलाजिमों को नागरिकों की ज़रूरतों और उनको मदद पहुँचाने के प्रति ज़्यादा संवेदनशील बनाया जाए ताकि विवादों और मुक़दमों की संख्या में कमी आए।

    • नए क़ानून की भाषा सरल और सादी होनी चाहिए।


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