बॉम्बे हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट का आदेश ख़ारिज किया, अनिवासी भारतीय को 8 हज़ार के बदले ₹50 हज़ार का मुआवज़ा देने को कहा [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
20 Dec 2018 10:56 PM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कैथरिन एडवार्ड्स की याचिका पर अपने फ़ैसले में दो पूर्व के फ़ैसले को निरस्त कर दिया और कैथेरिन को 8 हज़ार के बदले 50 हज़ार का मुआवज़ा देने का आदेश दिया।
कैथरिन ने घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 23(2) के तहत अपने पति से मुआवज़े की माँग के लिए याचिका दायर की थी। चूँकि उसकी याचिका अपीली अदालत ने ख़ारिज कर दी थी, इसलिए उसने हाईकोर्ट में अपील की। अपने अपील में उसने 28 नवंबर 2013 को मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट और 19 नवंबर 2014 को अतिरिक्त सत्र जज के आदेश को चुनौती दी थी।
न्यायमूर्ति एमएस सोनक ने कहा कि मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट का आदेश अस्पष्ट था और इसलिए कैथरिन की याचिका स्वीकार कर ली। कैथरिन की वक़ील ने कहा कि उसका पति एडवार्ड अबू धाबी की एक कंपनी, कोस्टेन में पिछले 11 वर्षों से काम करता है और उसको 15000 दिरहम वेतन मिलता है और इस तरह यह राशि रुपए में 2,25,000 प्रति माह होता है। इसके बावजूद कोर्ट ने उसके पति को उसे और उसके बेटे को सिर्फ़ ₹8000 प्रतिमाह का गुज़ारा राशि देने का आदेश दिया।
कोर्ट में एडवार्ड ने स्वीकार किया कि उसे 15000 दिरहम वेतन मिलता है पर कहा कि चूँकि कैथरिन ख़ुद ही अलग हो गई है और उसने उसकी एक चौल बेच दी है, उसे गुज़ारा भत्ता नहीं मिलना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि एडवार्ड को इतना ज़्यादा वेतन मिलता है इसकी जानकारी होने के बावजूद एडवार्ड को अपनी पत्नी और बच्चे क्राइस्ट को सिर्फ़ ₹8000 रुपए प्रतिमा का गुज़ारा भत्ता देने को कोर्ट ने कहा। कोर्ट ने कहा कि अपील कोर्ट ने तो उसकी याचिका ही यह कहते हुए ख़ारिज कर दी कि इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि एडवार्ड को 15000 हज़ार दिरहम वेतन मिलता है। कोर्ट ने कहा कि अपीली अदालत ने कोर्ट में जिन बातों को स्वीकार किया गया है और जो दस्तावेज़ पेश किया गया है उसको देखने की ज़हमत भी नहीं उठाई और अपील को ख़ारिज कर दिया।
कोर्ट ने अंततः कहा कि प्रतिवादी नम्बर 1 की आय उसकी जीवन शैली को देखते हुए उसे याचिकाकर्ता और उसके बेटे को कम से कम ₹50 हज़ार प्रतिमाह का अंतरिम गुज़ारा भत्ता देने का आदेश दिया जाता है।