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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, मध्यस्थता का क्लौज होने से उपभोक्ता मंच का अधिकार क्षेत्र 2015 के संशोधन से सीमित नहीं हो जाता है [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network
14 Dec 2018 4:34 AM GMT
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, मध्यस्थता का क्लौज होने से उपभोक्ता मंच का अधिकार क्षेत्र 2015 के संशोधन से सीमित नहीं हो जाता है [निर्णय पढ़ें]
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सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के उस आदेश को सही बताया है जिसमें उसने  उस अपील को ख़ारिज कर दिया था जो उपभोक्ता शिकायत के तहत मध्यस्थ को एक रेफ़रेंस जारी करने को लेकर था। यह अपील एक ख़रीददार और भवन निर्माता के बीच हुए समझौते में मध्यस्थता के प्रावधान होने के बाद भी किया गया है।

मंगलवार को न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने एम्मार एमजीएफ लैंड लिमिटेड की पुनर्विचार याचिका रद्द कर दी।

मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने भवन निर्माता कम्पनी की याचिका ख़ारिज कर दी थी और एनसीडीआरसी के आदेश को सही ठहराया था। कोर्ट ने उस समय कहा था कि समझौते का मध्यस्थता का नियम उपभोक्ता मंच के अधिकारक्षेत्र को मध्यस्थता क़ानून की धारा 8 को संशोधित किए जाने के बाद भी नज़रंदाज़ नहीं कर सकता और अपील को बिना कारण बताए ख़ारिज किया जाता है।

इससे पहले भवन निर्माता के वक़ील एफएस नरीमन ने कहा था कि मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2015 के बाद उपभोक्ता मंच सहित न्यायिक अथॉरिटी को यह अधिकार है कि वह किसी मामले को मध्यस्थता के लिए भेज सकता है अगर कोई उचित मध्यस्थता समझौता हुआ है।

कोर्ट ने कहा कि विधाई मंशा और लक्ष्य ऐसे मुद्दों से जुड़ा नहीं है जहाँ कुछ विवादों को मध्यस्था के लिए भेजे जाने की ज़रूरत नहीं है।

कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका में उठाए गए मुद्दे को ख़ारिज करते हुए कहा कि ‘ सुप्रीम कोर्ट या किसी अन्य कोर्ट के किसी फ़ैसले, आदेश के बावजूद’ का मतलब सिर्फ़ उन मिसालों से सम्बंधित है जहाँ यह कहा गया है कि धारा 8 के तहत कोई संदर्भ देते हुए न्यायिक अथॉरिटी को मध्यस्थता समझौते के विभिन्न पक्षों पर ग़ौर करने का अधिकार है जो मध्यस्थता का विषय है भले ही दावा ज़िंदा है या मर गया है या मध्यस्थता का समझौता अमान्य है।

कोर्ट ने अंततः इस पुनरीक्षण याचिका को ख़ारिज कर दिया।


 
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