मामले की जाँच अगर ठीक से नहीं की गई है तो संदेह का लाभ अवश्य ही आरोपी को मिलना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
11 Dec 2018 1:52 PM GMT
सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के एक मामले में आरोपी को बरी किए जाने को सही ठहराते हुए कहा कि अगर मामले की जाँच ठीक से नहीं हुई है तो इसकी वजह से संदेह का लाभ अवश्य ही आरोपी को मिलना चाहिए।
एक साम्प्रदायिक दंगे में एक व्यक्ति की हत्या के लिए निचली अदालत ने चार लोगों को सज़ा सुनाई। इन लोगों की अपील पर सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन का पक्ष मामले की कमज़ोर जाँच के कारण कई सारी ख़ामियों से भरी है। इसमें कहा गया है कि आरोपियों की जो पहचान की गई है वह काफ़ी संदेहास्पद है और टीआईपी इतनी अच्छी है कि इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता। उत्तर प्रदेश राज्य ने इस मामले में अभियुक्तों के बरी होने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
हाईकोर्ट के विचारों से सहमति जताते हुए न्यायमूर्ति एनवी रमना और न्यायमूर्ति एमएम शांतनागौदर की पीठ ने कहा, “200-300 दंगाइयों की भीड़ में से चार आरोपियों की 100% सही पहचान करना; इन आरोपियों के शरीर पर किसी भी तरह के विशेष निशान के बारे में नहीं बता पाना विशेषकर गवाह और जहाँ यह घटना हुई उसके बीच की दूरी को देखते हुए काफ़ी असंभव लगता है। फिर, आरोपी नम्बर 1 और 2 की टीआईपी करने में 55 दिनों की अनावश्यक देरी हुई।”
पीठ ने कहा कि इस मामले में जाँच के स्तर पर कई लापरवाहियाँ हुई हैं और इनकी वजह से आरोपियों के निर्दोष होने के विचार का पलड़ा भारी हो गया है।
इस संदर्भ में कोर्ट ने कहा, “…हम आरोपियों पर लगे अपराध की गम्भीरता को समझते हैं… पर इस बात की उम्मीद नहि की जानी चाहिए कि आरोपी अक्षम अभियोजन की मदद करते हुए अपने निर्दोष होने का सबूत छोड़ देंगे जिसकी जाँच में काफ़ी विसंगतियाँ हैं। अक्षम जाँच से पैदा होने वाले संदेह का लाभ अवश्य ही आरोपियों को मिलना चाहिए।”
इसके बाद पीठ ने राज्य की अपील ख़ारिज कर दी।