व्हाट्सएप ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, शुरू से अंत तक एनक्रिप्शन के कारण कंटेंट हटाना सम्भव नहीं
LiveLaw News Network
7 Dec 2018 10:38 PM IST
व्हाट्सएप ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि उसके लिए कंटेंट को हटाना सम्भव नहीं है क्योंकि इसमें शुरू से अंत तक एनक्रिप्शन की तकनीक का पालन होता है।
वरिष्ठ वक़ील कपिल सिबल ने यह दलील उस समय दी जब अश्लील बाल साहित्य, बलात्कार और सामूहिक बलात्कार से संबंधित विडीओ पर प्रतिबंध लगाने पर भारत सरकार के सुझाव पर चर्चा हो रही थी।
केंद्र ने गूगल, व्हाट्सएप और फ़ेसबुक को कार्रवाई के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए थे -
- artificial intelligence पर आधारित टूलस के द्वारा ऑडीओ को ग़ैरक़ानूनी कंटेंट को हटाने और इनकी निगरानी के लिए सक्रिय टूलस स्थापित किए जाएँ।
- ग़ैरक़ानूनी कंटेंट की पहचान और इनको हटाने के लिए विश्वसनीय फ़्लैगर लगाए जाएँ।
- क़ानून को लागू करने वाले एजेंसियों की मदद लेने के लिए चौबीसों घंटे काम करने वाली व्यवस्था शुरू की जाए।
- भारत में मौजूद सम्पर्क अधिकारी और escalation officer की (उनके नाम, पद, ईमेल, मोबाइल नम्बर की जानकारी के साथ) नियुक्ति की जाए।
- ग़ैरक़ानूनी केंटेंट को हटाने के लिए क़ानून को लागू करने वाली एजेंसियों की तुरंत मदद ली जाए।
न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने कहा, “ऐसा लगता है कि भिन्न-भिन्न एककों की इस बारे में प्रतिक्रिया अलग-अलग है। गूगल और यूट्यूब की इस बारे में कोई प्रतिक़्रिया नहीं है। फ़ेसबुक, माइक्रोसॉफ़्ट और व्हाट्सएप में से प्रत्येक की प्रतिक्रिया अलग-अलग है … इस बारे में सभी सहमत हैं कि अश्लील बाल साहित्य, बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के विडीओ हटाए जाने की ज़रूरत है।”
इसके बाद कोर्ट ने इन सभी एककों को को भारत सरकार के सुझाव पर प्रस्तावित/प्रारूप एसओपी पेश करने को कहा ताकि इन्हें लागू किया जा सके।
इसके बाद पीठ ने निर्देश दिया की रजिस्ट्री में जमा राशि को उस पर मिले ब्याज सहित तमिलनाडु में ग़ाज़ा तूफ़ान के कारण हुई तबाही में मदद के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष में दे दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट एक एनजीओ प्रज्वला के पत्र पर स्वतः संज्ञान लेते हुए मामले पर सुनवाई शुरू की है। इस संगठन ने इंटरनेट और व्हाट्सएप के माध्यम से यौन हिंसा के बारे में प्रचारित किए जा रहे विडीओ की ओर कोर्ट का ध्यान आकर्षित किया था।
इस मामले की पिछली सुनवाई के दौरान केंद्र ने कोर्ट से कहा था कि उसने एक साइबर अपराध पोर्टल www.cybercrime.gov.in शुरू किया है। सरकार ने इसके अलावा अन्य जानकारियाँ भी दी थीं -
- एक नोडल ऑफ़िसर और एक स्तर से उच्च अधिकारी की सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने नामित किया है जो शिकायतों का निपटारा करेंगे। इसे पोर्टल पर डाल दिया गया है।
- मध्यस्थों, अमिकस और याचिकाकर्ता के वक़ील की मदद से एसओपी को अंतिम रूप दे दिया गया है।
- समझौते का प्रारूप को National Centre for Missing and Exploited Children (NCMEC) को 19 नवम्बर 2018 को भेज दिया गया और उनसे उत्तर की प्रतीक्षा है।
- साइबर अपराध पोर्टल के बारे में लोगों को रेडिओ के माध्यम से 1 दिसम्बर से प्रचारित किया जा रहा है।
- गूगल से आग्रह किया गया है कि CSAM की पहचान के लिए विकसित अपना एपीआई वे साझा करें।
- अंग्रेज़ी, हिंदी, बंगला और कन्नड़ में तैयार किए गए कीवर्ड को मध्यस्थों के साथ साझा किया गया है। अन्य भाषाओं में भी कीवर्ड तैयार किए जा रहे हैं।