मध्याह्न भोजन को गम्भीरता से नहीं लेने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने पाँच राज्यों पर ₹1-1 लाख और दिल्ली सरकार पर ₹2 लाख का दंड लगाया [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

7 Dec 2018 6:29 AM GMT

  • मध्याह्न भोजन को गम्भीरता से नहीं लेने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने पाँच राज्यों पर ₹1-1 लाख और दिल्ली सरकार पर ₹2 लाख का दंड लगाया [आर्डर पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को स्कूलों में मध्याह्न भोजन से संबंधित मामलों को लागू नहीं करने के लिए पाँच राज्यों - आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और जम्मू-कश्मीर पर ₹1-1 और दिल्ली सरकार पर ₹2 लाख का दंड लगाया।

    इन राज्यों ने सरकारी स्कूलों में मध्याह्न भोजन के बारे में एक ऑनलाइन लिंक स्थापित करने और मध्याहन भोजन योजना में स्वच्छता की निगरानी के लिए चार्ट बनाने के कार्यक्रम को लागू नहीं किया।

    दंड लगाने का यह निर्णय न्यायमूर्ति एमबी लोकुर,न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने ‘अन्तर्राष्ट्रीय मानव अधिकार निगरानी परिषद’ नामक एनजीओ की याचिका पर जारी किया।

    वर्ष 2013 में इस बारे में दायर की गई याचिका में कहा गया कि देश भर के 12 लाख सरकारी स्कूलों में बच्चों को मध्याह्न भोजन हर दिन दिया जाता है, पर उनको हमेशा ही विषाक्त भोजन दिए जाने और अन्य स्वास्थ्य गड़बड़ियों के होने की आशंका रहती है क्योंकि मध्याह्न भोजन के बारे में उचित बुनियादी सुविधा और इनकी निगरानी का माक़ूल इंतज़ाम नहीं है।

    याचिका पर अपने विचार में पिछले साल 23 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा था कि वे तीन महीने के भीतर अपने वेबसाइट्स पर उन छात्रों की कुल संख्या अपलोड करें जिन्हें मध्याह्न भोजन की सुविधा दी जा रही है।

    मंगलवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि मध्याह्न भोजन की योजना को कई राज्य गम्भीरता से नहीं ले रहे हैं। यह विचार कोर्ट ने तब व्यक्त किया जब उसे लगा कि कई राज्यों ने इस बारे में आँकड़े कोर्ट को उपलब्ध नहीं कराए हैं और यह की इस योजना का लाभ बच्चों को नहीं मिल रहा है और इसके लिए आने वाले अनाज ग़ायब हो रहे हैं।

    राज्यों के असहयोग से नाराज़ कोर्ट ने कहा, “हम यह कोशिश करते रहे हैं कि राज्य सम्बंधित आँकड़ों को अपलोड करने में मदद करेंगे ताकि इस मामले में ऐसे क़दम उठाए जा सकें ताकि इसमें हो रही गड़बड़ियों को समय समय पर ठीक किया जा सके। पर हमारे कई आदेशों के बाद भी कुछ राज्यों ने या तो बहुत कम या फिर एकदम ही कोई सहयोग नहीं दिया।”

    कोर्ट ने कहा की 26 अक्टूबर को आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और उड़ीसा ने उसे आश्वासन दिया था कि वे इस योजना से जुड़ी ज़रूरतों को पूरा करेंगे और इसके बारे में ऐसे वेबसाइट में काम करनेवाला लिंक उपलब्ध कराएँगे। पर वे ऐसा करने में विफल रहे हैं।

    कोर्ट ने कहा कि उन्हें इन राज्यों पर एक लाख रुपए का दंड लगाने के अलावा और कोई चारा नहीं था। कोर्ट ने कहा, “एक महीना से ज़्यादा बीत गया है पर इन राज्यों ने कुछ भी नहीं किया है…और इस वजह से इन पर दंड लगाने के अलावा हमारे पास और कोई विकल्प नहीं है जो मामले के अनावश्यक स्थगन के लिए और अपने राज्य के बच्चों को इस योजना का लाभ देने से वंचित रखने के लिए जुर्माने के तौर पर लगाया गया है।”

    जम्मू कश्मीर के बारे में कोर्ट ने कहा कि एक लिंक तो उपलब्ध कराया गया है पर वह काम नहीं कर रहा है और इसलिए उस पर भी एक लाख का जुर्माना लगाया गया।

    जहाँ तक एनसीटी दिल्ली की बात हैं, कोर्ट ने कहा कि पिछली सुनवाई में इस राज्य का कोई प्रतिनिधि अदालत में मौजूद नहीं था और यहाँ तक कि मंगलवार को भी उसने कोई सूचना उपलब्ध नहीं कराई। इसलिए इस राज्य पर दो लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया।


     
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