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जनप्रतिनिधियों के खिलाफ आपराधिक मामलों के ट्रायल प्राथमिकता से पूरे हों : सुप्रीम कोर्ट ने बिहार और केरल हाईकोर्ट से कहा [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network
4 Dec 2018 4:26 PM GMT
जनप्रतिनिधियों के खिलाफ आपराधिक मामलों के ट्रायल प्राथमिकता से पूरे हों : सुप्रीम कोर्ट ने बिहार और केरल हाईकोर्ट से कहा [आर्डर पढ़े]
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एक अहम मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बिहार और केरल हाईकोर्ट को  पूर्व व वर्तमान विधायकों /सासंदों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों से निपटने के लिए हर जिले में सेशन व मजिस्ट्रेट कोर्ट को स्पेशल कोर्ट की तरह केसों के आवंटन करने को कहा है ताकि इनका ट्रायल जल्द पूरा हो सके।

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस के कौल और जस्टिस के एम जोसेफ की पीठ ने कहा है इस दौरान उन मामलों को प्राथमिकता देने को कहा है जिनमें अधिकतम सजा के तौर पर आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है।

पीठ ने कहा कि फिलहाल इसे दो हाईकोर्ट से ही शुरू किया जा रहा है।

पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट वक्त वक्त पर इसकी स्टेटस रिपोर्ट भी सुप्रीम कोर्ट को देंगे।

दरअसल अमिक्स क्यूरी विजय हंसारिया ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल रिपोर्ट में बताया है कि फिलहाल पूर्व व वर्तमान विधायकों /सासंदों के खिलाफ देशभर में 4122 आपराधिक मामले लंबित हैं। इनमें उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 922 केस लंबित हैं जबकि केरल में करीब 312  केस लंबित हैं और बिहार मे 304 केस लंबित हैं। इनमें से 1991 मामलों में आरोप तय नहीं गए हैं जबकि पूर्व व वर्तमान विधायकों /सासंदों के खिलाफ 264 मामलों में हाइकोर्ट द्वारा ट्रायल पर रोक लगाई गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि कई केस तीस साल पुराने भी हैं।

अमिक्स क्यूरी ने सुझाव दिया कि हर जिले में ऐसे केसों के ट्रायल को जल्द पूरा करने के लिए अदालतों को निर्धारित किया जाए।

दरअसल वकील और दिल्ली भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी करते हुए देश में सांसदों व विधायकों के आपराधिक मामलों के ट्रायल के लिए स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन के आदेश दिए थे।

याचिका में  दोषी राजनेताओं पर आजीवन चुनाव लडने पर पाबंदी  की मांग की  गई है।

इसके लिए उन्होंने जनप्रतिनिधि अधिनियम के प्रावधानों को असंवैधानिक बताते हुए  चुनौती दी है, जो कि दोषी राजनेताओं को जेल की अवधि के बाद छह साल की अवधि के लिए चुनाव लडने से अयोग्य करार देता है।

इस मामले की सुनवाई के दौरान  सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले साल 1 नवंबर को फास्ट ट्रैक न्यायालयों की तर्ज पर नेताओं के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों के निपटारे के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना के लिए केंद्र को निर्देश दिया था।


 
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