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विचाराधीन क़ैदियों के मामलों की शीघ्र सुनवाई का मुद्दा : सुप्रीम कोर्ट ने सहयोग नहीं करने के लिए कुछ राज्यों पर 50 हज़ार रुपए का जुर्माना लगाया [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network
3 Dec 2018 6:12 PM GMT
विचाराधीन क़ैदियों के मामलों की शीघ्र सुनवाई का मुद्दा : सुप्रीम कोर्ट ने सहयोग नहीं करने के लिए कुछ राज्यों पर 50 हज़ार रुपए का जुर्माना लगाया [आर्डर पढ़े]
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सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों उन कुछ राज्य सरकारों पर 50 हज़ार का जुर्माना लगाया जो अपने यहाँ फ़ोरेंसिक लैब में रिक्तियों को भरने के बारे में केंद्र को जानकारी देने में सहयोग नहीं कर रहे हैं।

न्यायमूर्ति एमबी लोकुर, एस अब्दुल नज़ीर और दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि उसे राजस्थान (50 % रिक्तियाँ), गोवा (60% रिक्तियाँ), असम (40 % रिक्तियाँ), कर्नाटक (50 % से अधिक रिक्तियाँ), महाराष्ट्र (50 % से अधिक रिक्तियाँ), उड़ीसा (लगभग 33 % रिक्तियाँ) और उत्तर प्रदेश (लगभग 80 % रिक्तियाँ) जैसे बड़े राज्यों से कोई सूचना नहीं मिली।

सूचना नहीं देने वाले इन राज्यों से कहा गया कि वे सुप्रीम कोर्ट में चार सप्ताह के भीतर यह राशि जमा कराएँ। यह राशि जूवेनाइल जस्टिस मामले पर ख़र्च होगा। इन राज्यों से यह सूचना शीघ्र देने को भी कहा गया।

कोर्ट को अतिरिक्त सोलिसिटर जनरल ने 22 नवंबर को आश्वासन दिया था कि वह भारी संख्या में विचाराधीन क़ैदियों की सुनवाई में हो रही देरी के एक सम्भावित कारण सीएफएसएल में रिक्तियों के बारे में जानकारी देगा। एएसजी ने इस बात की जानकारी देने के लिए भी समय माँगा था कि क्या देश में सभी जेजेबी को विडीओ कंफ्रेंसिंग की सुविधा और इसके लिए ज़रूरी उपकरणों से लैस किया जा सकता है या नहीं। अगर हाँ, तो वह कोर्ट को इसकी समय सीमा के बारे में बताने वाले थे जब इस कार्य को पूरा किया जा सकता है।

वृहस्पतिवार को हुई इस मामले की सुनवाई में एएसजी ने केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय की ओर से एक नोट पीठ को थमाया। इसमें कहा गया था कि विज्ञानिक अधिकारियों के 97 और प्रशासनिक अधिकारियों के 67 पद ख़ाली हैं जिसको भरने के लिए क़दम उठाए जा रहे हैं।

कोर्ट ने हालाँकि इस बात पर ग़ौर किया किया कि इसके लिए कोई समय सीमा नहीं दी गई है। इसलिए गृह मंत्रालय को इन पदों को भरने के लिए समय सीमा बताते हुए हलफ़नामा दायर करने को कहा गया।

सभी जेजेबी को विडीओ कंफ्रेंसिंग की सुविधा से लैस करने के मामले पर इस नोट में कहा गया था कि महिला और बाल विकास मंत्रालय को इस बारे में 26 नवंबर को पत्र लिखा गया पर उनका कोई जवाब नहीं आया है। मंत्रालय ने कहा कि उसने राज्य सरकारों से इस बारे में उत्तर जानना चाहा है।

इस नोट में इस बात का ज़िक्र भी है कि जेलों में विचाराधीन क़ैदियों की संख्या इतनी अधिक क्यों है। इस पर कोर्ट ने कहा, “इनमें से बहुत सारी कमियों के लिए केंद्र सरकार ही ज़िम्मेदार है और अगर सरकार इस बारे में अगर आवश्यक क़दम नहीं उठाती है तो विचाराधीन क़ैदियों की संख्या का बढ़ना जारी रहेगा।”

इसके बाद एएसजी ने कहा कि राज्य सरकारें इस बारे में सार्थक सहयोग नहीं दे रही हैं।

इस पर कोर्ट ने कहा, “इसका परिणाम यह होगा कि विचाराधीन क़ैदियों की सुनवाई शीघ्र होने की बात सिर्फ़ एक चर्चा भर रह जाएगी।”

अब इस मामले की अगली सुनवाई जनवरी 2019 में होगी।


 
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