अगर उम्र के आधार पर पीड़ित को संदेह का लाभ देने की बात हो तो यह लाभ आरोपी को दिया जाना चाहिए : दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
2 Dec 2018 8:18 PM IST
दिल्ली हाइकोर्ट ने हाल ही में कहा कि पीड़ित के उम्र में संदेह का लाभ आरोपी को मिलना चाहिए।
न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा ने इसको स्पष्ट करते हुए कहा कि पीड़ित की उम्र को मेडिकल परीक्षण में जो पता चला है उसके तहत उसकी ऊपरी सीमा को ध्यान में रखना चाहिए और इसमें एक से दो साल के ऊपर नीचे को ध्यान में रखा जा सकता है।
कोर्ट ने राज्य द्वारा दायर एक पुनरीक्षण याचिका पर ग़ौर करते हुए यह बात कही। इस याचिका में निचली अदालत द्वारा राम धल्ल नामक एक आरोपी को बच्चों के प्रति क्रूरता के अपराध में जूवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ) एक्ट, 2015 की धारा 75/79 के तहत बरी करने को चुनौती दी गई है। निचली अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा था कि उस पर आईपीसी की धारा 323 के तहत मुक़दमा चलाया जाना चाहिए।
अभियोजन का आरोप था कि श्रीमती धल्ल ने पीड़ित को काम पर रखा और उसके साथ बदसलूकी की। चूँकि बच्चे की उम्र के बारे में कोई सबूत उपलब्ध नहीं है इसलिए उसकी मेडिकल जाँच कराई गई।
मेडिकल बोर्ड ने कहा कि पीड़ित की उम्र 18 से 20 साल के बीच है। इस बात पर ग़ौर करते हुए निचली अदालत ने कहा कि चूँकि पीड़ित अवयस्क नहीं है, जेजे अधिनियम के प्रावधान उसपर लागू नहीं होते।
इस फ़ैसले को सही ठहराते हुए न्यायमूर्ति सचदेवा ने कहा, “यह देखते हुए कि संदेह का लाभ आरोपी को मिलना चाहिए, मेडिकल परीक्षण की जानकारी के आधार पर उम्र की ऊपरी सीमा पर ग़ौर किया जाएगा और इसमें ग़लती की सम्भावना को 1 से 2 साल तक सीमित करना होगा।”
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