Begin typing your search above and press return to search.
ताजा खबरें

CBI Vs CBI : चयन समिति नहीं, केंद्र को है निदेशक की नियुक्ति का अधिकार: AG

LiveLaw News Network
2 Dec 2018 1:25 PM GMT
CBI Vs CBI : चयन समिति नहीं, केंद्र को है निदेशक की नियुक्ति का अधिकार: AG
x

CBI Vs CBI मामले में सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को छुट्टी भेजे जाने के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को तीन घंटे तक हाईवोल्टेज सुनवाई चली। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई,  जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस के एम जोसेफ की पीठ ने सुनवाई को पांच दिसंबर के लिए टाल दिया।

इस दौरान केंद्र सरकार की ओर से AG केके वेणुगोपाल ने इस आदेश की वकालत करते हुए कहा कि केंद्र ने अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए ही आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजा। उन्होंने कहा कि इस मामले को प्रधानमंत्री, चीफ जस्टिस और लोकसभा के नेता विपक्ष की समिति के पास भेजने की जरूरत नहीं थी क्योंकि चयन समिति का उम्मीदवार चुनने के बाद कोई नियंत्रण नहीं रहता।

AG ने कहा कि सिर्फ केंद्र सरकार ही नियुक्ति प्राधिकरण होने के कारण दखल दे सकती है।  नियम है कि केंद्र सरकार कमेटी की सिफारिश पर सीबीआई निदेशक की नियुक्ति करती है और चयन समिति तीन नाम भेजती है जिसमें से एक को चुना जाता है। चयन समिति और नियुक्ति समिति में अंतर है।

उन्होंने पीठ को ये भी कहा कि आलोक वर्मा को ट्रांसफर नहीं किया गया है बल्कि वो अब भी पद पर हैं। उन्हें सरकारी बंगला व सुविधाएं बरकरार हैं।

AG ने पीठ से कहा कि केंद्र सरकार सीबीआई के दो बडे अफसरों के आरोपों से चिंतित थी।

ये फैसला जनहित में लिया गया। इस मामले से सीबीआई की छवि खराब हो रही थी और उसकी साख बचाने के लिए ये किया गया।

वहीं इस दौरान आलोक वर्मा की ओर से वरिष्ठ वकील फली नरीमन ने कहा कि दो साल का कार्यकाल नियम के मुताबिक है। कानून खुद कहता है कि सीबीआई निदेशक इस तरह ट्रांसफर नहीं होगा। आलोक वर्मा को जिस समिति ने चुना था, उसकी मंजूरी जरूरी है। आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने के आदेश का कोई आधार नहीं है। अगर कोई गलत हुआ जिसकी जांच की जरूरत है तो कमेटी के पास जाना चाहिए था।

फली ने कहा कि ना ही कानून में निदेशक की शक्तियों को हल्का करने का प्रावधान है।

इस दौरान जस्टिस केएम जोसेफ ने पूछा कि  अगर सीबीआई निदेशक घूस लेते हुए रंगे हाथ पकडे जाते तो क्या होता ?  फली ने कहा कि तो फिर केंद्र को कोर्ट में या फिर समिति के सामने जाना होता। कानून में कहीं नहीं है कि इस तरह वनवास में भेजा जाए। अगर इस दौरान आसाधारण हालात में सीबीआई निदेशक का ट्रांसफर किया जाना है तो कमेटी की अनुमति लेनी होगी।

कॉमन कॉज के लिए पेश दुष्यंत दवे ने भी कहा कि  आलोक वर्मा को हटाने के लिए DSPE एक्ट को बायपास किया गया। ये आदेश अवैध है। वहीं मल्लिकार्जुन खड़गे की ओर से पेश कपिल सिब्बल ने कहा कि सीवीसी को सीबीआई निदेशक को हटाने या उसके आफिस को सील करने या काम करने ना देने का अधिकार नहीं है। सीबीआई निदेशक का मामला उसी समिति को ही जाना चाहिए जिसने उसे चुना है। अगर ऐसे फैसलों और प्रक्रिया को हम मंज़ूर करेंगे तो सीबीआई की स्वायत्तता का क्या मतलब रह जाता है? अगर समिति के अधिकार सरकार हथिया लेगी तो जो आज CBI निदेशक के साथ ही रहा है वही कल CVCऔर CEC के साथ भी हो सकता है।

वहीं DIG एम के सिन्हा की ओर से इंदिरा जयसिंह ने कहा कि हम अभी अपनी याचिका की सुनवाई नहीं चाहते। हम ट्रांसफर केस से पहले आलोक वर्मा की याचिका पर फैसले का इंतजार करना चाहते हैं। सुनवाई में ए के बस्सी की ओर से राजीव धवन ने कहा कि  अगर कानून में कोई खामी है तो सुप्रीम कोर्ट उसे सही करेगा। सरकार या सीवीसी नहीं कर सकते।

सुनवाई को टालते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने सीवीसी रिपोर्ट पढी है लेकिन इसका न्यायिक नोट नहीं लिया है। सीवीसी रिपोर्ट पर जाएं या नहीं ये हम तय करेंगे क्योंकि इसके बाद सभी पक्षकारों को इस पर जवाब देने के लिए अनुमति देनी होगी।

Next Story