अगर नियोक्ता (राज्य) चुने हुए उम्मीदवारों की नियुक्ति नहीं करता है तो उसे इसका उचित कारण देना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

2 Dec 2018 1:10 PM GMT

  • अगर नियोक्ता (राज्य) चुने हुए उम्मीदवारों की नियुक्ति नहीं करता है तो उसे इसका उचित कारण देना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब इतनी भारी संख्या में पद ख़ाली हैं और उम्मीदवारों के चयन की प्रकिया का पालन किया गया है तो नियोक्ता को कोर्ट के संतुष्ट होने तक यह बताना होगा कि उसने चुने हुए उम्मीदवारों की नयुक्ति क्यों नहीं की, भले ही वे स्थानापन्न पैनल से ही क्यों ना हों।

    न्यायमूर्ति कुरीयन जोसफ़,न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की तीन सदस्यीय पीठ ने दिनेश कुमार कश्यप बनाम दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे मामले में एक अपील पर ग़ौर करते हुए यह बात कही। इस याचिका में कहा गया है कि नियुक्ति के लिए दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे द्वारा प्रकाशित सूची (स्थानापन्न पैनल) में नाम होने के बाद भी उन्हें नियुक्ति नहीं दी गई।

    न्यायमूर्ति जोसफ़ और दीपक गुप्ता ने कहा कि पदों पर नियुक्ति नहीं किए जाने का उचित कारण अवश्य ही बताया जाना चाहिए और यह निरंकुश, मनमाना या लापरवाहीपूर्ण नहीं होना चाहिए।

    न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने कहा, “हमारे देश में क़ानून का राज है। मनमानापन क़ानून के शासन के ख़िलाफ़ काम करता है। जब कोई नियोक्ता भारी संख्या में रिक्त पदों पर भर्ती के लिए आवेदन लेता है तो भारी संख्या में बेरोज़गार युवक इसके लिए आवेदन करते हैं…अगर वे लिखित परीक्षा पास करते हैं तो दुबारा उनको मौखिक परीक्षा में बैठने के लिए जाना पड़ता है और फिर मेडिकल जाँच आदि के लिए। जो उम्मीदवार सफल रहे हैं और उन्हें पास घोषित किया गया है उन्हें स्वाभाविक रूप से नियुक्ति की उम्मीद होती है। निस्सन्देह, यह किसी का अधिकार नहीं है। लेकिन सरकार को इस पद  पर नियुक्ति नहीं करने के लिए उचित और ग़ैर-मनमाना कारण बताना चाहिए।”

    कोर्ट ने कहा कि जब नियोक्ता राज्य है, तो उसे अनुच्छेद 14 के अनुरूप काम करना होगा और अकारण ही वह पदों पर नियुक्ति से मना नहीं कर सकता। उसे पदों पर नियुक्ति नहीं करने का उचित कारण अवश्य ही बताना चाहिए।

    पीठ ने याचिका को स्वीकार कर लिया और सरकार को तीन महीने के भीतर योग्य आवेदनकर्ताओं को नियुक्ति देने को कहा।

    न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने इस मामले में बहुमत से अलग फ़ैसला दिया। उनका कहना था कि राज्य ने नियुक्ति नहि करने के पर्याप्त कारण दिए हैं और उसका क़दम ना तो मनमाना है और ना ही भेदभावपूर्ण।


     
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