सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की पीठ ने NJAC पर पुनर्विचार याचिका खारिज की, देरी और मेरिट ना होने का फैसला [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

1 Dec 2018 5:12 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की पीठ ने NJAC पर पुनर्विचार याचिका खारिज की, देरी और मेरिट ना होने का फैसला [आर्डर पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए बनाए गए  राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग NJAC को रद्द करने के फैसले पर दाखिल पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है।

    चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी लोकुर, जस्टिस कुरियन जोसफ, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस अशोक भूषण ने 27 नवंबर को ये फैसला दिया।

    फैसले में पीठ ने कहा कि याचिका में कोई मेरिट नहीं है और इसे दाखिल करने में देरी के कारण याचिका को खारिज किया जाता है। पीठ ने कहा कि पुनर्विचार याचिका दाखिल करने में 470 दिनों की देरी का भी कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। इसके अलावा दिए गए आधारों में भी मेरिट नहीं पाई गई हैं।

    इससे पहले 16 अक्टूबर 2015 को एेहतिहासिक फैसला सुनाते हुए 5 जजों के संविधान पीठ ने मोदी सरकार के राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग NJAC को अंसवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था।

    दरअसल  नेशनल लॉयर्स कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल ट्रांसपेरंसी एंड रिफॉर्म्स ने सुप्रीम कोर्ट के  सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ और अन्य ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग एनजेएसी) 2014 के अधिनियम को रद्द करने और सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति व  उन्नयन के लिए कोलेजियम प्रणाली को बरकरार रखने वाले 16 अक्टूबर 2015 के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। याचिकाकर्ता जिसने खुद को "वकीलों के गैर-अभिजात्य  वर्ग का संगठन" बताया है,  ने निम्नलिखित प्रार्थना की थी :

     (1) सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का 16 अक्टूबर 2015 का आदेश अंसवैधानिक और अमान्य घोषित किया जाए क्योंकि  संविधान (99 संशोधन) अधिनियम, 2014 और  राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग पर आदेश न्यायसंगत नहीं था।

    (2) इसमें किसी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है;

     (3) मुख्य याचिका में याचिकाकर्ता और उसके साथ जुड़े मामलों में कोई लोकस नहीं है।

     (4) जनहित याचिकाएं पूरी तरह से सुनवाई योग्य  नहीं हैं और

    ( 5) मुख्य फैसला, जिसमें कॉलेजियम  प्रणाली, जो  के जज-2 और जज -3 मामलों में सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की संविधान पीठ द्वारा नए सिरे से लिखा गया, को पुनर्जीवित किया गया, जिससे सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति व तबादले प्रभावित होंगे, असंवैधानिक और शून्य है।

    वर्तमान याचिकाकर्ता द्वारा पुनर्विचार के लिए दिए थे आधार : 

     (1) अनुच्छेद 32 का जनादेश और इसके अनुच्छेदों को संविधान के भाग- III में बताए गए व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन तक ही सीमित है और किसी भी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं, जिसमें तथाकथित उल्लंघन संविधान की बुनियादी संरचना शामिल है।

     (2) केशवानंद भारती केस में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की मूल संरचना की अवधारणा से आगे बढकर चर्चा की। कुछ अन्य फैसलों में अर्थात् मिनर्वा मिल्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया [(1 9 80) 2 एससीसी 591], मद्रास बार एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया [(2014) 10 एससीसी 1] और एनजेएसी मामले में, तथ्य यह है कि बुनियादी संरचना मूलभूत अधिकारों को लागू करने के लिए एक याचिका के संदर्भ में विकसित हुई थी जो पूरी तरह से दृष्टि खो चुकी है और एक नए अधिकार क्षेत्र की स्थापना हुई है जिसमें संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत संविधान संशोधन या संविधान के एक साधारण अधिनियम की संवैधानिकता के लिए एक चुनौती दी गई। इसमें  एक 'व्यक्ति को पीड़ित' बताया गया और उन्होंने संविधान संशोधन या संसद के अधिनियम के आधार पर अपने मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने का दावा किया।

     (3) जज-  2, जज -3 के मामले और एनजेएसी मामले में फैसले का शुद्ध प्रभाव शक्ति के पृथक्करण की अवधारणा की जड पर पडा है जिसमें अदालत ने संसद और कार्यपालिका दोनों की भूमिका निभाते हुए फैसला दिया है जैसे दोनों एक ही हों।  जज-  2, जज -3  के फैसले और उपरोक्त याचिकाओं में एक हास्यास्पद परिदृश्य हुआ है जहां संविधान के अनुच्छेद 124 और 217 को पूरी तरह से इसके विपरीत बताया गया है, जिसका मतलब है कि वे न्यायिक समीक्षा की अवधारणा को जड़ से काटते हैं।

    ( 4) प्राकृतिक न्याय के मूल सिद्धांत - अपने स्वयं के किसी केस  में कोई भी जज नहीं हो सकता - का उल्लंघन किया गया है। यह एक मूल सिद्धांत है कि जहां एक जज पक्षपाती है, भले ही इस तरह के पूर्वाग्रह गैर-सचेत, उप-सचेत या अनजाने में किए गए, जैसे तत्काल मामले में जहां पूर्व मुख्य न्यायाधीश जे एस खेहर ने अपने सपने में भी नहीं सोचा था कि खुद कॉलेजियम का एक सदस्य होने पर फैसला लेना है ताकि खुद के लिए जगह सुरक्षित हो सके।


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