1984 सिख विरोधी दंगा : दिल्ली हाईकोर्ट ने 88 लोगों की सजा बरकरार रखी, आपराधिक न्याय व्यवस्था पर उठाए सवाल [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

28 Nov 2018 12:50 PM GMT

  • 1984 सिख विरोधी दंगा : दिल्ली हाईकोर्ट ने 88 लोगों की सजा बरकरार रखी, आपराधिक न्याय व्यवस्था पर उठाए सवाल [निर्णय पढ़ें]

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को 1984 के सिख  विरोधी दंगों में शामिल 88 दोषियों की पांच साल की जेल की सजा को बरकरार रखा और सभी को तुरंत सरेंडर करने के आदेश दिए।

    इस अहम फैसले में न्यायमूर्ति आरके गॉबा ने इस मामले में हुई देरी पर दुख जताया कि घटना के 34 साल बीत चुके हैं  और ट्रायल कोर्ट के फैसले के बाद 22 साल बीत चुके हैं।

    अदालत ने 1984 के दंगों को आजाद भारत के इतिहास का काला अध्याय करार दिया।

    अदालत ने कहा, "क्या इसे हम एक शक्तिशाली और प्रभावी आपराधिक न्याय प्रणाली कहते हैं? क्या हमारे न्यायिक उपकरण इस तरह के गंभीर अपराधों से निपटने के लिए सुसज्जित हैं? क्या हम आपराधिक न्याय प्रक्रिया के नाम पर इस भयानक प्रयोग से सीखने के सबक सीख सकते हैं?

    यह वास्तव में शोक का विषय है कि न्यायिक प्रक्रिया में सुधारों को प्रभावी ढंग से निपटने के लिए अब तक कोई सार्थक विचार नहीं किया गया है, जो कि सांप्रदायिक दंगों के मामलों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए तैयार किए गए हैं। “

    फैसले में कहा गया है कि इस मामले को आपराधिक न्याय प्रक्रिया को कभी भी पाठ्यक्रम में नहीं लेना चाहिए और इसे एक सबक के तौर पर लिया जाना चाहिए।

    न्यायमूर्ति गॉबा ने कहा, "इस मामले के अभियोजन पक्ष का तरीका निस्संदेह आपराधिक कानून के उदाहरण के रूप में इस देश के न्यायिक इतिहास में नीचे जायेगा और इस प्रक्रिया की कभी नकल नहीं की जानी चाहिए। उम्मीद है कि इस मामले को कभी भुलाया नहीं जाएगा। "

    इसके बाद इस तरह के मामलों से निपटने के लिए आपराधिक कानून प्रतिक्रिया में सुधारों का सुझाव दिया गया है।

    दरअसल 31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे थे।  यह मामला पूर्वी दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके में होने वाले दंगे  से संबंधित है जहां दंगों में 95 लोग मारे गए थे और 100 घर जला दिए गए थे।

    उच्च न्यायालय के समक्ष अभियुक्तों ने अगस्त 1996 में सत्र न्यायालय द्वारा पारित फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 188, 147  और 436 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए 88 लोगों को दोषी ठहराया गया था।

    न्यायमूर्ति गॉबा ने हालांकि ट्रायल कोर्ट के  फैसले को बरकरार रखा और  माना कि इस मामले में गंभीर सजा होनी चाहिए लेकिन कहा कि वो सजा नहीं बढा रहे हैं क्योंकि अपील के साथ ऐसी कोई प्रार्थना नहीं थी।

    गौरतलब है कि दोषियों के  खिलाफ 2 नवंबर 1984 को कर्फ्यू का उल्लंघन कर हिंसा करने का आरोप था। उस हिंसा में त्रिलोकपुरी में करीब 95 लोगों की मौत हो गई थी और करीब सौ घरों को जला दिया गया था।


     
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