बाद में अगर किसी को फ़्लैट बेचा गया है तो वह भी उपभोक्ता के रूप में शिकायत कर सकता है, इस पर हमेशा प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
28 Nov 2018 8:36 AM GMT
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ‘सब्सिकवेंट ट्रांसफ़री’ के उपभोक्ता के रूप में शिकायत पर हमेशा ही प्रतिबंध नहीं लगा है।
न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने सीसीआई प्राजेक्ट्स (पी) लिमिटेड बनाम व्रजेंद्र जोगजीवनदास थककर के मामले में कहा कि हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण बनाम राजे राम मामले में आए फ़ैसले को इस हद तक खींचा नहीं जा सकता और यह नहीं कहा जा सकता कि हर समय जब किसी व्यक्ति को बाद में फ़्लैट ट्रान्स्फ़र किया जाता है (यानी जो मूल आवंटी नहीं है), तो इस तरह के व्यक्ति की शिकायत को हमेशा ही दरकिनार कर दिया जाएगा।
वर्तमान मामले में अपीलकर्ता ने हरियाणा शहरी विकास मामले में आए फ़ैसले पर भरोसा करते हुए कहा था कि इस याचिका पर ग़ौर नहीं किया जा सकता क्योंकि मूल आवंटियों ने अपने हित स्थानान्तरित कर दिए थे।
हेमाली व्रजेंद्र ठक्कर ने सीसीआई परियोजना में फ़्लैट बुक किया था। बाद में उसने आवंटित फ़्लैट को अपनी सास कुमुदबेन ठक्कर को हस्तांतरित कर दिया जिन्होंने इसे व्रजेंद्र जोगीजीवनदास ठक्कर को उपहार में दे दिया। व्रजेंद्र ने उपभोक्ता अदालत में शिकायत की जिसने उसे राहत दी और बिल्डर को फ़्लैट देने में विलम्ब के कारण मुआवज़ा देने को कहा।
पीठ ने उपभोक्ता अदालत के इस फ़ैसले को यह कहकर ख़ारिज कर दिया कि मकान मिलने में देरी होने के ऐवज में दावे का दावा वो नहीं कर सकते जो मूल आवंटी नहीं हैं।
पीठ ने कहा, “…वर्तमान मामले में आवंटी परिवार के ही लोग हैं और वे साथ रह रहे हैं।हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण बनाम राजे राम मामले में आए फ़ैसले को इस हद तक खींचा नहीं जा सकता और यह नहीं कहा जा सकता कि हर समय जब किसी व्यक्ति को बाद में फ़्लैट ट्रान्स्फ़र किया जाता है, तो इस तरह के व्यक्ति की शिकायत को हमेशा ही दरकिनार कर दिया जाएगा।”
पीठ ने याचिका का निस्तारन कर दिया और मुआवज़े की दावा राशि को कम करके 5 लाख रुपए कर दिया।