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बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा, बलात्कार की संशोधित परिभाषा फ़रवरी 2013 से पहले हुई घटनाओं पर लागू नहीं होगा; फ़ैसले को बदलकर बलात्कार के आरोपी को बलात्कार के प्रयास का आरोपी बताया

LiveLaw News Network
28 Nov 2018 8:27 AM GMT
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा, बलात्कार की संशोधित परिभाषा फ़रवरी 2013 से पहले हुई घटनाओं पर लागू नहीं होगा; फ़ैसले को बदलकर बलात्कार के आरोपी को बलात्कार के प्रयास का आरोपी बताया
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बॉम्बे हाइकोर्ट ने कहा है कि आपराधिक क़ानून (संशोधन) विधेयक 2013 को पिछले प्रभाव से लागू नहीं किया जा सकता। इस आधार पर कोर्ट ने बलात्कार के एक आरोपी की सज़ा को बलात्कार की कोशिश के आरोप में बदल दिया।

आरोपी को आईपीसी की धारा 376 (2)(f) के तहत दोषी पाया गया था। न्यायमूर्ति एएम बादर ने आरोपी की याचिका पर सुनवाई की जिसे अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, मुंबई ने 29 जून 2013 को सज़ा सुनाई थी।

पृष्ठभूमि

आरोपी दिलीप गवंद पर शांताबेन की पोती के साथ बलात्कार का आरोप लगाया गया। आरोपी ने इससे इनकार किया और कहा कि यह आरोप इसलिए लगाया गया क्योंकि उसके पिता ने किराए के उस मकान के उस हिस्से को शांताबेन के पति को बेचने से इंकार कर दिया था।

निचली अदालत ने आईपीसी की धारा 375 में बलात्कार की परिभाषा के तहत गवंद को बलात्कार का दोषी क़रार दिया और उसे सात साल की जेल की सज़ा सुनाई।

फ़ैसला

कोर्ट ने कहा कि मेडिकल जाँच में पीडिता के गुप्तांगों पर चोट के निशान पाए गये। यह भी कहा की वह अपने गुप्तांगों से छेड़छाड़ करती रही है।

कोर्ट ने कहा, “बलात्कार के अपराध के लिए यह साबित करना ज़रूरी है कि आरोपी ने पीडिता के साथ यौन संबंध स्थापित किया…”

इसके बाद कोर्ट ने कहा कि यह अपराध 5 जुलाई 2012 को हुआ जबकि बलात्कार की परिभाषा को 2013 में संशोधित किया गया जो 3 फ़रवरी 2013 से लागू हुआ।

कोर्ट ने कहा कि बलात्कार की संशोधित परिभाषा को पिछले प्रभाव से लागू नहीं किया जा सकता। 5 जुलाई 2012 को गुप्तांग में ऊँगली घुसाने या पीडिता के मुँह में लिंग घुसाने को बलात्कार की परिभाषा के तहत नहीं लाया गया था। लिंग के घर्षण को तभी बलात्कार माना जाएगा जब वह थोड़ा भी गुप्तांग में अंदर जाता है।”

न्यायमूर्ति बादर ने कहा कि पीडिता को उसकी दादी और माँ ने सिखाया था। कोर्ट ने कहा कि पीडिता की मेडिकल जाँच करने वाली डॉक्टर दीपाली एलगिरे ने अपनी रिपोर्ट में ऐसा कुछ नहीं बताया है कि आरोपी ने पीडिता के मुँह में अपना लिंग डाल दिया था या उसकी गुप्तांग में ऊँगली डाली थी जबकि शांताबेन ने शुरू में इस तरह के आरोप लगाए थे।

कोर्ट ने निष्कर्षतः कहा कि इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि पीडिता के गुप्तांग में लिंग डाला गया और इसका अर्थ यह हुआ कि बलात्कार के प्रयास निष्फल रहे।

इसलिए कोर्ट ने आरोपी की अपील मान ली और धारा 376(2)(f) के तहत उसको दोषी थहराए जाने के फ़ैसले को निरस्त कर दिया। पर उसकी सज़ा को कम नहीं किया गया।

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