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लंबित आपराधिक मामलों के बारे में उम्मीदवार के बताने के बाद भी नियोक्ता उसकी उपयुक्तता की अलग से जाँच कर सकता है : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network
27 Nov 2018 12:07 PM GMT
लंबित आपराधिक मामलों के बारे में उम्मीदवार के बताने के बाद भी नियोक्ता उसकी उपयुक्तता की अलग से जाँच कर सकता है : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई उम्मीदवार यह घोषणा कर भी देता है कि उसके ख़िलाफ़ आपराधिक मामला लंबित है, नियोक्ता को उसके बारे में जाँच करने और उसकी उपयुक्तता का पता लगाने का अधिकार है।

न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ मध्य प्रदेश सरकार की याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि नियोक्ता भर्ती के लिए आने वाले उम्मीदवारों की जॉब प्रोफ़ायल पर ग़ौर कर सकता है और इस बात का पता लगा सकता है कि उम्मीदवार के ख़िलाफ़ लगाए गये आपराधिक आरोप किस तरह के हैं और अगर उसको इन आरोपों से बरी किया गया है तो वह आदरपूर्ण है या उसे संदेश का लाभ दिया गया है या दोनों के मिश्रित प्रभाव के कारण ऐसा किया गया है।

हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा था कि वह उम्मीदवार अभिजीत सिंह पवार को नियुक्ति दे जिसने यह घोषणा कर रखी थी कि उसे उसके ख़िलाफ़ एक आपराधिक मामला लंबित है जिसे बाद में निरस्त कर दिया गया।

पीठ ने इस बारे में अवतार सिंह बनाम भारत संघ के मामले का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि अगर उम्मीदवार ने सच सच बता भी दिया है तो भी नियोक्ता को अपने स्तर से इस बारे में जाँच करने का अधिकार है और उसको इस तरह के उम्मीदवार को नियुक्ति देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। पीठ ने कहा कि वर्तमान मामले में ऐसा कुछ नहीं है जिससे यह लगे कि जिस उम्मीदवार को नौकरी नहीं दी गई उसके ख़िलाफ़ जानबूझकर ऐसा किया गया है।

उम्मीदवार की पैरवी करने वाले अमिकस क्यूरी अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने मोहम्मद इमरान बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में आए फ़ैसले का हवाला दिया जिसमें कोर्ट ने अथॉरिटीज़ को निर्देश दिया था कि वह न्यायिक सेवा में सफल रहने वाले एक उम्मीदवार को नियुक्ति दे जिसे नैतिक अधमता के आधार पर नियुक्ति देने से मना का दिया गा था।

इन दोनों फ़ैसलों में अंतर करते हुए पीठ ने कहा, “इस फ़ैसले के पैरा 5 में कहा गया है कि आरोपी के ख़िलाफ़ एकमात्र आरोप यह था कि वह उस ऑटोरिक्शा में बैठा था जो उस लड़की के ऑटोरिक्शा को फ़ॉलो कर रहा था। इस मामले के मुख्य आरोपी को आईपीसी की धारा 376 के ख़िलाफ़ अभियोग लगाया गया था। और चूँकि लड़की ने  आरोपों को निराधा बताया जिसकी वजह से सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया गया था। मोहम्मद इमरान मामले में ऐसा कोई फ़ैसला नहीं दिया गया है जिसके बारे में कहा जा सकता है कि वह मेहर सिंह मामले में दिए गये फ़ैसले के अलग है।”


 
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